Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 42
________________ भाषा अर्थ । ३३ भाषार्थ — जैसे कि साध्य से युक्त धर्मी ( पक्ष ) में साधन को समझाने के लिए उपनय ( पक्ष में हेतु का दूसरे प्रदर्शन ) किया जाता है | भावार्थ - - इस देश में अग्नि है क्योंकि धूम है जहां २ धूम होता है वहां २ अवश्य अग्नि होती है जैसे रसोईघर । इस प्रकार साध्य ( श्रग्नि ) के साथ व्याप्तिं को रखनेवाले, साधन ( धूम ) को दिखाने से ही, उनका ( साध्य साधन का ) श्राधार मालूम हो जाता है क्योंकि वे विना आधार के रह ही नहीं सकते हैं । फिर आगे जाकर " जैसा रसोई घर धूमवाला है उसी तरह यह पर्वत भी धूमवाला है " यह उपनय अर्थात् ख़ास पक्ष में दुबारा धूम का प्रदर्शन क्यों किया जाता है; इसी लिए न ? कि निश्चित पक्ष में साधन मालूम होजाय । बस, इसी तरह निश्चित पक्ष में साध्य मालूम होजाय । इसी लिए स्वतः सिद्ध होने पर भी पक्षका प्रयोग किया जाता है । अथवा दूसरा उत्तर यह है, कि हेतु का प्रयोग ही नहीं करना चाहिए क्योंकि जब समर्थन किया जायगा अर्थात् यह कहा जायगा कि हमारा हेतु प्रसिद्ध नहीं हैं, विरुद्ध नहीं है तथा अनैकान्तिक भी नहीं है, तब हेतु का प्रयोग स्वतः ही सिद्ध हो जायगा । यदि कहो कि हेतु के प्रयोग विना समर्थन ही किसका होगा । तो हम पूछते हैं कि पक्ष - प्रयोग के विना साध्य कहां मालूम होगा । - इसी को आचार्य उपहास करते हुए कहते हैं:को वा त्रिधाहेतुमुक्त्वा समर्थयमानो न पक्षयति ॥ ३६ ॥ भाषार्थ - कौन ऐसा मनुष्य है जो तीन प्रकार के हेतु को ३

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