Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 60
________________ भाषा-अर्थ। भावार्थ--यहां छायाके अविरुद्धकारण छत्रकी मौजूदगी है। अविरुद्धपूर्वचरोपलब्धिका उदाहरण । उदेष्यति शकटं कृतिकोदयात् ॥ ६८॥ - भाषार्थ--एकमुहूर्तके बाद रोहणींका उदय होगा क्योंकि कृतिकाका उदय होरहा है। भावार्थ--यहां रोहणीके उदयसे पूर्व होनेवाले कृतिकाके उदयकी मौजूदगा है। ___ अविरुद्धउत्तरचरोपलब्धिका उदाहरण । उद्गाद्भरणिः प्राक्तत एव ॥ ६९ ॥ भाषार्थ-एकमुहूर्तके पहलेही भरणिका उदय होगया है क्योंकि कृतिकाका उदय होरहा है । भावार्थ-यहां भरणिके अविरुद्धउत्तरचर, कृतिकाके उदय की उपलब्धि है। ____ अविरुद्धसहचरोपलब्धिका उदाहरण । अस्त्यत्र मातुलिङ्गे रूपं रसात् ॥ ७० ॥ भाषार्थ-इस मातुलिंग ( बिजौरे ) में रूप है क्योंकि रस पायाजाता है। भावार्थ-यहां रूपका अविरुद्धसहचर, रस मौजूद है। विरुद्धोपलब्धिके भेद :विरुद्धतदुपलब्धिः प्रतिशत लाया ॥१॥ भाषार्थ-प्रतिषमताविमा विस्खोसला कमी छह श्रृंदा हैं।

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