Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 86
________________ निश्चितविपक्षवृत्तिका उदाहरणःनिश्चितवृत्तिरनित्यः शब्दः प्रमेयत्वात् घटवत् ॥ ३१ ॥ । भाषार्थ-शब्द अनित्य होता है क्योंकि वह प्रमेय है जो प्रमेय होता है वह अनित्य होता है जैसे घट । यह प्रमेय हेतु, पक्ष शब्द में, सपक्ष घटमें, रहताहुआ विपक्ष आकाशमें भी रहता है इस लिए व्यभिचारी है परन्तु उसका विपक्षमें रहना निश्चित है इसलिए उसको निश्चितविपक्षवृत्ति कहते हैं। . इसीको पुष्ट करते हैं:आकाशे नित्येऽप्यस्य निश्चयात् ॥ ३२ ॥ भाषार्थ नित्य आकाशमें (विपक्षमें ) भी इसका (प्रमेय हेतुका ) निश्चय है इसलिए प्रमेयहेतु निश्चित व्यभिचारी है । शंकितविपक्षवृत्तिका उदाहरणःशंकितवृत्तिस्तु नास्ति सर्वजो वक्तृत्वात् ॥३३॥ ‘भाषार्थ-सर्वज्ञ नहीं है क्योंकि वह बोलनेवाला है। परन्तु "बोलनेवाला" यह हेतु रहजाय और सर्वचपना भी रहजाय, इन दोनों बातोंमें कोई भी विरोध नहीं है इसलिए इस हेतुको शंकितव्यभिचारी कहते हैं । अर्थात इसकी विपक्षमें रहनेकी शंका है। . सो ही कहते हैं:सर्वज्ञत्वेन वक्तृत्वाविरोधात् ॥ ३४ ॥

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