Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 23
________________ १४ परीक्षामुख है, परन्तु ज्ञान का कारण नहीं, उल्टा ज्ञान का प्रतिबन्धक है अर्थात् अन्धकार की वजह से घट पट का ज्ञान नहीं हो सकता, रुक जाता है। भावार्थ--यदि पदार्थों को ज्ञान का कारण मानें, तो मौजूद पदार्थों का ही ज्ञान होगा । जो उत्पन्न नहीं हुए हैं अथवा नष्ट हो गए हैं, उनका ज्ञान नहीं होगा, क्योंकि जो है ही नहीं, वह कारण कैसे हो सकता है । और जो आलोक को कारण मानते हैं उन्हें रात्रि में कुछ भी ज्ञान नहीं होगा। यह भी नहीं कह सकेंगे, कि यहां अन्धकार है। ___ उसी को दूसरी युक्तियों से सिद्ध करते हैं:तदन्वयव्यतिरेकानुविधानाभावाच्च केशोण्डुक ज्ञानवन्नक्तंचरज्ञानवच्च ॥ ७ ॥ भाषार्थ---अर्थ और आलोक ( प्रकाश ) ज्ञान के कारण नहीं हैं; क्योंकि ज्ञान का अर्थ , तथा प्रकाश के साथ अन्वय और व्यतिरेक नहीं है । जैसे केश में होनेवाले उण्डुक के ज्ञान के साथ, तथा रात्रि में होने वाले नक्तंचर उल्ल अादि के ज्ञान के साथ । भावार्थ-अर्थ ज्ञान का कारण नहीं है; क्योंकि ज्ञान का अर्थ के साथ अन्वय तथा व्यतिरेक नहीं है जैसे केश में होने वाले उण्डुक के ज्ञान के साथ । सारांश यह है कि केश के होते हुए केश का ज्ञान होता, तो कह सकते थे कि अर्थ ज्ञान का कारण है, परन्तु ऐसा न होकर उल्टाही होता है, कि जो पदार्थ (उण्डुक अर्थात् मच्छर ) है ही नहीं, उसका तो ज्ञान होता है और जो है (केश है) उसका ज्ञान नहीं होता है। इसी को अन्वय व्यतिरेक का

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