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भाषा-अर्थ।
प्रभाव कहते हैं। क्योंकि कारण के होने पर कार्य के होने को अन्वय, तथा कारण के अभाव में कार्य के अभाव को व्यतिरेक कहते हैं । इस रीति के अनुसार केश होने पर केश का ज्ञान होना चाहिए था और उण्डुक के अभाव में उस के ज्ञान का अभाव होना चाहिए था सो नही होता; किंतु इसका उल्टा ही होता है। जिससे सिद्ध होता है कि अर्थ के साथ ज्ञान के अन्वय और व्यतिरेक दोनों ही नहीं हैं । इसलिए अर्थ ज्ञान का कारण नहीं है । इसी प्रकार आलोक भी ज्ञान का कारण नहीं है, क्योंकि ज्ञान का आलोक (प्रकाश) के साथ अन्वय व्यतिरेक नहीं है, जैसे नक्तंचर, उल्लू श्रादि के ज्ञान के साथ। सारांश यह है कि आलोक के होने पर उल्लू पक्षी को ज्ञान नहीं होता हैं और श्रालोक के नहीं होने पर भी रात्रि में ज्ञान होता है, इससे सिद्ध होता है कि आलोक ज्ञान का कारण नहीं है, अगर कारण होता, तो रात्रि में उल्लू को ज्ञान कभी न होता । बौद्ध लोग मानते हैं, कि जो ज्ञान जिस पदार्थ से उत्पन्न
होता है, वह ज्ञान उसी पदार्थ को जानता है, - उससे विपरीतही प्राचार्य कहते हैं:--
अतज्जन्यमपि तत्प्रकाशकंप्रदीपवत् ॥८॥ . भाषार्थ-ज्ञान यद्यपि पदार्थों से उत्पन्न नहीं होता है, तो भी पदार्थों का प्रकाशक अर्थात् जानने वाला होता है। जैसे दीपक घट पट आदिकसे उत्पन्न नहीं होता है. तो भी घट पट अादिक को प्रकाशित कर देता है।
भावार्थ-इसी प्रकार घट के श्राकार नहीं होकर भी