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वीर संवत् २४७८ विक्रम संवत् २००८
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मईम्
आचार्यश्रीमद्विजयदान सूरीश्वरजी - जैनप्रन्थमालायाः पञ्चचत्वारिंशं रत्नम् सिरिपउम चंदसू रिसीस विरइय विकम सेणचरियन्तंग्गय
पाइअकासंग |
प्रकाशयित्री - आचार्य श्रीमद्विजयदानमूरीश्वरजी जैन ग्रन्थमाला - गोपीपुरा-सुरत. सम्पादक-संशोधको सिद्धान्तमहोदधि आचार्यश्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरपट्टप्रभावक व्याख्यानवाचस्पति आचार्य श्रीमद्विजयरामचन्द्रसूरीश्वर शिष्यो पं. श्रीमानविजयः पं. श्रीकान्तिविजयश्च
पण्यम् - रूयकद्वयम्
इदं पुस्तकं भावनगरपुर्या महोदयमुद्रणालये गुलाबचन्द्र लल्लुभाई द्वारा मुद्रापयित्वा प्रकाशितम् ।
क्राइष्ट सन १९५
प्रतयः ५००
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पाइअकहासंगहे।
पृष्ठम्
पत्रकम्
A
२/२
शुद्धिपत्रकम्
भशुद्धः रिद्धि चितिऊन रयणवई विहष 'वुक्खियमणा
८/२
-
१६/२
वेअणा
२५
as.xis...*
शुद्धः 'रिदि चिंतिऊण रयणवईविश्व दुक्खियमणा चेमणा आणिस्सइ कंपि पत्ताई धुरधवलो निदियकम्म सेसं (सेसाई) याइनासो बहुपवण एगागिर्णि
आणि( हरि )स्सा कपि पुचाई 'धूरधवलो निदिय कम्म सेसं (१) 'याइ नासो बटुं पवण' एयागिणिं
३१/२ ३४/१ ३९/१ ४१/२ ४२/१ ४३/२ ४४/१ ४५/२
CHHA
धरः
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१
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अनुक्रमणिका
दानविषये धनदेव घनदत्तकथा सम्यक्त्वप्रभावे धनश्रेष्ठिकथा दानविषये चंडगोवालकथा कृपणश्रेष्ठिकथा शीलप्रभावे जयलक्ष्मीदेवीकथा सुन्दरीदेवीकथा
35
23
नवकारफले सौभाग्यसुन्दरकथा तपोविषये मृगाङ्करेखाकथा
अघटकथा
23
भावनाप्रभावे धर्मदत्तकथा
बहुबुद्धिकथा
32
अनित्यताविषये समुद्रदत्तकथा
पृ४
ARREARRRA
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"
"
"
१
६/१
८/२
११/२
१४/२
१८/२
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२९/२
३३ / २
३७/१
४१/१
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प्रकाशकीय निवेदन
पाइअकहासंगहे।
& प्रकाशकीय PI निवेदन
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अमने जणावतां अतिहर्ष थाय छे के-सदरहु संस्था तरफथी अत्यार सुधीमा ४४नी संख्यामां नाना मोटा ग्रन्थो तथा प्रतिओ प्रकाशित करवामां आवेल छे. जेमांना केटलाक तो अमुद्रित हता. तेवी रीते अत्यार सुधी कदि नहि प्रकाशित थयेल आचार्य सिरिपउमचंदमूरिसीसविरइयसिरिविक्कमसेणचरिय प्राकृत कथानकनी अन्तर्गत, दान-शीयल-तप-भावना-सम्यक्त्व-नवकार तथा अनित्यता वगेरे उपर दर्शावेल चौद कथाओ पैकी मळेल बार कथाओनो संग्रह करी पाइअकहासंगह नामनो आ ग्रन्थ सिद्धान्तमहोदधि आचार्य श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराजना पट्टप्रभावक-व्याख्यानवाचस्पति आचार्य श्रीमद्विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजीना विद्वान् शिष्यो पूज्य पंन्यासजी श्रीमानविजयजी महाराज तथा पूज्य पंन्यासजी श्रीकान्तिविजयजी महाराजे सम्पादित तथा संशोधित करी आपेल छे. तेने आ संस्थाना ४५ मा प्रन्यांक तरीके वाचकजनोना करकमलमां रजु करवा आजे अमे भाग्यशाली थया छीए.
श्रा प्रन्थनी महत्ता अंगेनो ख्याल सम्पादकीय वक्तव्यमां आपेल होवाथी अमारे ते संबंधी कइ पण लखवार्नु रहेतुं नथी. आ ग्रन्थ छपाववामां कोईनी पण सहाय मळेल नथी. आधी आ अन्य तैयार करवामां जे खर्च थयेल छे, ते प्रमाणमांज किंमत
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रास्ववामां बावेल छे. या संस्थानो उद्देश पोताना कोई पण प्रकाशनमाथी नको नहि लेवानो होवाथी पडतर किंमत राखवा छतां पण लेजर कागल तथा सारी छपाईना अंगे खर्च वधु आववाथी, राखवामां बावेली किंमत वाचकजनोने कदाच वधु लागे तो क्षन्तव्य गणशे एम अमे आशा राखीये छीये. ___सदरहु ग्रन्थना सम्पादक तथा संशोधन- कार्य बन्ने पूज्य पंन्यासजी महाराजाओए करी आपी ज्ञानप्रचारना अमारा आ कार्यमा जे मदद करी छे ते बदल आ संस्था तेओश्रीनो घणो आभार माने छे अने एमना तरफथी आवी मदद अमारी संस्थाने वधुने वधु मळे एम अमे इच्छीए छीए, ____ गोपीपुरा-सुरत.
लि. श्री विजयदानसूरीश्वरजी जैन ग्रन्थमाला वि. सं. २०१८ ज्येष्ठ सुद २ )
व्यवस्थापक-मास्तर हीरालाल रणछोडमाई
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पाइअ
कहा
संगहे ।
॥ ३ ॥
1924-36
सम्पादकीय - वक्तव्य
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पाइअकहा संगह नामना अद्यावधि अप्रगट आ ग्रन्थमां श्रीपद्म चन्द्रसूरिशिष्यविरचित विक्रमसेनचरित्रनी अंदर मावती चौद कथाओ पैकी चार कथाओनो संग्रह छे. शक्य तपास करवा छतां पण संपूर्ण विक्रमसेनचरित्र प्राप्त न थवाथी जे बार कथाओ मळी ते उपयोगी अने भाववाही लागवाथी संग्रहित करी आ मन्थरूपे मुद्रित करावी छे.
