Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 97
________________ परीचामुख उसीमें हेतु देते हैं:तथाप्रतिभासनात्कार्याकरणाच्च ॥ ६२॥ भाषार्थ क्योंकि केवल सामान्यरूपसे अंथवा विशेषरूपसे वस्तुका प्रतिभास ही नहीं होता है तथा केवल सामान्यरूप अथवा केवल विशेषरूप पदार्थसे अर्थक्रिया नहीं होसकती है। इसलिए वे विषयाभास है। . भावार्थ—सामान्य-विशेषरूप ही पदार्थका प्रतिभास होता है तथा वैसा ही पदार्थ अपने कार्य (अर्थ-क्रिया) करनेमें समर्थ होता है अन्य, सामान्यरूप अथवा विशेषरूप पदार्थ नहीं; इसलिए वे विषयाभास कहे जाते हैं। ___ अगर कोई कहे कि, वे पदार्थ ( एकान्तरूप पदार्थ ) अपना कार्य करसकते हैं, तो हम उनसे पूछते हैं, कि वे स्वयं समर्थ होते हुए कार्य करते हैं? या असमर्थ ? । इन दोनों पक्षों से पहले समर्थपक्षका खण्डन करते हैं: समर्थस्य करणे सर्वदोत्पत्तिरनपेक्षत्वात्॥६३॥ भाषार्थ-यदि वह पदार्थ समर्थ होता हुश्रा कार्य करता है तो निरन्तर ही कार्यकी उत्पत्ति होनी चाहिए; क्योंकि वह दूसरे किसी की अपेक्षा ही नहीं रखता है जिससे कि कार्य करनेमें रुक जाय । भावार्थ-जो स्वयं समर्थ होता है वह अपने कार्यमें किसीकी मदद नहीं चाहता है। क्योंकि मददकी ज़रूरत उसीको होती है जो समर्थ नहीं होता है; इसलिए उसको निरन्तर कार्यकरना चाहिए।

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