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परीक्षामुख
भावार्थ-इन छहों भेदों के आदि में एक “साध्य से" इतना पद और जोड़ना चाहिए, तब यह अर्थ करना चाहिए कि साध्य से अविरुद्ध के व्याप्य की उपलब्धिरूप यह हेतु है इत्यादि ।
बौद्ध का कहना है कि कार्यहेतु और स्वभावहेतु ये दोनों ही विधि के साधक हैं अन्य नहीं। कारणहेतु तो यों नहीं है कि यह नियम नहीं, कि जहां कारण हो वहां कार्य होवे ही। फिर कारण कार्यको कैसे जना सकता है अर्थात् नहीं जना सकता है । इसका उत्तर यह है :रसादेकसामग्रयनुमानेन रूपानुमान मिच्छद्भिरिष्टमेव किञ्चित्कारणं हेतु यंत्र सामर्थ्याप्रतिबन्धकारणान्तरावैकल्ये ॥ ६०॥
भाषार्थ-रस के चखने से उसकी उत्पादिका सामग्री का अनुमान होता है । वह यह है, कि इस रस की उत्पादिका सामग्री हो गई, यदि नहीं हो गई होती ; तो इस समय रस चखने में नहीं आता। और पाता है । इस लिए एक सामग्री की सिद्धि होती है । फिर उस सामग्री से रूप का अनुमान होता है । वह यह है, कि रस की उत्पादिका सामग्री ने ( रूपस्कंध ने) सजातीय रूपक्षण को उत्पन्न करके ही विजातीय रसक्षण को उत्पन्न किया है। यदि ऐसा न होता; तो रस के समान काल में रूप की प्रतीति नहीं होती। परन्तु होती है । इस से सिद्ध होता है कि उस सामग्री ने रूप को भी उत्पन्न किया है। इस प्रकार रस से सामग्री का और कारण रूप सामग्री से रूप का अनुमान माननेवाले बौद्धों ने कहीं पर