Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 65
________________ परीचामुक . भाषार्थ-एकमुहूर्तकालके बाद रोहणीका उदय नहीं होगा क्योंकि अभी कृतिकाका भी उदय नहीं हुआ है। अविरुद्धोत्तरचरानुपलब्धिका उदाहरण । नोद्गाद्भरणि मुहूर्तात्मक्तत एव ॥२४॥ भाषार्थ--एकमुहूर्त पहले भरणिका उदय नहीं होचुका है क्योंकि अभी कृतिकाका भी उदय नहीं हुआ है। भावार्थ-कृतिका का उदय भरगिणके उदयसे पीछे होनेवाला है। अविरुद्धसहचरानुपलब्धिका उदाहरण । नास्त्यत्र समतुलायामुन्नामो नामानुपलब्धेः॥८॥ ___ भाषार्थ-इस तराजूमें उन्नाम ( ऊँचापन ) नहीं है क्योंकि नाम ( नीचेपन ) का अभाव है। . भावार्थ-जब तखड़ी एकतरफ उठती है तब दूसरीतरफ नियमसेही नीची होजाती है इससे सिद्धहोता है कि उसका नीचापन और ऊंचापन साथही होता है। बस; जब नीचापन नहीं है तो वह कहेगा, कि ऊँचापनभी नहीं है क्योंकि वे दोनों एकसाथ होते हैं। अब विधिसाधिका विरुद्धानुपलब्धिको कहते हैं: विरुद्धानुपलब्धिविधौ त्रेधा विरुद्धकार्यकारणस्वभावानुपलब्धिभेदात् ॥८६॥ भाषार्य-विधिसाधिका विरुद्धानुपलब्धिके तीन भेद हैं। विरुद्धकार्यानुपलब्धि, विरुद्धकारणानुपलब्धि और विरुद्धस्वभावानुपलब्धि ।

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