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परीक्षामुख
प्रत्यक्ष हो सकता है; जिसका कोई प्रतिबन्धक न हो। इस प्रकार - प्रत्यक्षप्रमाण का वर्णन किया ।
इति द्वितीयः परिच्छेदः ।
अव परोक्ष प्रमाण का निर्णय करते हैं:
परोक्षमितरत् ॥ १ ॥
भाषार्थ -- “विशदं प्रत्यक्षम् " इस सूत्र कर कहे हुए प्रत्यक्ष प्रमाण के सित्राय सर्व प्रमाण (स्मृति श्रादि ) परोक्ष हैं । परोक्ष प्रमाण के कारण और भेद । प्रत्यक्षादिनिमित्तं स्मृतिप्रत्यभिज्ञांनतर्कानुमानागमभेदम् ॥ २ ॥
श्रागम
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भाषार्थ – परोक्ष प्रमाण के प्रत्यक्ष, स्मृति श्रादिक कारण हैं और स्मृति, प्रत्यभिज्ञान तर्क, अनुमान तथा भेद हैं । तात्पर्य यह है कि परोक्ष प्रमाण के पांच भेद हैं । ; और वे परस्पर में कारण हैं तथा प्रत्यक्ष भी उनका कारण है | भावार्थ - स्मरण, पहले अनुभव किए हुए पदार्थ का ही होता है जब कि वह अनुभव (प्रत्यक्ष ) धारणा रूप हो । इस लिए स्मरण का प्रत्यक्ष निमित्त है । इसी प्रकार प्रत्यभिज्ञान में स्मरण और प्रत्यक्ष की ज़रूरत पड़ती है क्योंकि जिस पदार्थ को पहले देखा था, उसी को फिर देख कर "यह वही है जिसको मैंने पहले देखा था " ऐसा जो ज्ञान होता है उसीको प्रत्यभिज्ञान कहते हैं, इसमें स्मरण की और पुनर्दर्शन अर्थात् दूसरी दफ़े वाले प्रत्यक्ष की श्रावश्यकता होता है। इसी प्रकार तर्क प्रमाण में तीनों की अर्थात्