ग्रन्थ परिचय - आ प्रन्थमां संग्रहित कथाओ विक्रमसेनचरित्रनी छे. ते परिश्रमां अन्यान्यविषयनी चौद कथाओ छे, जे नीचे आपला लोको उपरथी जाणी शकाशे
" तिसलाकुच्छिसरोवर कलहंसं वीरजिणवरं नमिउं । दुजय अंतररिउविजयपत्तं सिवरमणी सोखमरं ।। १ ।।
X
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श्यणत्तयजुत्ताणं गुरूणं [ सिरि ] पउमचंदसूरीण | मंदमई वि पसाएण किं पि जंपेमि उवएसं ॥ ५ ॥
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अह विक्कम सेणनराहिवस्स पभणेमि चरियमिणं । सम्मत्तलाह ु सङ्घट्टविमाणगमनंतं ।। २० ।। इह पुढं सम्मत्ते चरियं धर्ण सिट्टिणो समक्खायं । अह दाणे घणदेवो धणदत्तो भाउणो दोनि ॥ २१ ॥
सम्पादकीय वक्तव्य
॥ ३ ॥
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नामेण मयणसेणो वेसामयणो ति कुंमयारो य । चंडो गोवालो चिय किंविणो दाणंमि चत्तारि ॥ २२ ॥ सीमि य जयच्छी देवी तह सुंदरी दुवे इत्थ । खयरी मयंकरेहा अघडेनिवो दोन्नि तवम्मि ॥ २३ ॥ सिट्टी य धर्मदत्तो बहुबुद्धी नाम मंतिणो पुत्तो । एए दुनि वि कहिया दिता भावणाविस | २४ ॥ नवकारफले भणिओ निवई सोहग्गसुंदरो नाम । कहिओ अणिच्चयाए समुदैदत्तो वणियवृत्त ।। २५ ।। नियमस्स फले मणियो कमलो नामण सिट्टिणो पुत्तो । चउदम कहाणयाई नेयाई समासओ कमसो ॥ २६ ॥ [ पाटणना संघवीना पाडाना ताडपत्रभंडारना डा. नं. ६५ / ४ नी नंबर १ नं प्रति उपरथी ]
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आ लोकोमां जणावेळी चौद कथाओ पैकी बार ज कथाओ अमने मळी शकी छे. जे अन्यत्र आपली अनुक्रमणिका उपरथी जोई शकाशे.
ग्रन्थकार परिचय - उपर प्रन्थ परिचयमां जगावेला पांचमा श्लोक उपरथी आ मन्थना कर्त्ता श्री चन्द्रसूरिना शिष्य छे एटलं ज जाणवा मळे छे, परन्तु तेमना नाम वगेरें संबंधी बीजी कशी ज हकीकत शक्य तपास करवा छतां मी शकी नथी.
प्रतिपरिचय - आ मन्थना सम्पादनमां अमे त्रण ताडपत्रनी प्रतिओनो उपयोग कर्यो छे, तेनी A B C एत्री संज्ञा राखी छे. A संज्ञक प्रति-आ प्रति पाटणना संघवीना पाडाना भंडारनी छे. तेनो तत्रत्य जूनो डा नं. २९५ अने नबो डा. नं. ६५ / ४ छे अने पत्र संख्या ७८ छे. आ प्रतिमां शरुआतगां लगभग साठ उपरांत लोक विक्रमसेनचरित्रने अंगे आपेला छे. एमां पहेली कथा सम्यक्त्व उपर धनश्रेष्ठिनी छे तथा छेही चौदमी कथा नियमना फल उपर कमल नामना श्रेष्ठपुत्रनी छे. शरुआतना
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पाइअकहासंगहे।
RORSCA
सम्पादकीय वक्तव्य
% A
श्लोकोमांधी १-५ अने २० थी २६ सुधीना एम कुल नब श्लोको अत्रे अमे आ वक्तव्यमा एटला ज माटे आप्या छे के एना आधारे प्रन्यनुं नाम, प्रन्थकारना गुरुनु नाम अने ग्रन्थनी वस्तु सौ कोईना ख्यालमा आवी शके. आ प्रति अपूर्ण होवाथी चौद कथाओ पैकी अघटकुमार सुधीनी आठ ज कथाओ आमा छे. क्रमसर गणतां अघटकुमारनी कथा नवमी थाय छे. परन्तु आ प्रतिमा त्रीजी मदनसेननी कथा नथी. एटले आठ ज कथाओ छे. B अने संज्ञक प्रतिओमां पण आ मदनसेननी कथा मळी शकी नथी. तेवी रीते चौदमी श्रेष्ठिपुत्र कमलनी कथा पण त्रणे प्रतिओमाथी एके प्रतिमा मळी नथी. एटले आ बे कथाओ अमे आपी शक्या नथी. आ प्रति सारी हालतमा छे. पुष्पिका आदि काई पण',एमां नथी.
Bसंज्ञक प्रति-आ प्रति पण उपर्युक्त भंडारनी ज छे. तेनो तत्रत्य जूनो हा नं. ४८ अने नवो डा.नं. १५७/१ छे. पत्र संख्या १५४ छे. आ प्रतिने अनेक स्थळे उधेइए जर्जरित करी क्षत-प्रहत करी नांखी छे. पत्र ५३ थी ५७ सुधीना पांच पत्रोमा तो जमणी वाजुनो लगभग एक षष्ठांश भाग तो अलग थई गयेलो होवाथी खोवाइ गयेलो छे. ए भाग ग्रन्थपालनी बिनकाळजीथी के उपयोग करनारा पैकी कोईनी बेदरकारीथी खोवायो छे तेनी अमने माहिती नथी. परन्तु आq तो केटलीए महामूली प्रतिओ माटे वन्यु हशे ते तो ज्यारे भंडारोनी प्रत्येक प्रतिओ बारीकाइथी तपासवामां आवे त्यारे ज प्रामाणिकपणे कही शकाय.
आ प्रतिना डामडा उपर द्वादश कथा एव॒ नाम आपेलुं छे अने तेमां पत्र १ थी १४१ सुधीमां आ ग्रन्थमा संपादन करेली बारे कथाओ विक्रमसेन चरित्रमाथी उद्धार करीने लखेल छे अने तेनी पछी पत्र १४१ थी १५४ उपर अमरचन्द्रमरिकत विभक्तिविचार प्रकरण छे. जेनुं संपादन अमे विक्रम संवत २००६ मा कयु छे. आ प्रतिमां पण पुष्पिका आदि कोई ज नथी.
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संक्षक प्रति-आ प्रति पाटणना तपागच्छीय ताडपत्र भंडारनी छे. एनो तत्रत्य डा. नं. २. छे. आ प्रतिमा मात्र एक धनदेव-धनदत्तनी कथाज छे. जे पत्र २०० थी २०८ उपर छे. आ प्रतिना अंतमा नीचे प्रमाणे उल्लेख छे.
संवत् १३९८ वर्षे पोष सुदि ७ सोमे कथाद्वयं लिखितमिति
ग्रन्थ रचनाकाळ-A संज्ञक प्रति अपूर्ण छे, एटले तेना उपरथी प्रन्थनी रचना क्यारे थई तेनो निर्णय थई शके तेम नथी. B संज्ञक प्रतिमां कथाओनो फक्त उतारो ज करवामां आवेलो छे, एटले तेमा आधारे पण रचनाकाल मळी शके तेम नथी. तेम तेनी अन्ते पुष्पिका पण नथी के जेथी कोई पण जातर्नु अनुमान थई शके. त्रीजी संज्ञा प्रतिना अन्ते पुष्पिका छे, जे जोतां ते प्रति १३९८ मां लखायेली छे, एटले मूल ग्रन्थ विक्रमसेनचरित्रनी रचना ते पहेलानी होवी जोईए ए निश्चित छे. छता केटला वखत पहेलानी ते रचना छे ते निश्चित कही शकाय नहि. परन्तु प्रन्थ घणो प्राचीन छे ए तो निर्विवाद छे.
