Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 93
________________ परीक्षामुख W ay ag. F . M. . . भाषार्थ-रागी द्वेषी और अज्ञानी मनुष्यों के बचनोंसे उत्पन्न हुए भागमको भागमाभास कहते हैं । उसीका दृष्टान्त देते हैं:यथा नद्यास्तीरे मोदकराशयः सन्ति धावध्वं माणवकाः ॥५२॥ भाषार्थ-जैसे कि "बालको! दौड़ो, नदीके किनारे बहुतसे लह पड़े हुए हैं" ये वचन हैं। दूसरा यह है :अङ्गुल्यग्रे हस्तियूथशतमास्त इति च ॥ ५३॥ भाषार्थ-और जिसप्रकार यह है कि अंगुलीके प्रागेके हिस्सेपर हाथियोंके सौ समुदाय रहते हैं। भावार्थ--सब वस्तुएं सब जगह हैं, इसप्रकारके सिद्धान्तको माननेवाले सांख्योंका, यह सिद्धान्त है। ___ इनके भागमाभास होनेमें हेतु :विसंवादात् ॥ ५४॥ भाषार्थ-विवाद होनेके कारण, ये भागमाभास है । अर्थात् इनमें लोग विवाद करते हैं इसलिए ये पागम, मँठे हैं। भावार्थ-इनसे लोगोंको यथार्य पदार्थोंका निर्णय नहीं होता; इसलिए मनमाना गढन्त गढ़ते हुए एक दूसरेके विरुद्ध कहकर विवाद किया करते हैं । इसलिए ये प्रागम झूठे हैं। 'इसप्रकार प्रमाण-स्वरूपाभासका वर्णन हुआ।

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