Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 54
________________ भाषा - अर्थ | से कहे गए हेतु के दो भेद हैं, एक उपलब्धिरूप, दूसरा अनुपलब्धिरूप । बौद्ध का कहना है कि उपलब्धिरूपहेतु, विधि अर्थात मौजूदगी का ही साधक होता है और अनुपलब्धिरूपहेतु निषेध अर्थात् गैरमौजूदगी का ही साधक होता है इस पर आचार्य अपना मत प्रगट करते हैं:उपलब्धि विधिप्रतिषेधयोरनुपलब्धिश्च ॥५८॥ भाषार्थ - चाहे उपलब्धिरूपहेतु हो चाहे अनुपलब्धि -- रूप | दोनों ही विधि और प्रतिषेध दोनों के साधक हैं । । भावार्थ — आगे के सूत्रों से इस सूत्र का भावार्थ स्पष्ट हो जायगा । परन्तु इतनी बात जान लेना चाहिए कि उपलब्धि के दो भेद हैं । जिन में श्रविरुद्धोपलब्धि (१) तो विधि ( मौजूदगी ) की साधक है और विरुद्धोपलब्धि ( २ ) निषेध की साधक है इसी प्रकार अनुपलब्धि के भी दो भेद हैं जिन में अविरुद्धानुपलब्धि (१) तो निषेध की साधक है और विरुद्धानुपलब्धि (२) विधि की साधक है । विरुद्धोपलब्धि के भेदःअविरुद्धोपलब्धिर्विधौ षोढ़ा व्याप्यकार्यकारणपूर्वोत्तरसहचरभेदात् ॥ ५९ ॥ भाषार्थ —— मौजूदगी को सिद्ध करने वाली, श्रविरुद्धोपलब्धि के छः भेद हैं । अविरुद्धव्याप्योपलब्धि, श्रविरुद्धकार्योपलब्धि, श्रविरुद्ध कारणोपलब्धि अविरुद्धपूर्वच रोपलब्धि, श्रविरुद्धोत्तरचरोपलब्धि, और विरुद्धसहचरोपलब्धि । -

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