ऋणस्वीकार-आ सम्पादनमा अमने संघवीना पाडानी के प्रतिओ पटवा सेवन्तिलाल तरफथी अने तपागच्छीय भंडारनी प्रति पूज्य मुनिराज श्री जशविजयजी महाराजनी प्रेरणाथी तेना कार्यवाहक तरफथी मळी छे. तेथी अमारा आ कार्यमांसहाय करवा बदल ते दरेकनो आभार मानीये छीए. आ प्रन्थ छपाया बाद स्वाध्यायरसिक पूज्यपाद पंन्यासजी महाराज श्रीमान मुक्तिविजयजी गणिवर ध्यानपूर्वक वांची गया छे अने केटलीक अशुद्धिओ तरफ अमाझं ध्यान दोयु छे, ते बदल तेओश्रीनो अत्यन्त उपकार मानीए छीए.
उपसंहार-आ ग्रन्थमा त्रण प्रतिओनो उपयोग करवा छतां मुख्यता B संज्ञक प्रतिनी राखी छे. आम छतां ज्यां बीजी प्रतिनो पाठ तेना करतां वधु संगत लाग्यो छे त्यां तेने मुख्य करी बाकीनी प्रतिना पाठने फुटनोटमा पाठान्तर तरीके मूक्यो छे. ज्यां
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पाइअ
सम्पादकीय वक्तव्य
कहासंगहे।
अक्षरो कपाई गयेला छे त्यां अमे नवा मूकेला अक्षरो[ ] आवा कौंसमा मूक्या छे, अने जे अक्षरो अमारा ख्यालमां आवी शक्या नथी त्यां तेटला अक्षरोनी आ प्रमाणे+++++ जग्या खाली राखी छे. ज्यां कोई पाठ अशुद्ध लाग्यो छे त्यां ( ) आवा कॉसमां अमने शुद्ध जणायेलो पाठ मूक्यो छे. ज्यां कोई नवो अक्षर वधारवानी जरुर लागी छे त्यां [ ] आवा कौंसमां तेटला अक्षरो मूक्या छे, अने व्यां अमने अर्थनो ख्याल नथी आव्यो त्यां (?) आq चिह कयु छे. कथाओनो क्रम जे विक्रमसेन चरित्रमा छे ते द्वादश कथानी प्रतिमा नथी, ज्यारे आ प्रन्थमा बन्नेथी भिन्नक्रमे कथाओ गोठववामां आवी छे जे अनुक्रमणिका उपरथी जोई शकाशे.
प्रान्ते जणाववानुं के शक्य काळजी राखवा छतां चक्षुदोषथी, मतिमान्द्यथी के प्रेसदोषथी जे कोई अशुद्धिओ रही गयेली छे तेनुं शुद्धिपत्रक ा साथे दाखल करवामां आव्यु छे, छतां ते उपरांत कोई अशुद्धि जणाय तो तेने क्षम्य गणी विद्वानो सुधारीने वांचशे अने अमने जणावशे एवी अमारी नम्र विज्ञप्ति छे.
मानविजय तथा कान्तिविजय.
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नमः श्रीवर्द्धमानस्वामिने ।
सकलागम रहस्य वेदि -आचार्य श्रीमद्विजयदानसूरीश्वरेभ्यो नमः । सिरिपउमचंद रिसीस विरश्यविकम सेणचरियन्तग्गय
पाइअकहासंगह |
दानविषये धनदेवधनदत्तकथानकम् - जो दाणं मत्तीए वियरह सो पावर विउलरिद्धिं । धणदेवो घणदत्तो सहोय इत्थदिता ॥ १ ॥ सिंहलदीवो दीवो नरनाहो सिंहलेसरो तत्थ । मजा सिंहलनामा सिंहलसीहो सुओ ताणं ॥ २ ॥ सिंहलसीहो पत्तो वसंतसमयंमि बाहिरुजाणे । हाहारखं तहिं सो निसुणेई कन्नसलं व ॥ ३ ॥ किं १ किं १ किं ? ति भणतो गओ
जाता सोनियई । एवं कन्नं मयगलकरसंनिहियं विलवमाणि ॥ ४ ॥ न हु ताय ! रक्खसि तुमं जणणि ! तुमं पि हु करेसि नो करुणं । कुलदेवयाउ ! तुम्हे वि इह समए कत्थ वि गयाओ १ ।। ५ ।। किं अस्थि कोइ पुरिसो करुणाउवयारसाहससमेओ १ । जो मं रक्खइ सिग्धं एयाओ करिकयंताओं ॥ ६ ॥ तं पिच्छिअ सो चिंतह दीणस्स करेड़ जो न उवयारं । सो किं नेव विलीणो जणणीए उयरमज्झमि ॥ ७ ॥ उक्तं च- किं ताणं जम्मेण वि जणणीए पसवदुक्खजणगेण । १ तुम्हि वि AB
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पाइअ
कहा
संग |
॥ १ ॥
परउवयारगुणो खलु न जाण हिययमि विष्फुरद्द || ८ || उवयारो कितो गुणावहो होइ अप्पणो चैत्र । भूसंतं नयणेसुं कञ्जलमवि सहइ इत्थीणं || ९ || इय चिंतिऊण कुमरो करिणो पुरओ पडं खिंवेऊण । आयडिऊण तत्तो जणयाणं अप्पए कन् ॥ १० ॥ नरनाहो सुणिऊणं वृत्तंत हरिसनिन्भरो कहवि । चिंत कुमरस्स गुणे घीरिमउवयार करुणाओ ॥ ११ ॥ घणघणसिरी उ धणत्रईकनं गहिऊण कुमरगयचिचं । सिंहलसीहस्स परोवयारिणो दिति निवसक्ख ॥। १२ ।। सिट्ठिधूया कुमरेण पाणिग्गहणं करेह नरनाहो । नियविश्वसारवियरण अदरिदं कुणइ सयलजणं ॥ १३ ॥ परिममह जत्थ कुमरो असुहयसिरोमणी गुणावासो । सयलो वि रमणिवग्गो न तस्स पुट्ठि चयह कहवि ॥ १४ ॥ समर्थमि जंमि कुमरो कीला पयाइ वीमि । समयंमि तंमि तरुणीण हुंति विविहाउ चेट्ठाओ ।। १५ ।। हारं बंध चरणे गीवार नेउरं मसीहा । विरेयइ ललाङबट्टे तिलयं नयणेसु खलु का वि ।। १६ ।। का वि उस्सुयमणा सुओत्ति कुणिउं कडीए मञ्जरं । मग्गमि जाइ सिग्धं जणेहिं निहुअं हसिअंती ॥ १७ ॥ का विहु वेदिअंती वायसनियरेण हत्थठिकवला । कर कर कर त्ति (१) सुणिरी लञ्जइ सयमेव लोए ।। १८ ।। का वि सकोत्रा पभणइ इले ! हले ! सुणसु वयण मज्झमिणं । रुद्धो सयलो वि पहो तुज्झ नियंत्रेण 'चिउलेण ।। १९ ।। पत्रणुड्डिअ दूरगयं न मुगइ उत्तरियअंसुर्य का वि । कुमरं अवलोयंती देती तरुणाण परिओसं ।। २० ।। का वि पर्यपह बुड़े ! निरत्थयं कह पहो तर रुद्धो १ । धम्मस्स एस
