Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

View full book text
Previous | Next

Page 79
________________ परोनाभासके भेदोंमेंसे स्मरणाभास इसप्रकार है :__ अतस्मिस्तदितिज्ञानं स्मरणाभासं जिनदत्ते स देवदत्तो यथा ॥८॥ भाषार्थ-जिस पदार्थका पहले कभी धारणारूप अनुभव नही हुश्रा था, उसके स्मरणको स्मरणाभास कहते हैं जैसे किजिनदत्तका स्मरण करके कहना, कि वह देवदत्त । यहां देवदत्तको कभी देखा नहीं था और स्मरण किया है, इसलिए वह स्मरण फंठा है। प्रत्यभिज्ञानाभासका स्वरूपः - सहशे तदेवेदं तस्मिन्नेव तेन सदृशं यमलकवादित्यादि प्रत्यभिज्ञानाभासम् ॥ ९॥ भाषार्थ-सदृश पदार्थमें कहना कि यह तो वही पदार्थ है जिसे पहले देखा था, और उसी पदार्थमें कहना कि यह उसके सदृश है। जैसा कि, एकसाथ पैदा हुए दो मनुष्योंमें, उल्टा ज्ञान हो नाता है बस ; इन दोनों ज्ञानोंको प्रत्यभिज्ञानाभास कहते हैं। भावार्थ-पहले सादृश्य एकत्वादि प्रत्यभिज्ञान बतलाए थे बस ; उन्हीके विपर्यय होनेसे ये प्रत्यभिज्ञान झूठे कहे जाते हैं। तर्कामासका स्वरूपःअसम्बद्धे तज्ञानं तर्काभासम् ॥ १०॥ भाषार्थ-जिन पदार्थोकी परस्परमें व्याप्ति नहीं है उनमें होनेवाले व्याप्ति (अविनाभावसम्बन्ध ) के ज्ञानको तर्काभास कहते हैं। भावार्थ-जोते कि चैत्रके पुत्रोंकी श्यामपनेके साथ व्याप्ति

Loading...

Page Navigation
1 ... 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104