Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 50
________________ भाषा-मर्थ। N AAMKARMA - दृष्टान्त के भेदःदृष्टान्तो व्धा अन्वयव्यतिरेकभेदात् ॥४७॥ भाषार्थ-दृष्टान्त के दो भेद हैं । एक अन्वयदृष्टान्त दूसरा व्यतिरेकदृष्टान्त । अन्वयदृष्टान्त का स्वरूप । साध्यव्याप्तं साधनं यत्र प्रदर्यते सोऽन्व यदृष्टान्तः ॥४८॥ भाषार्थ-जिस स्थान में, साध्य के साथ साधन की व्याप्ति (अविनाभाव) दिखाई जाय ; उस स्थान को अन्वयदृष्टान्त कहते हैं। भावार्थ-अन्वयव्याप्ति दिखाकर जो दृष्टान्त दिया जाता है उसको अन्वयदृष्टान्त कहते हैं। जहां २ धूम होता है वहां २ अग्नि होती है इस प्रकार साधन के सद्भाव को दिखाकर साध्य के सद्भाव को दिखाना अन्वयव्याप्ति है । व्यतिरेकदृष्टान्त का स्वरूप । साध्याभावे साधनाभावो यत्र कथ्यते स व्यतिरेकदृष्टान्तः ॥ ४९ ॥ भाषार्थ-जिस स्थान में, साध्य के अभाव को दिखाकर साधन का अभाव दिखाया जाय ; उस स्थान को व्यतिरेक दृष्टान्त कहते हैं। भावार्थ-व्यतिरेकव्याप्ति दिखाकर जो दृष्टान्त दिया जाता है उसको व्यतिरेकदृष्टान्त कहते हैं । नहां २ अग्नि नहीं

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