C६ भइऊसुयमणा B C
१ परोवयारगुणो वि हुन C ७ चुणिरी C ८ पिहुलेण C |
२ खवेऊन C ३ सोऊ BC
४ चलणे C
५ विअर६ A वियर
दानविषये धनदेव
धनदत्तकथानकम् ।
॥ १ ॥
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PRESHARINCRECRUECALCCADA
समओ तरुणाण पलोयणे न उणो । २१ ।। अप्पाणं रमणीओ तिसि छुहियं 4 नो विआणति । आगच्छंति सगेहे कुमरे पत्तंमि घवलहरे ॥ २२॥ अन्नदिणे सिट्ठिजणो निवई विनवह देव ! अन्नाओ । न गिहे दीसह रमणीलोओ कुमरे पहिभमंते ॥२३।। सोहग्गरूवगुणगणसंजमिओ इव चएइ न कुमारं । रमणिजणो ता तं तह कुणसु जहा ठाइ नियगेहे ॥२४॥ आम ति पमणिऊणं कयसम्माणं विसज्जए लोयं । किंकायविमूढो राया चिंताउरो जाओ ॥ २५ ॥ हक्कारिऊण मणिओ मा हिंडसु कुमर ! नयरमझमि । झिजह तुह लायण्णं पिजंतं तरुणिनयणेहिं ॥ २६ ॥ अहिमाणधणो मुणिउं चित्तं निवइस्स चिंतए कुमरो । नियगुणगणो वि मज्झं संजाओ सत्तुवग्गसमो ।। २७॥ धिद्धी मह जम्मो वि हु लोयाणं दुक्खकारण जेण । ता जह सुहिओ लोओ हवेइ तं चिय लहु करिस्सं ॥ २८॥ इय सो विसन्नचित्तो कहकहमवि गमइ जाव सैयलदिणं । ता मुणिमाणसा पिययमा वि तं पुच्छइ सदुक्खं ॥ २९ ॥ मज्झ सवहेण धिप्पसि सच्च चिय कहसु तुज्झ किं दुक्खं । कुमरो विसायकारणमह कहिउं तं पयंपेह ॥ ३० ॥ कायवं अन्ज मए गमणं देसंतरंमि दूरंमि । ता दइए! मायगिहे चिट्ठ तुम कइवयदिणाई ॥३१॥ सा पडिभणेइ पिययम ! जुत्तं वुत्तं तए इमं वयणं । छाय व तुज्झ पासं न उणो चइउं अहं सक्का ॥३२॥ ता मुणिआभिप्पाओ गहिऊणं धणवई रयणिमझे । वासभवणाउ कुमरो विणिग्गओ तह य नयराओ ॥ ३३ ॥ गच्छंतो संपत्तो समुद्दकूले कमेण सो कुमरो । आरुहइ जाणवत्तं पियाए सहिओ तो तत्थ ।। ३४ । पडिकूलमारुएणं फुटुं तं धणबई वि दिव्ववसा । लहिऊण फलहखंडं संपत्ता तीरभायम्मि ॥ ३५ ।। संपत्तफलहखंडो पिओ वि जइ जीविओ कहवि होजा ।
१ कुमरं C। २ इयमार्या A B प्रत्योनास्ति । ३ दिवसमिणं CI ४ तायगिहे CI
CREDICAECRECAUSA
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पाइअ
कहासंग |
॥ २ ॥
इय आसाए तीए चत्तं न हु जीवियं तत्थ ।। ३६ ।। उक्तं च-- वल्लहविरहे लोओ जं न मरह जलणदाहतुले वि । तं तस्स पुणवि संगम आसा अमिएण संकंतो ॥ ३७ ॥ गच्छंती वसिमेणं कुसुमपुरं घणवई वि संपत्ता । पियमेलयंमि तित्थे तवड़ तवं तत्थ सा दुसहं ॥ ३८ ॥ सिंहलसीहविओए अभिग्गहं गिण्हए इमं बाला । जह दइयं पिच्छिस्सं ता मोणवयं परिचसं ।। ३९ । सिंहलसीहो वि तर्हि पत्तेणेकेण फलहखंडेण । तरिऊणं जलरासिं रयणउरं पुरवरं पत्तो ॥ ४० ॥ तत्थ नइतीरदेसे निसुणिय दुसहं जणस्स अकंदं । पुच्छ एवं पुरिसं किमेयमह सो पयंपेइ ॥ ४१ ॥ इह रयणपहो राया पाणपिया रयणसुंदरी तस्स । रयणवई ताण सुया भुयगेणं अज सा डसिया ।। ४२ ।। गारुडिएहिं विमुक्का मुय त्ति काऊण तो चियामज्यो । पक्खित्ता जलणो वि हु पउणो तेणेस अकंदो ॥ ४३ ॥ अह भणइ तस्स समुहं कुमरो दंसेसु तं निवइकनं । जर पुण जीवद्द कहमवि एसा मह मंतजंतेहिं ॥ ४४ ॥ सुणिऊण तस्स वयणं पुरिसो तं नेह निवइपासंमि । भणइ अ एसो कुमरिं जीवाविस्सर कुणह दिहं ॥ ४५ ॥ दंसेह निवो कुमरिं चिंधाणि मुणित्तु चितए कुमरो । जीवइ एसा अजवि ता सर्त्ति कंपि पयडेमि ।। ४६ ।। दाऊण अंतरपडे चउद्दिसिं पवरमंतजोगेहिं । पउणीकया कुमारी तो सयलं हरिसियं नयरं ॥ ४७ ॥ राया नयरे धूयापहियजुओ पविसए विभूईए । तेण समं कन्नाए कुणेइ वारिजयं ज्झति ॥ ४८ ॥ भूमीए सुअइ कुमरो भं पाले घणवइविओए । रयणवइए पुट्ठो कह न तुमं सुयसि पल्लेके १ ।। ४९ ।। जइ कहियह सच्चं चिय ईसारोसं कुणेह ता एसा । इय चिंतिऊण कुमरो समउच्चिय उत्तरं देई ॥ ५० ॥ देसावलोअणत्थं णिग्गच्छंतस्स मह इइ पइन्ना । बंभ भूमीसयणं जा नियजणए न पेच्छेमि ।। ५१ ।। रयणवई तं पभणइ धन्नो सो नाह ! जीवलोगंमि । कुलदेवयं व
दानविषये
धनदेव
धनदत्त
कथानकम् ।
॥ २ ॥
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RADHAAR
