Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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विवाहो ॥ ७२ ॥ तो निवणागो गच्छ पहिओ वि हु सुंदरीए सह रयणिं । मणिमयपईवरम्मे चिठ्ठद्द सो वासवर्णमि ॥ ७३ ॥ अह भजं मोत्तूणं सो तं रयणीए जाइ सिद्धवडे । राया नियधवलगिहे पुव्वविहाणेण संपत्तो ॥ ७४ ॥ खणनिद्दाविगमेण चित हियमि सुंदरी दुहिया । मणवंछियपाणपिओ न लग्गओ कह व मज्झ करे ।। ७५ ।। ता किं मह जीएणं १ किंवा भोगेहिं दुक्खजणगेहिं ? । एवं पत्ते काले मरणं चिय मज्झ वरि सरणं ॥ ७६ ॥ उक्तं च किं भणिमो लोयाणं जणसामन्ने विवदाणेण । नूणं दिजंति सया नेहमि सुहेण पाणात्रि ॥ ७७ ॥ ताउ चिय धन्नाओ सवं चइऊण जाउ धिप्पंति पंचमहव्वयसरणं सीलं पालंति सयकालं ॥ ७८ ॥ जाहिं न नाओ दहओ न य मोगा तह य नेत्र पेम्मं पि । धन्नाउ संजईओ ताउ चिय सुक्खखाणीओ ॥ ७९ ॥ उक्तं च- नूगं दुक्खसमेओ नेहो दिव्वेण निम्मिओ भुवणे । जाणं हवे हो हवन ताणं सुहं जेण ।। ८० ।। धन्नाउ संजईओ आबालाओ वि जाण हिययमि । तवदहणेण विलीणो मयणो मयणु | लीला || ८१ ॥ दुमज्झं पि हु सिज्झई सीलपहावेण चिंतियं लोए । पाणचए वि एवं मोत्तन्वं नेत्र धीरेहिं ॥ ८२ ॥ अन्नभवे विहु जीयं हवे मणवंछिओ चि पाणपिओ । न हु सीलखंडणाए हरियं पुत्रं हवइ कह वि ॥ ८३ ॥ मणवंछिओ न दइओ इहजम्मसुहाण भायणं मज्झ । वयगहणं पि हु काउं न खमा परलोयसुहजणणं ॥ ८४ ॥ एवं विणिच्छिऊणं पाणच्चायं मणमि धरिऊणं । तत्थेत्र वासगेहे सज्जइ पासं निए कंठे ॥ ८५ ॥ जड़ मणसा विहु अनो न वंछिओ विकमाउ [ ए ] नरो । ता परभवे वि सो च्चिय दविज सीलप्पहावेण || ८६ ॥ इय मणिउं वत्थंचलमवलंब जाव कंठपासत्थं । ता नियइ अक्खराई तंबोलरसेण लिहियाई ।। ८७ ।। सिरिविकमनरनाहो तुह लेहेणं समागओ इत्थ । सो नियनयरंमि

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