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परीचामुख
इस पर बौद्ध का कहना है कि काल के व्यवधान में भी कार्यकारणभाव होता है जैसे आगामीमरण अरिष्टों (अपशकुनों) का कारण होता है तथा अतीत (गुजरा हुआ) ज्ञान, उद्घोध ( सो करके जागने की अवस्था के ज्ञान ) का कारण होता है। उत्तर यह है:
भाव्यतीतयो मरणजागृवोधयोरपि नारिष्टोबोधौ प्रति हेतुत्वम् ॥ ६२॥
भाषार्थ-आगामीमरण तथा बीताहुअा जागने की अवस्था का ज्ञान, क्रम से अरिष्ट (अपशकुन) और उद्बोध के लिए कारण नहीं है।
भावार्थ- अागामीमरण, अरिष्टोंका कारण नहीं तथा बीताहुश्रा सायंकालका ज्ञान, प्रातःकालके ज्ञानका कारण नहीं है।
उसी में हेतु देते हैं:तब्यापाराश्रितं हि तद्भावभावित्वम् ॥ ६३॥
भाषार्थ-जिसकारण से कि कार्यकारणभाव का होना कारण के व्यापार की अपेक्षा रखता है।
भावार्थ-उसके (कारण के) सद्भाव में उसका (कार्य का) होना कारण के व्यापार के अाधीन है । परन्तु जब मरण है ही नहीं तब उसका अरिष्ट के होने में व्यापार ही क्या होगा जिससे कि कार्यकारणभाव मान लिया जाय । इसी प्रकार जाग्रदोध अब नष्ट ही हो गया तब उसका भी उदाधेके प्रति क्या व्यापार होगा?