Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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पाइअ
कहा
संग |
॥ १ ॥
परउवयारगुणो खलु न जाण हिययमि विष्फुरद्द || ८ || उवयारो कितो गुणावहो होइ अप्पणो चैत्र । भूसंतं नयणेसुं कञ्जलमवि सहइ इत्थीणं || ९ || इय चिंतिऊण कुमरो करिणो पुरओ पडं खिंवेऊण । आयडिऊण तत्तो जणयाणं अप्पए कन् ॥ १० ॥ नरनाहो सुणिऊणं वृत्तंत हरिसनिन्भरो कहवि । चिंत कुमरस्स गुणे घीरिमउवयार करुणाओ ॥ ११ ॥ घणघणसिरी उ धणत्रईकनं गहिऊण कुमरगयचिचं । सिंहलसीहस्स परोवयारिणो दिति निवसक्ख ॥। १२ ।। सिट्ठिधूया कुमरेण पाणिग्गहणं करेह नरनाहो । नियविश्वसारवियरण अदरिदं कुणइ सयलजणं ॥ १३ ॥ परिममह जत्थ कुमरो असुहयसिरोमणी गुणावासो । सयलो वि रमणिवग्गो न तस्स पुट्ठि चयह कहवि ॥ १४ ॥ समर्थमि जंमि कुमरो कीला पयाइ वीमि । समयंमि तंमि तरुणीण हुंति विविहाउ चेट्ठाओ ।। १५ ।। हारं बंध चरणे गीवार नेउरं मसीहा । विरेयइ ललाङबट्टे तिलयं नयणेसु खलु का वि ।। १६ ।। का वि उस्सुयमणा सुओत्ति कुणिउं कडीए मञ्जरं । मग्गमि जाइ सिग्धं जणेहिं निहुअं हसिअंती ॥ १७ ॥ का विहु वेदिअंती वायसनियरेण हत्थठिकवला । कर कर कर त्ति (१) सुणिरी लञ्जइ सयमेव लोए ।। १८ ।। का वि सकोत्रा पभणइ इले ! हले ! सुणसु वयण मज्झमिणं । रुद्धो सयलो वि पहो तुज्झ नियंत्रेण 'चिउलेण ।। १९ ।। पत्रणुड्डिअ दूरगयं न मुगइ उत्तरियअंसुर्य का वि । कुमरं अवलोयंती देती तरुणाण परिओसं ।। २० ।। का वि पर्यपह बुड़े ! निरत्थयं कह पहो तर रुद्धो १ । धम्मस्स एस
C६ भइऊसुयमणा B C
१ परोवयारगुणो वि हुन C ७ चुणिरी C ८ पिहुलेण C |
२ खवेऊन C ३ सोऊ BC
४ चलणे C
५ विअर६ A वियर
दानविषये धनदेव
धनदत्तकथानकम् ।
॥ १ ॥

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