Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ भाषाmernama - भावार्थ-यहाँपर साध्यसे विरुद्धके कार्यादिककी अनुपलब्धि विवक्षित है। विरुद्धकार्यानुपलब्धिका उदाहरण । यथाऽस्मिन्प्राणिनि व्याधिविशेषोऽस्ति निरामयचेष्टानुपलब्धेः ॥ ८७ ॥ भाषार्थ-जैसेकि इस प्राणीमें व्याधि (रोग) विशेष है अर्थात कोई एकरोग है क्योंकि नारोगेचष्टा नहीं पाईजाती है। भावार्थ-व्याधविशेषसे विरुद्ध उसके अभावका कार्य, नहीं पायाजाता है इसलिए अवश्य कोई रोग है । विरुद्धकारणानुपलब्धिका उदाहरण । अस्त्यत्र देहिनि दुःखमिष्टसंयोगाभावात् ॥८॥ भाषार्थ--इस प्राणीमें दुःख है क्योंकि इष्टसंयोगका अभाव है। भावार्थ--दुःखके विरोधी सुखके कारण, इष्टमित्रों तथा कुटुम्बित्रों वगैरह का अभाव है इसलिए अवश्य दुःख है । विरुद्धस्वभावानुपलब्धिका उदाहरण । अनेकान्तात्मकं वस्त्वेकान्तस्वरूपानुपलब्धेः॥८९॥ भाषार्थ--पदार्थ,अनेकधर्मवाले हैं क्योंकि उनमें नित्य आदिक एकान्तस्वरूपका अभाव है। भावार्थ-अनेकान्तसे विरुद्ध-नित्य क्षाणका आदि एकान्तस्त्ररूप-का वस्तुओंमें अभाव है इसलिए वे अनेकान्तात्मक सिद्धहोती हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104