जणए जो आराहेइ अणवस्यं ॥ ५२ ॥ कुमरस्स गुणे दह्रण अहिणवे नरवई वि पुच्छेद । को सि तुम ? कत्तो व ति ? | साहए सो तओ सई ॥५३॥ तो हरिसपरो राया रयणवई विहवसंजुयं कुमरं । दिनामच्चसहायं सिंहलदीवंमि पेसेइ ॥५४॥ गच्छंताणं ताणं जलनिहिमज्झेण जाणवत्तेण । रयणवईए लुद्धो मंती अगणियकुलकलंकं ।। ५५॥ वक्खित्तमणं कुमरं जलनिहिमछमि खिवइ सो मंती । तं नाउं दुहियमणा अकंदं कुणइ रयणवई ॥५६॥ तो रुदनाममंती पभणइ दासो सया वि तुज्झ अहं । तं होसु मज्झ मजा अहऽनहा मरसि सिग्धं पि ॥ ५७॥ इय भणिया सा चिंतइ निकरुणो एस कुणइ एयं पि । रक्खामि नियं सील किं पि हु इह उत्तरं दाउं ॥ ५८ ॥ मयकिच्चं तस्स अहं कुणेमि नो जाव ता न बत्तत्वं । जं किं पि तुम भणिहिसि तओ परं तं चिय करिस्सं ॥ ५९॥ मती वि भणइ एवं हबउ तओ जति ताई वहणं पि । सहस त्ति | दुहाजायं रुटुं पिव रुद्दमंतिम्मि ॥ ६० ॥ सा लद्धफलहखंडा उत्तरिऊणं पयाइ कुसुमपुरे। रयणवई पियविरहे पत्ता पियमेलए तित्थे ॥ ६१ ॥ विरहानलतविअंगी जीवंतो एइ मज्झ जइ नाहो । ता मोणं मोत्तवं इय चिंतती तवं कुणइ ॥ ६२ ॥ मंती वि मच्छपिढि लहिउं उल्लंघिऊण जलरासिं । संपत्तो कुसुमपुरे ओलग्गह तं महीनाहं ॥ ६३ ।। कुसुमसरेणं दिन्नं पुहईनाहेण तस्स मंतिपयं । रजम्मि तमि रुद्दो पहाणभावं समावन्नो ॥ ६४ ॥ कुमरो वि हु निवडतो उप्पाडेऊण आसमपयंमि । केण वि मुक्को पणमइ सविम्हओ तावसं तत्थ ॥६५॥ तावसबई विदई तस्स सरीरंमि रायचिंधाई । रूववई निवकन्नं विवाहिउं हत्थमोयणए । ६६ । कथं खुडियं खर्ट्स अप्पइ अ कहेइ देइ टंकसयं । निचं पढमा दुइया उ जाइ मणवंछिए ठाणे ।। ६७॥
१ पभणइ C । २ कुसुमउरे C। ३ पुहवीनाहेण C । ४ समणुपत्तो C । ५ नियकन्नं BCI
COLOCALCRECAUR
ANGAROO
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पाइअकहासंगहे।
CRICROCRACKS
दानविषये धनदेवधनदत्तकथानकम्।
तं कुलवई नमेउं भाजुओ चडिय खुडियखट्टाए । चिंतइ हियए गच्छसु जत्थ पिया धणबई मज्झ ॥ ६८॥ आगासेणं सा वि हु कुसुमपुरे जाव चाहिरुजाणे । संपत्ता ताव तओ रूवबई तं पयंपेड़ ॥ ६९ ॥ तिसिया हं नाह ! तुम सलिलं आणेसु कह व ठाणाओ । कथं खटुं भज मुत्तूण जलस्स गहणत्थं ।। ७० ।। कुर्वमि सो कुमारो पत्तो सप्पं निएइ तत्थेगं । म कसु त्ति मणिरं एयाओ पुरिसमासाए ।। ७१ ।। कुमरो नियमुचरियं मुयइ अहो तत्थ लग्गए नागो । कडा वत्थेण समं सो कुमरं डसइ करकमले ।। ७२ ॥ कुमरो विसप्पहावा संजाओ वामणो कुरूवो अ । सो तं भणइ सको पडि उघयारो को उचिओ ।। ७३ ।। पडिउवयारो नूगं एसो चिय तुज्झ जाणिही कुमरो!। अइसंकडंमि पडिओ खुजय ! सुमरेसु म ज्झत्ति ।। ७४ ।। इय भणिऊणं नागो पचो अईसणं तओ कुमरो । हरिसविसायसमेओ गहिय जलं चलइ सहस त्ति ।। ७५ ।। रूववईए सगासं आगंतूर्ण भणेइ वामणओ। पाणपिए! पियसु तुम अइसरसं सीयलं सलिलं ॥७६।। अन्नपुरिसो त्ति काउंसा वि हु वेगेण जाइ अन्नत्थ । जोअइ सर्व पि दिण नियदइयं न उण पिच्छेइ ।। ७७॥ पियमेलयंमि तित्थे तबइ तवं सा वि पिययमविओए। तिणि वि तुहिकाओ मीलियनयणाओ तिण्णे वि ।। ७८।। उक्तं च-एकाए पउमिणीए नेहो सलहिजए जए नूण | पाणप्पिअरविविरहे जा अनं पिच्छए नेव ॥७९।। तत्थ ठियाण ताणं आहारं देइ धम्मिओ लोओ। विगईए विणा कुणिऊण भोयणं निति दियहाई ॥८॥ नरनाहो कुसुमसरो वुचतं मुणिय ताण लोयाओ। चिंतइ होही किं पि हु महंतमिह कारणं एत्थ ।।८।। कोऊहलेण राया तत्थागच्छेइ परियणसमेओ। नयणवयणाण चिटुं नहु ताणं पिक्खए कहवि ।। ८२ ॥ तो पडहसद्दपुर्व राया
सुज A C। २ सुणिय C३ वयणनयणाण CI
A
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पणे जो उ एयाओ । भासेह तस्स सिग्धं कुसुमवई देमि नियधूयं ॥ ८३ ॥ अह अवगणिओ तीए अइदुहिओ चितए मणे कुमरो । दिवंमि पराहुत्ते मणिच्छिअं होइ न कयावि || ८४ ॥ भममाणो सो पत्तो तित्थे तत्थेव नियइ ताओ वि । तिनि वि मह भज्जाओ न उणो लक्खति मं खुजं ।। ८५ ।। बहुदुक्ख भरियहियओ जा चिंतइ ताण संगमोवायं । वाइतं पडहं ता निसुणइ छिवह तं खुजो ॥ ८६ ॥ अह विंटणेण वेढिय फलहं कक्खाए खिविअ सो तत्थ । उवविसइ निवसमक्ख ताण सया संमि हरिसपरो ।। ८७ ।। उस्सारिय विंटणयं फलहं इत्थंमि कुणिय पभणेइ । जो दुहिजणेहिं जाओ सो पिच्छड् अक्खराई इहं (१) ॥ ८८ ।। अइरम्म अक्खराई लिहियाई इत्थ केण फलहिंमि । अनियंतो वि हु राया वक्खाणइ लज्जसंजुत्तो ॥ ८९ ॥ वाएऊणं खुजो वक्खाणइ ताण विम्हयं दितो । नियचरियं वित्थरओ लोओ वि हु सुणइ वक्खाणं ||१०|| सिंहलदीवे सिंहलसीहो मोत्तु वैरकरिकराओ। कुणिउं घणवइ भजं चडिउं वहणे पडइ जलहिं ॥ ९१ ॥ अनं कहेमि कल्ले इय भणिउं त्थयं पिबंधे। तो घणवई मुणेउं नियपियचरियं इमं सवं ॥ ९२ ॥ चणं मोणत्रयं तं पुच्छइ तस्स तत्थ किं जायें ? । सो वि पुणो पुण उट्ठइ पुणो पुणो पुच्छर सा वि ।। ९३ ।। तो भणइ फलहखंडं लहिउं जलहिं तरितु रयणउरे । रयणवई जीवाविअ परिणिय पत्तो मुद्दमि || ९४ || सो सचिवेणं जल हिंमि घल्लिओ एव कहिय उट्ठेइ । कल्ले अन्नं सवं कहिस्समह मुणिअ नियचरियं || ९५|| रणव तं पुच्छ किं जायं तस्स ? कहइ वामणओ निवडतो उप्पाडिय केण वि जलहीउ सो नीओ || ९६ || कम्मि वि तात्रसउडवे रूत्रवहं तत्थ परिणिउं कन्नं । खट्टाकंथाजुत्तो कुसुमपुरे इत्थ सो पत्तो ॥ ९७॥ रूववईए भणिओ जलमाणेउं जलासए
१ फलमि C २ करिवरकराओ C ३ चडिओ वहणे C ४ सुनिय C ५ संपत्ती BC
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पाइअकहासंगहे।
SARAKASH
पत्तो। तो डसिओ सप्पेणं इय कहिउँ उट्ठए खुजो ॥९८॥ कल्ले कहिस्समन्नं नियपियचरियं मुणित्तु रूववई । किं संजायं तस्स ? | दानविषये त्ति सायरं पुच्छए खुजं ॥९९|| तिन्नि वि वयणपराओ तिन्नि वि तस्संमुहं निअंतीओ। खुजयपुदि तिन्नि वि ताओ न चयंति धनदेवजुबईओ ॥१००॥ अवगन्निऊण ताओ निवई मग्गेइ कुसुमवइकन्नं । मुणिऊण निअपइण्णं वीवाहं कुणइ सो सिग्धं ॥ १.१॥ धनदत्तकस्स वि नेव पमोओ नरवइलोअस्स तंमि वीवाहे । वामणउ त्ति भणित्ता को विहु नो मंगले देइ ॥१०२॥ तिन्नि वि जुबईओ कथानकम्। तओ नियपिययमसुद्धिमत्थमाणाओ । मंगलधवले खुजस्स दिति ताउ चिय विवाहे ॥ १०३॥ छंदं कुणमाणीओ तिनि वि चिट्ठति खुजपासंमि । गद्दहपाया वि जओ नियकज्जेणं मलिजंति ॥१०४॥ अह मग्गइ वीवाहे वामणओ हत्थमोयणं किं पि । हसिऊण भणइ सालो सप्पं गिण्हेसु फुप्फत ।। १०५ ॥ जंपेइ तओ खुजो सप्पो चित्र होउ मज्झ पच्चक्खो । आगंतूणं सप्पो कओ वि सिग्धं डसइ हत्थे ॥ १०६ ॥ तो मुच्छं संपत्तो कुमरो पीडाइ पडइ महिवीढे । तिनि वि चिंतंति तओ जइ खुजो मरइ इह समए । १०७॥ कत्तो पिययमसुद्धी हवेह ता मरणमुचिअमम्हाणं । कुसुमबई वि हु चिंतह पइमरणे नूण मह मरणं ॥ १०८ ॥ उक्तं च-अन्नं सर्व पि दुहं कहमवि लोयाण नूण वीसरइ । बल्लहविओयदुक्खं जावजीवं पि सल्लेह ॥ १०९॥ वल्लहविरहसरिच्छं अवरं दुक्खं न दीसए कि पि। जेणं सल्लंतेणं मरणं पि हु वंछए लोओ ॥ ११०॥ निकारणजणदुञ्जण ! रे दिव! तहावि किं पि पमणेमो। वरि मरणं पि करेजा मा विरहो वल्लहजणस्स ।। १११ ।। मरणमणाओ चउरो वि ताउ उयरंमि दिति जा छुरियं । ता सयलो वि हु लोओ अकंदह मुक्कचाहभरो ॥ ११२ ॥ मा मा कुणेह तुज्झे अइगरुयं साहसं १ मुणित्तु । २ मंगलं देइ । ३ खुजस्स तं दिति ताओ चिय AI
IR॥४॥
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इमं सहसा । किं अप्पघायणेणं हवेह मणवंछिया सिद्धी ? ॥११३ ॥ इय जा पभणइ लोओ मुच्छाविगमंमि सो पुणो सुनो। वरकंतिजुओ कामु व उट्ठए ता सहावत्थो ॥ ११४ ॥ विम्हइओ सयलजणो अपुवं पिच्छिऊण अच्छरियं । चउरो वि ताउ हियए नचंति अउव्वभावेणं ॥ ११५ ॥ सो पुवकहिअनागो देवो होऊण पभणए कुमरं । बंधवनेहेण अहं कहेमि तुह पुत्वभवचरियं ॥ ११६ ॥ धणउरनयरे सेट्ठी धणंजओ तस्स धणबई भजा । धणदेवो धणदत्तो जुगलेणं ताण दो पुत्ता ।। ११७ ॥ ते दुन्नि वि सुविणीया परोप्परं गाढनेहसंबद्धा । धम्मपरा दाणपरा सच्चपरा सीलसंजुत्ता ॥ ११८ ॥ अह गिम्हे कच्चोलं महुरजलसकरापयसणाहं । धणदेवो पाणत्थं जा गिण्हइ नियइ ताव मुणी ॥११९ ॥ कह दुद्धं ! कह व मुणी! कह मह भावो य इत्थ समयंमि! । धन्नो हं इय चिंतिय दुद्धं पडिलाहए ज्झत्ति ॥१२०॥ सुद्धणं भावेणं दाणं दितेण तेण हरिसेणं । देवाउयं निबद्धं अहो ! अहो ! दाणमाहप्पं ॥ १२१ ॥ इक्खुरसभरियकुंभो धणदत्तो एइ जाव गिहसमुहं । ता पिच्छइ मुणिजुयलं मग्गे तवउवसमसमेयं ॥ १२२ ॥ इक्खुरसेणं एग तुंवं भरिऊण वंदए तत्तो। थोवु ति तओ दुइयं भरिऊणं नमइ मुणिचलणे
