Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ ३६ परीचामुख हैं। जैसे पर्वत में अग्नि सिद्ध करने के समय रसोईघर तो सपक्ष होता है; क्योंकि साध्य से सजातीय धर्म वाले धर्मों को सपक्ष कहते हैं, और तालाब विपक्ष होता है; क्योंकि उसमें साध्य (अग्नि) से विजातीय धर्म (जल ) है । अब देखिए कि धूम हेतु का नि साध्य के साथ य अविनाभाव सिद्ध होता है कि तालाब में अग्नि के प्रभाव में धूम नहीं पाया जाला है, यदि पाया जाय, तो धूम और नि के कार्यकारणभाव का भंगरूप बाधकप्रमाण उपस्थित होगा । बस, ऐसे ही विपक्ष में बाधक प्रमाण ( तर्कप्रमाण ) मिलते हैं, जिन्हों से साय के साथ साधन का अविनाभाव निर्णीत होजाता है फिर उदाहरण की आवश्यकता ही क्या ? कुछ भी नहीं । दूसरी बात यह है : - व्यक्तिरूपं च निदर्शनं सामान्येन तु व्याप्ति स्तत्रापि तद्विप्रतिपत्तावनवस्थानं स्याद्दृष्टान्तान्तरापेक्षणात् ॥ ४० ॥ भाषार्थ - - किसी खास व्यक्तिरूप ( महानस या पर्वतरूप ) तो उदाहरण होता है । और सामान्य रूप अर्थात् सम्पूर्ण देश में संपूर्ण काल में तथा संपूर्ण आकारों में रहने वाले साध्य और साधन को ग्रहण करने वाली व्याप्ति होती है । फिर बतलाइए, कि एक व्यक्तिरूप दृष्टान्त, सामान्य रूप व्याप्ति (अविनाभाव ) को कैसे पंहण करसकता है (नहीं कर सकता है) और यदि उस उदाहरण रहने वाले साध्य साधन के विषय में विवाद खड़ा होजाय ; तो दूसरे दृष्टान्त की अर्थात् दृष्टान्त के लिए भी दृष्टान्त की आवश्यकता होगी; जिस से कि अनवस्था नाम का दोष श्रावेगा ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104