Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 51
________________ પુર होती है वहां २ धूम प्रभाव में साधन का परीक्षामुख भी नहीं होता है इस प्रकार साध्य के प्रभाव दिखाना व्यतिरेकव्याप्ति है । उपनय का स्वरूप | हेतोरुपसंहार उपनयः ॥ ५० ॥ भाषार्थ – पक्ष में हेतु के उपसंहार अर्थात् दुहराने को - उपनय कहते हैं । भावार्थ — इस पर्वत में अग्नि है क्योंकि धूम है । फिर कोई एक दृष्टान्त देकर कहा जाता है कि 'उसी तरह इसमें धूम है" अथवा " यह धूमवाला है "। बस ; पहले धूम है, कहा था फिर दुबारा कहा कि "इसमें धूम है' अतएव कहा जाता है कि पक्ष में साधन के दुहराने को उपनय कहते हैं । निगमन का स्वरूप | प्रतिज्ञायास्तु निगमनम् ॥ ५१ ॥ ----- भाषार्थ - प्रतिज्ञा के दुहराने को अर्थात् दुबारा बोलने को निगमन कहते हैं जैसे कि “धूमवाला होने से यह अग्निवाला है" । भावार्थ – निगमन का दृष्टान्त उपनय के भावार्थ से आगे समझना चाहिए | पंचावयव वाक्य आगे कहेंगे । उससे खुलासा हो जायगा । उस अनुमान प्रमाण के भेद कहते हैं :-- तदनुमानं द्वेधा ॥ ५२ ॥ भाषार्थ - उस अनुमान के दो भेद हैं। स्वार्थपरार्थभेदात् ॥ ५२ ॥

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