॥ १२३ ॥ जा जाइ कि पिता वलिय ज्झचि भत्तीए भरई अकडाहं । तो पुण वि नमिअ पेच्छइ इक्खुरसं कुंभए थोवं | ॥१२४|| नीए गिहे अणस्थो दिजंतो कस्स पुजए एसो । इय चिंतिऊण सर्व पि देइ दुइयम्मि य कडाहे ॥१२५।। अह आउं पालित्ता मरंति ते दो वि तत्थ धणदेवो । देवत्तं संपत्तोधणदत्तो उण तुमं जाओ ॥१२६॥ भावेहिं चउहि खंडत्तएण दिनो मुणीण इक्खुरसो। चउभावदाणजोगा भजचउकं तओ तुज्झ ॥१२७ ॥ खंडत्तयभावाओ दुक्खं पत्तो सि तिनि वेलाओ । सुहभावदाणजोगा मह उण देवत्तणं जायं ।। १२८ ॥ जलनिहिपडिओ उप्पाडिऊण मुको मए नया उडवे । जं तुह सत्तू
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बाइअकहासंगहे।
ॐॐACCRACANCE
मंती इत्थ कओ तेण वामणओ ॥ १२९ । डसिऊण तंमि ठाणे पुवनिहित्तं विसं मए हरियं । पुत्वभवसिणेहेणं एवं सत्वं पिदादानविषये परिविहि॥१३०|| सुणिऊणं नियरियं सिंहलसीहस्स तत्थ संजायं । जाइस्सरणं तो ज्झत्ति पेच्छए पुवभवमेसो ।। १३१ ।। धनदेवइय कहिउं वुत्तं देवो असणं गओ तत्तो। महिनाहेणं पुट्ठो नियचरियं कहइ कुमरो वि ।। १३२ ॥ कुमरेणं पुट्ठाओ गाढं धनदत्तदुक्खेण जुत्तहिययाओ । भजाओ वित्थरओ साहिति नियं नियं चरियं ।। १३३ ।। कुमरं रयणवई पि हु नियअवराहं खमावए कथानकम्। रुद्दो । ताई वि अभयं वियरंति मंतिणो दीणवयणस्स ॥१३४॥ अह कुसुमसरो राया सिंहलदीबमि पेसए कमरं । मजाच उक्कजुत्तं पुनसहाय विभूईए ॥१३५ ॥ खुडियं खट्टं आरुहिय वेगओ नहपहेण संपत्तो। जणणिजणयाण चलणे सिंहलसीहो नमइ तत्तो॥ १३६ ॥ धणवइरयणवई वि य रूवबई तह य कुसुमवइभजा । चउरो वि हु बहुयाओ नमंति ससुराण पयकमले ॥१३७॥ जणणी भणइ सदुक्खं तुह विरहे वच्छ ! जं न मह हिययं । फुटुं तड त्ति ता खलु विहिणा वजेण संघडियं ॥१३८॥ सो लजाए अहोमुहमवलोयइ गाढमाणसंजुत्तो। जणओ नियउच्छंगे सीहलसीहं तओ कुणइ ।। १३९॥ कंथापहावजुत्तो अदरिदं कुणह सयलमहिवलयं । सवाई ताई कालं गति अइसोक्खभावेणं ॥१४०।। अइदुग्घडचरियाई सविसेसं मुणिय भवसरूवाई। नियआउं पालेउं पंच वि पत्ताई देवत्तं ॥ १४१॥
इति दानविषये धनदेवधनदत्तकथानकं समाप्तम् । -
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श्रीसम्यक्त्वप्रभावे धनश्रेष्ठिकथानकम्-तं नत्थि जं न सिज्झइ संमत्तं इत्थ पालयंताणं । जह लच्छी संपत्ता | विउला धणसेट्टिणा पुत्विं ॥१॥ धणउरमत्थि पुरवरं धणुद्धरो नाम तत्थ भूवालो। सेट्ठी धणाभिहाणो धणदेवी भारिया तस्स ॥ २॥ धणचंदो धणपालो धणदेवो धणगिरी इमे चउरो। संजाया ताण सुया गंभीरा चउसमुद्द व्व ।। ३॥ धंधीधामी-धणदी-धणसिरिनामाउ ताण अह कमसो। जायाओ भजाओ निच्चं नेहेण जुत्ताओ।। ४।। धणसेट्ठी विहवेणं वित्थरिओ चिंतए सुहमईए । रयणीइ चरिमजामे लच्छिसरूपं विसे सेण ॥५॥ पाएणं आजम्मं लच्छीए थिरत्तणं न पिच्छेमि । पुरिसुत्तमो वि चत्तो जीए निचं पि अणुरत्तो ।। ६ ।। उक्तं च-खणदिवा खणनट्ठा लच्छी विज्जु व कुडिल सम्भावा । इय मुणिऊणं तीए केण वि गवो न कायवो ॥ ७ ॥ इय लच्छीइ इमाए गिहामि फलं सयं विद्वत्ताए । कारविय जिणाययणं दुत्तरभवजलहिबोहित्थं ।। ८॥ तो जाइ निवसयासे थालं भरिऊण रम्मरयणाणं । तं गहिऊणं राया भणइ धणं वरसु मणइष्टुं ? ॥९॥ जिणभवणजोग्गभूमि मग्गइ सो देइ तं धणो कुणइ । सोवन्नथंभसोवाणपंतिवरनीलमणिपडिमं ॥ १०॥ गयणग्गलग्गसिहरं अणेगलहुदेवउलियसंजुत्तं । कणयमयकलसदंडं सिवपुरपहगइविमाण व ॥११।। फल कुसुमगंधनेवेजसलिल अक्खयपईवधृवेहि । तिकालं जिणपडिमं सो पूयइ भत्तिसंजुत्तो॥ १२ ॥ इय सो गमेइ कालं जा किं पि हु हरिसनिभरो सेट्ठी। ता पुवकम्मभावा जं जायं ते निसामेह ।। १३ ।। जं दत्वं भूमीए खितं तं वंतरेहिं अवहरियं । जं दिन्नं लोयाणं तं नो कहमवि लहइ सेट्ठी ॥१४॥ जं वहणे पक्खित्तं तं पुण जलहिम्मि सयलमवि थकं । किं बहुणा ? रोरसमो सेट्ठी जाओ धणो ज्झत्ति ॥१५॥
१ इयमार्या A संज्ञकप्रतावेवास्ति । २ तस्स तं सुणसु A। ३तं पि न कहमवि A ।
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पाइअ
कहा
संग हे ।
11 & 11
