Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ परीक्षामुख ज्ञान घट को जानता है, जैसे दीपक घट के आकार को नहीं धारण करके भी घट को प्रकाशित कर देता है। जब कि ज्ञान किसी पदार्थ से नहीं उत्पन्न होकर भी पदार्थों को जानता है, तो एक ही ज्ञान सब पदार्थों को क्यों न जान ले, इसका निषेध करने वाला कौन है ? हमारे ( बौद्धों के ) यहां तो जो ज्ञान जिस पदार्थ से उत्पन्न होगा. वह ज्ञान उसी पदार्थ को जानेगा, अन्य पदार्थों को नहीं ; इस नियम से काम चल जाता है । इसके उत्तर में प्राचार्य कहते हैं: - स्वावरणक्षयोपशमलक्षणयोग्यतया हि प्रति.. नियतमर्थ व्यवस्थापयति, ( प्रत्यक्षमिति शेषः ) ॥ ९॥ भाषाथ--अपने आवरण कर्म के क्षयोपशम रूपी योग्यता से. प्रत्यक्ष प्रमाण, यह घट है, यह पट है, इस प्रकार पदार्थों की जुदी २ व्यवस्था कर देता है अर्थात् क्रम २ से जैसी २ योग्यता होती जाती है वैसे ही पदार्थों को जुदा २ करक विषय करता है । भावार्थ-ज्ञान पर बहुत स ावरण कर्म चढे हुए हैं. फिर घटके ज्ञान को रोकने वाला, अथवा पट के ज्ञान को रोकने वाला, जौन सा प्रावरण कर्म हट जायगा, उसी पदार्थ का ज्ञान विषय कर लेगा दूसरे पदार्थों को नहीं । इससे सिद्ध हुआ कि स्वावरण क्षयोपशम से ज्ञान पदार्थों को जुदी २ क्रम से व्यवस्था करदेता है । फिर पदार्थों से ज्ञान उत्पन्न होता है यह मानने की कोई भी जरूरत नहीं । दूसरी बात यह है, कि नष्ट पदार्थों की व्यवस्थाकैसे होगी ?

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104