Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 81
________________ - भाषार्थ-शब्द कर्ण इन्द्रियका विषय होता है, यह पक्ष सिद्ध नामका पक्षाभास है क्योंकि जब शब्दका प्रत्यक्षही होगया फिर पक्ष बनाकर सिद्ध करना निरर्थक है। . बाधितपत्नाभासके भेद:बाधितःप्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनैः ॥१५॥ भाषार्थ-बाधित पक्षाभासके प्रत्यक्षबाधित, अनुमानबाधित, आगमबाधित, लोकबाधित और स्ववचनबाधित, ये पांच भेद हैं। प्रत्यनबाधितका उदाहरण :तत्र प्रत्यक्षबाधितो यथा अनुष्णोऽग्निद्रव्यत्वा ज्जलवत् ॥ १६ ॥ . भाषार्थ-उनमेंसे प्रत्यक्षबाधितका उदाहरण इसप्रकार है कि अग्नि ठंडी होती है क्योंकि वह द्रव्य है जो द्रव्य होता है वह ठंडा होता है जैसे जल । भावार्थ-यहां “ अग्नि ठंडी होती है “ यह पक्ष, स्पार्शन प्रत्यक्षसे बाधित है क्योंकि छूनेसे अग्नि गम मालूम होती है। ___ अनुमानबाधितका उदाहरण:अपरिणामी शब्दः कृत्वकत्वाद्घटवत् ॥१७॥ भाषार्थ-शब्द अपरिणामी होता है; क्योंकि वह किया जाता है जो किया जाता है वह अपरिणामी होता है जैसे घट । भावार्थ-यहां " शब्द परिणामी होता हैं क्योंकि वह किया जाता है जो किया जाताहै वह परिणामी होता हैं जैसे घट । इस अनुमानसे, उपर्युक्त पक्षमें बाधा आतीहै इसलिए. वह, अनुमानवाधित है।

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