Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 41
________________ परीक्षामुख-- भाषार्थ--धर्म विशिष्ट धर्मी (पक्ष ) को साध्य करने से व्याप्ति ही नहीं बनती है। भावार्थ-जहां २ धूम होता है वहां २ पर्वत ही अग्नि वाला हो, सो तो ठीक नहीं, किन्तु कहीं पर्वत रहेगा, कहीं रसोई घर रहेगा; इस लिए व्याप्ति काल में धर्म विशिष्ट धर्मी ( पक्ष ) साध्य नहीं हो सकता है। बौद्ध मानते हैं कि पक्ष बोलने की ज़रूरत नहीं है। क्यों कि साध्य, विना आश्रय के नहीं रह सकता; इस लिए साध्य के बोलने से ही पन स्वतः सिद्ध हो जायगा । आचार्य स्तर देते हैं:साध्यधर्माधारसन्दहापनोदाय गम्यमानस्यापि पक्षस्य वचनम् ॥ ३४॥ भाषार्थ-साध्य धर्म (अग्नि ) के अाधार में सन्देह (पर्वत है या रसोईवर ) को दूर करने के लिए स्वतः सिद्ध, पक्ष का भी प्रयोग किया जाता है। भावार्थ-यद्यपि साध्य के बोलने मात्र से ही पक्ष उपस्थित होजाता है, तथापि उसमें ( पक्ष में ) सन्देह न हो, इस लिए स्वतः सिद्ध पक्ष का भी प्रयोग करते हैं। उसी को दृष्टान्त से दृढ़ करते हैं:साध्यमिणि साधनधर्मावबोधनाय पक्षधर्मोप संहारवत् ॥ ३५॥

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