Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

View full book text
Previous | Next

Page 73
________________ परीक्षामुख व्यावृत्तप्रत्यय कहते हैं कहने का तात्पर्य यह है कि यह वही है, ऐसी प्रतीतिको अनुवृत्तप्रत्यय और यह वह नहीं है ऐसी प्रतीति व्यावृत्तप्रत्यय कहते हैं । દુઃ सामान्यके भेदः - सामान्यं द्वेधा तियगूर्ध्वताभेदात् ॥ ३ ॥ भाषार्थ——सामान्यके दो भेद हैं एक तिर्यक्सामान्य, दूसरा ऊर्ध्वतासामान्य । तिर्यकसामान्यका स्वरूप और दृष्टान्तःसदृशपरिणामस्तिय खण्डमुण्डादिषु गोत्ववत् ॥ ४ ॥ भाषार्थ -- परिणामों की सदृशताको तियर्कसामान्य कहते हैं । जैसे खाँड़ी मुण्डी शाबली आदि गायोंमें सदृशपरिणामरूप गोत्व रहता है । भावार्थ -- सबगायों का समान पारगमन होता है इसलिए सबही को एक गौशब्द पुकारते हैं इसीप्रकार ही सर्वत्र जानना । यहां गोत्र का अर्थ, सदृशपरिणाम लिया है। और वह प्रत्येक गायमें भिन्नता से रहता है - व्यक्तियों के समानही संख्यावाला है, एक नहीं । उर्ध्वतासामान्यका स्वरूप और दृष्टान्तःपरापर विवर्तव्यापिद्रव्यमूर्ध्वता मृदिव स्थासा दिषु ॥ ५ ॥ भाषार्थ — पूर्व और उत्तर पर्यायोंमें रहनेवाले, द्रव्यको ऊर्ध्वता सामान्य कहते हैं । जैसे स्थास कोश कुशूल आदि पर्यायोंमें मिट्टी रहती है । बस ; वह मिट्टी ही ऊर्ध्वोतासामान्यशब्द से पुकारी जाती है । — -

Loading...

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104