Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 33
________________ परीक्षामुख अग्नि होती है और जहां बाह्न नहीं होती, वहा धूम भी नहीं होता है) के ज्ञान को तर्क कहते है-ऊह कहते हैं। .. भावार्थ-साध्य और साधन के एकवार अथवा वार २ किए हुए दृढ़ निश्चय और पानश्चय से होने वाले, व्याप्ति-ज्ञान को ऊह कहते हैं; परन्तु वह वार २ का दृढ़ निश्चय तथा अनिश्चय क्षयोपशम के अनुकूल होगा, इसमें सन्देह नहीं है। वह व्याप्तिज्ञान इस तरह से प्रवृत्त होता है :इदमस्मिन् सत्येव भवत्यसति तु न भवत्येव ॥१२॥ यथाऽग्नावेव धूमस्तभावे न भवत्येवेति च ॥१३॥ भाषार्थ-यह साधन रूप वस्तु, इस साध्यरूप वस्तु के होने पर ही होती है और साध्यरूप वस्तु के नहीं होने पर नहीं होती है। जिस प्रकार कि अग्नि के होने पर ही धूम होता है और अग्नि के अभाव में नहीं होता है। अनुमान का कारण व स्वरूप । . साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानम् ॥ १४ ॥ भाषार्थ-निश्चित साधन से होने वाले, साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं। भावार्थ-जिस हेतु का साध्य के साथ अविनाभाव निश्चित है, उस हेतु से होने वाले साध्य के ज्ञान की अनुमान संज्ञा है । हेतु (साधन ) का लक्षण । साध्याविनाभावित्वेन निश्चतो हेतुः ॥१५॥

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