Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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सप्तमाध्यायस्य प्रथमः पादः सिद्धि-(१) श्रीणाम् । श्री+आम् । श्री+नुट्+आम् । श्री+न्+आम्। श्री+ण+आम्। श्रीणाम्।
यहां 'श्री' शब्द से 'स्वौजसः' (४।१।२) से 'आम्' प्रत्यय है। इस सूत्र से आम्' प्रत्यय को नुट्' आगम होता है। अट्कुप्वाङ०' (८।४।२) से णत्व होता है। 'श्री' शब्द की वामि' (१।४।५) से विकल्प से नदी संज्ञा है। नदी-संज्ञा के पक्ष में हस्वनद्यापो नुट्' (७।१।५४) से नुट्' आगम सिद्ध है किन्तु विकल्प-पक्ष में नुट्' आगम प्राप्त नहीं था, अत: छन्दविषय में नित्य नुट्' आगम का विधान किया गया है।
(२) ग्रामणीनाम् । यहां सूत और ग्रामणी शब्दों का इतरेतरयोगद्वन्द्व समास हैसूताश्च ग्रामण्यश्च ते-सूतग्रामण्यः। यहां इस इतरेतरयोगद्वन्द्व समास में शब्द ह्रस्वान्त न होने से ह्रस्वनद्यापो नुट्' (७।११५४) से नुट्' आगम प्राप्त नहीं था, अत: छन्दविषय में नुट्' आगम का विधान किया गया है। नुट्-आगम:
(१२) गोः पादान्ते।५७। प०वि०-गो: पादान्ते ७।१। स०-पादस्य अन्त इति पादान्त:, तस्मिन्-पादान्ते (षष्ठीतत्पुरुषः) । अनु०-अङ्गस्य, प्रत्ययस्य, आमि, नुट, छन्दसीति चानुवर्तते। अव्यय:-छन्दसि पादान्ते गोरङ्गाद् आम: प्रत्ययस्य नुट् ।
अर्थ:-छन्दसि विषये पादान्ते ऋक्पादस्यान्ते वर्तमानाद् गोरगाद् उत्तरस्य आम: प्रत्ययस्य नुडागमो भवति ।
उदा०-विद्मा हि त्वा गोपतिं शूर गोनाम् (ऋ० १०।४७।१)।
आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (पादान्ते) ऋचा के पाद (चरण) के अन्त में विद्यमान (गो:) गो इस (अङ्गात्) अग से परे (आम:) आम् (प्रत्ययस्य) प्रत्यय को (नुट्) नुट्-आगम होता है।
उदा०-विद्मा हि त्वा गोपतिं शूर गोनाम् (ऋ० १० १४७।१)। गोनाम् गौओं का।
सिद्धि-गोनाम् । गो+आम्। गो+नुट्+आम्। गो+न्+आम् । गोनाम्। ।
यहां 'गो' शब्द से 'स्वौजसः' (४।१।२) से 'आम्' प्रत्यय है। इस सूत्र से छन्द-विषय में तथा ऋचा के पाद {चरण) के अन्त में विद्यमान इस 'गो' शब्द से परे 'आम्' प्रत्यय को नुट्' आगम होता है। यहां छन्दोऽधिकार में ऋचा (मन्त्र) का पादान्त ग्रहण किया जाता है, श्लोक का नहीं। पादान्त से अन्यत्र-गवाम्।
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