Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 64
________________ भाषा-अर्थ। भाषार्थ-यहाँ शिशपा ( सीसौन ) नहीं है क्योंकि उसके व्यापक-बृक्ष का अभाव है। भावार्थ-जो बहुत देशमें रहे उसको व्यापक कहते हैं। इस रीति से यहां बृक्ष व्यापक है, अब देखिए, कि व्यापक-बृक्ष के विना शिंशपा (व्याप्य ) हो ही नहीं सकता ; इसलिए बृक्षका अभाव, उसके प्रभावको सिद्धकरता है। ___ अविरुद्धकार्यानुपलब्धिका उदाहरण । नास्त्यत्राप्रतिबद्धसामोऽग्नि धूमानुपलब्धेः॥१॥ भाषार्थ-यहाँ विना सामर्थ्य ( शक्ति ) रुकी अग्नि नहीं है क्योंक धम नहीं पायाजाता है । भावार्थ--सामर्थ्य ( शक्ति ) वाली अग्निके विरुद्धकार्यधूम-का यहाँ अभाव है इसलिए मालूम होता है कि यहाँ श्रानि नहीं है, अगर है ; तो भस्म वगैरहसे ढकी हुई है। अविरुद्धकारणानुपलब्धिका उदाहरण । नास्त्यत्र धूमोऽनग्नेः ॥ ८२॥ भाषार्थ--यहाँ धूम नहीं है क्योंकि अग्नि नहीं है। भावार्थ-धूमके अविरुद्धकारण-अग्नि-का अभाव धूमके अभावको सिद्धकरता है। ___अविरुद्धपूर्वचरानुपलब्धिका उदाहरण । न भविष्यति मुहूर्तान्ते शकटं कृतिकोदयानुपलब्धेः ॥८३॥

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