Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 48
________________ भाषा-अर्थ । भावार्थ--उपनय और निगमनका प्रयोग संशयके दूर करने को ही किया जाता है; इससे सिद्ध हुआ, कि उदाहरण से. सन्देह होता है। उपनय और निगमनका स्वरूप आगे कहा जायगा। . ___ यहां नैयायिक कहता है कि उपनय और निगमन भी अनुमान के अङ्ग ( कारण ) हैं, इस कारण जब तक उन का प्रयोग नहीं किया जायगा; तब तक यथार्थ साध्य की सिद्धि नहीं होगी, इसलिए उनका भी प्रयोग करना चाहिए। उत्तर इस प्रकार है : न च ते तदङ्गे साध्यमिणि हेतुसाध्ययोर्वचनादेवासंशयात् ॥४४॥ भाषार्थ-उपनय और निगमन भी अनुमान के अङ्ग नहीं हैं; क्योंकि हेतु और साध्य के बोलने से ही साध्य धर्म वाले धर्मी ( पक्ष ) में सन्देह मिट जाता है । भावार्थ-जब कि हेतु और साध्य के बोलने मात्र से ही पक्ष में संशय नहीं रहता है तब उपनय और निगमन अनुमान के अंग होकर ही क्या करेंगे अर्थात् उनकी निरर्थक कल्पना होगी। दूसरा उत्तर यह है कि थोड़ी देर के लिए उदाहरण आदिक का प्रयोग मान भी लिया जाय; तब भी हेतु का समर्थन तो अवश्य ही करना पड़ेगा; क्योंकि जिस हेतु का समर्थन नहीं हुआ, वह हेतु ही नहीं हो सकता है। सोही कहते हैं:

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