Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 102
________________ भाषा अर्थ । परिहार नहीं कर पाया तो वादी के लिए वह साधनाभास हो जायगाः और प्रतिवादी के लिए भूषण हो जायगा । २३ 1 भावार्थ — जो अपने पक्ष पर श्राए हुए दूषणोंका परिहार करके अपने पक्षको सिद्ध कर देगा उसीकी विजय होगी और दूसरे का पराजय होगा । अपने पक्षको सिद्ध कर लेना और परके पक्षम दूषण दे देना, यही प्रमाण और प्रमाणाभास जाननेका फल है । प्रमाणकी परीक्षा करके अब यह दिखाते हैं कि नयादि तत्वों का स्वरूप दूसरे ग्रन्थों में कहा है:सम्भवदन्यद्विचारणीयम् ॥ ७४ ॥ - भाषार्थ - प्रणामसे भिन्न, नयादि तत्वों का स्वरूप दूसरे शास्त्रोंसे जानना चाहिये । मूल नय दो हैं एक द्रव्यार्थिक दूसरा पर्यायार्थिक | उनमें भी द्रव्यार्थिकनय के तीन भेद है। नैगम, संग्रह और व्यवहार । पर्यायार्थिकनय के चार भेद हैं। ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत । अन्तिम परिच्छेदका सारांश । इस परिच्छेद में प्रमाणाभास, प्रत्यक्षाभास, परोक्षाभास, स्मरणाभास, प्रत्यभिज्ञानभास, तर्काभास और अनुमानाभास के भेद, पक्षाभास, हेत्वाभास, दृष्टान्ताभास, बालप्रयोगाभास तथा श्रागमाभास और प्रमाणसंख्याभास, प्रमाणविषयाभास, तथा प्रमाणफलाभासका वर्णन है । यहां श्रभास नाम झूठे का जानना चाहिये । पीछे जिनका निर्णय हो चुका है वे प्रमाण सच्चे हैं क्योंकि उनमें कोई दोष नहीं श्राता ·

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