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भाषा-मर्थ।
क्योंकि:विद्युदादिनाऽतिप्रसंगात् ।। ४३ ॥
भाषार्थ-बिजली श्रादिकसे अतिप्रसंग होताहे अर्थात् बिमली अपौरुषेय है इसलिए प्रमूर्तभी होनी चाहिए; परन्तु है नहीं । बस, इसीको अतिप्रसंग कहते हैं कि जो वस्तु जैसी है तो नहीं परन्तु उसका वैसी माननेका मौका आजाय ।
व्यतिरेकदृष्टान्ताभासके भेद औरै उदाहरणः
व्यतिरेकेऽसिद्धयतिरेकाः परमाण्विन्द्रियसुखाकाशवत् ॥ ४४॥
भाषार्थ-व्यतिरेकदृष्टान्ताभासके तीन भेद हैं व्यतिरेक द्वारा साध्यविकल, साधनविकल और उभयविकल । पूर्वके अनुमानमें ही व्यतिरेकसे परमाणुका दृष्टान्त,साध्यविकत है क्योंकि वह पुरुषकृत नही है तथा इन्द्रियसुखका दृष्टान्त, साधनविकल है क्योंकि वह मूर्त नहीं है और प्राकाशका दृष्टान्त, उभयविकल है क्योंक वह पुरुषकृत नहीं है और मूर्त भी नहीं है।
भावार्थ--जो दृष्टान्त व्यतिरेकव्याप्ति अर्थात् साध्यके अभावमें साधनका प्रभाव दिखाकर दिया जाता है उसको व्यतिरेकदृष्टान्त कहते है उस व्यतिरेकव्याप्तिमें दो वस्तुएं होती है एक साध्याभाव, दूसरा साधनाभाव। फिर जिस दृष्टान्तमें साध्याभाव नहीं होगा वह साध्यसे, और जिसमें साधनाभाव नहीं होगा वह साधन से, तथा जिसमें दोनों नहीं होंगे, वह उभयसे रोहत कहा जायगा । इनको साध्याभाव इत्यादिसे विकल न कहकर साध्य आदिसे विकल,