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परीक्षामुल
अब इष्ट तथा अबाधित विशेषणों का फल दिखाते हैं:
अनिष्टाध्यक्षादिबाधितयोः साध्यत्वं मा भूदितीष्टीबाधितवचनम् ॥ २२॥ : भाषार्थ-अनिष्ट तथा प्रत्यक्ष आदिक प्रमाणों से बाधित पदार्थों को साध्यपने का निषेध करने के लिए साध्य को इष्ट तथा अबाधितविशेषण दिए हैं। . भावार्थ-मीमांसक को अनित्य शब्द इष्ट नहीं है। इस लिए वह कभी भी शब्द में अनित्यपना सिद्ध नहीं कर सकता है, बस, इसी के निषेध करने को कहा है कि साध्य वही होगा: जो वादी को इष्ट होगा, इसी प्रकार जो प्रमाण से बाधित होगा वह भी साध्य नहीं हो सकता है । वह बाधित, प्रत्यक्ष से, अनुमान से, आगम से, तथा लोक से, और स्ववचन से इत्यादि बहुत प्रकार का होता है इसका निरूपण पक्षाभास में आगे किया है । 'साध्य का इष्ट विशेषण वादी की अपेक्षा से है :
नचासिद्धवदिष्टं प्रतिवादिनः ॥ २३ ॥
भाषार्थ--जिस तरह असिद्ध विशेषण प्रतिवादी की अपेक्षा से है उस तरह इष्ट विशेषण नहीं; किन्तु वह इष्ट विशेषण वादी की अपेक्षा से है।
उसीको पुष्ट करते हैं :प्रत्यायनाय हीच्छा वक्तुरेव ॥ २४ ॥ भाषार्थ-दूसरे को समझाने की इच्छा वादी (वक्ता ) को