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भावाचार्य।
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अब प्रमाणसिद्ध और प्रमाणविकल्पसिद धर्मी
___ में साध्य बतलाते हैं:प्रमाणोभयसिद्धे तु साध्यधर्मविशिष्ठता ॥३०॥
भाषार्थ--प्रमाण (प्रत्यक्ष अनुमान आदि) से और प्रमालविकल से प्रसिद्ध धर्मी में, साध्य धर्म से विशिष्टता अर्थात् संयुक्तता साध्य होती है। - भावार्थ---इन दो धर्मिों में कोई साध्य का नियम नहीं है; जैसा कि विकल्पसिद्ध धर्मी में असत्ता और सत्ता का है।
उसी को दृष्टान्त से पुष्ट करते हैं :अग्निमानयं देशः परिणामी शब्द इति यथा ॥३॥
भाषार्थ----जैसै 'यह प्रदेश अग्निवाला है' यहां पर्वत श्रादि प्रदेश, प्रत्यक्ष प्रादिसे सिद्ध रहते हैं। और "शब्द परिणमनशील होते हैं" यहां शब्द ( पक्ष ) वर्तमान काल वाला तो प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध है; परन्तु भूत और भविष्यत् शब्द विकल्प सिद्ध हैं; इस लिए शब्द रूप पक्ष प्रमाणविकल्पसिद्ध धर्मी है।
व्याप्ति कालमें साध्य का नियमःव्याप्तौ तु साध्यं धर्म एव ॥ ३२॥
भाषार्थ--व्याप्ति के काल में धर्म ही साध्य होता है, धर्म विशिष्ट धर्मी नहीं।
इसी निषेध को पुष्ट करते है:-- अन्यथा तदघटनात् ॥ ३३ ॥