सो भवसवो न दीणभावं पयासए कहवि । भज्जा तणया य पुणो भणति तं गाढदुहियमणा ॥ १६ ॥ बहुधम्मवयवसओ दारिद्द सेट्ठि ! तुम्ह संजायं । इय भणियस्स वि से लहसइ नेव धम्मंमि बहुमाणो ॥ १७ ॥ धम्मत्थवयवसओ दइए ! जायं न अम्ह दारिदं । पुढकियकम्माणं मुणह विवागं इमं तुन्भे ॥ १८ ॥ जं पिय तं पिय काउं वाणिज्जं नो तरंति ते तत्थ । नंदिग्गामे ताइं गयाई चइऊण नियनयरं ॥ १९ ॥ सबाई ताई महया दुक्खेणं निग्गमंति दियहाई । पुट्टलयं काऊणं संझाए मिलति भुजस्स ॥ २० ॥ एक सेट्ठि मोक्तुं सिढिलियधम्माई ताई जायाई । धम्माउ वि दारिद्द नो गच्छ इय विचिंतेउं ॥ २१ ॥ सेट्ठी निचलचित्तो धम्मे भावं चएइ नो कहवि । सम्मत्तसुद्ध हियओ गमेइ सो कइवयदिणाई ॥ २२ ॥ अन्नदियइंमि सेट्ठी सकुटुंबं भणड़ महुरवयणेहिं । एगं वेलं जइ नियविम्बं पिच्छामि ता धन्नो ॥ २३ ॥ तो सवाई विताई अक्कोसं देति गाढदुखाई । जंपंति य देवगिहाइधम्मिओ तुह गया लच्छी ॥ २४ ॥ तो एयाई गरुयं कम्मं बंधंति इय अपुच्छितु । धणउरनयरे गच्छइ एगागी तह जिणाययणे ।। २५ ।। संबलनिमित्त मेगो चिट्ठह गंठिम्मि रूपओ मज्झ । एएण अहं गिरहामि रम्मकुसुमाई पूयकए || २६ ।। उववासो मज्झ हविज अज चउमासयं जओ पवं । कल्ले पुण पारणयं जहत वसई नूणं ॥ २७ ॥ इय चिंतिऊण कुसुमाई गिन्दिउं धूलिमलिणदेहो वि । सुहभावनिम्मलमणो मत्तीए कुणइ जिणपूयं ॥ २८ ॥ सुद्धेणं भावेणं तेणं दुत्थेण तंमि समयंमि । जं अञ्जियं सुपुण्णं तं मुणइ विसिट्ठनाणजुओ ॥ २९ ॥ तो चंदिऊण देवे वसहिं गंतूण नमः गुरुचलणे । निसुणइ धम्मं संझाइ तेहि अह पमणिओ सेट्ठी ॥ ३० ॥ वसहीए
१ दुक्खेण गर्मिति तत्थ दियद्दाई A २ पोट्टलयं कुणिऊणं A ३ भोजस्स A।
श्री
सम्यक्त्वप्रभावे
घनश्रेष्ठिकथानकम् ।
॥ ६ ॥
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PिicsCOCIE
पिद्विभाए सुन गिहमेगमस्थि तत्थेव । पडिकमणज्झाणसज्झायसावहाणो निसि नेसु ॥ ३१॥ केणावि कारणेणं नूणं गुरुणो भणंति इय सिट्ठी। निस्सीहियं भणिचा तं पविसइ निम्वियारमणो ॥ ३२॥ रुहिरखरंटियमहियल अणेगमीसणकरंककंकाले । सो तत्थ एगकोणं पडिलेहिअ कुणइ पडिकमणं ॥ ३३ ॥ सज्झायमह कुणंतो वक्खाणंते( णेइ) सयं पि परमत्थं । जो कुणइ जीवहिंसं सो पावह नरयदुक्खाई ॥३४ ॥ करुणारसरसियमणो जो अभयं देइ सबजीवाणं । सो लहइ विउलरिद्धिं मणिच्छियं उभयलोए वि ॥ ३५॥ एवं स्यणि सयलं सज्झायं कुणिय देसणासहियं । जा निग्गच्छइ सेट्ठी ता पुरओ नियइ नरमेगं ॥ ३६ ॥ सो संजसं पयंपइ सावय! गेहस्सिमस्स नाहो हं । मुच्छाए मरिऊणं विहिवसओ वंतरो जाओ ।। ३७ ॥ न कयं जं महकिच्चं कुडुंबलोएण भूरिभणिएण । किं बहुणा जलकरवयसरावमित्तं पि नो दिन्नं ॥३८॥ तो अहह ! दुट्ठमइणा विणासियं नियकुडुंबमखिलमवि । सुन्नमहिट्ठियमेयं गेहं मुच्छाए नडिएण ॥ ३९ ॥ दुपयं व चउप्पयं वा जं कि पि हु इत्थ पविसए कहवि । तं मारेमि अवस्सं करुणारहिओ विरसमाणं ॥ ४०॥ अञ्ज तुह देसणाए हिंसं मुणिऊण नरयदुहजणणि । मह जाओ सुहभावो ता वरसु मणिच्छियं भद्द! ॥४१॥ तो पभणइ तं सेट्ठी पओयणं नत्थि भद्द ! केणावि । एयं चिय कुणसु तुमं चएसु हिंसं दुहावासं ॥ ४२ ॥ सो आह सुहय ! हिंसा चत्त च्चिय तुज्झ देसणासवणे । अमं मग्गसु जेणं देवाण न दंसणं विहलं ॥४३॥ तो सेट्ठी सविमरिसं चिंता गुरुणो सुनाणिणो मज्झ । अञ्ज रयणीह जेहिं दिट्ठो मह भाविओ लाहो ॥४४॥ अन्नह कह पडिकमणाह कारिओ तेहिं इत्थ भूयघरे। आह सुरो किं चिंतसि बारं वारं मए
मज्झ केणावि AI
RECHANICASKARBHANGA
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पाइअ
IA
सम्यक्त्व
विषये
कहासंगहे।
धनभेष्ठिकथानकम् ।
SSCRISIOCAL-15
भणिओ ॥४५॥ जपेइ धणो सेट्टी निययगुरुं पुच्छिउं विमग्गेमि । हरिसपरेण तेणाणुमनिओ जाइ वसहीए ।। ४६ ॥
पणमइ गुरूण चलणे नाणेणं मुणिय रयणिवुत्वंतं । पभणंति ते वि मग्गसु एवं चिय सिद्धि ! सुरपासे ॥ ४७॥ जा कल्ले 9 भावणं कया मए जिणवरस्स वरपूया। तीह चिय पञ्चक्खं मज्झ फलं देसु दाणिं पि ॥ ४८ ॥ सो विहु वंतरपासे तं चिय 'मग्गेइ तत्थ गंतूण । पमणेइ सुरो सम्म तीए फलं देवरिद्धीओ ।। ४९ ॥ अणहुंताओ ताओ तुम्हं दाउं न अस्थि मह सत्ती ।
देवा वि हु लोयाणं देंति फलं अप्पसाहीणं ॥ ५० ॥ जं पुण मह साहीणं अत्थि निहाणं इममि कोणमि । चउलक्खदम्ममाणं | तं गिण्हसु गेहमेयं च ।। ५१ ॥ इय मणिऊणं देवो पचो अइंसणं तओ सेट्ठी । जा पेच्छइ तं ठाणं पयडीहूयं ता निहाण |॥ ५२ ।। तो चिंतह धणसेट्ठी निच्चलभावाउ मज्झ धम्ममि । जाया पुणो वि रिद्धी अहो ! अहो ! जिणमयपहावो ॥५३॥ तं गिहिऊण किं पि हु दविणं संबलनिमित्तमइनिहुओ । दाउं गिहस्स दारं विणिग्गओ हरिससंजुत्तो ।। ५४ ॥ गंतूण चेइयहरे जिणस्स पूर्व विसेसओ काउं । आगम्म गुरुसयासं हरिसियचित्तो नमित्र तत्तो ॥५५ ।। कस्स वि गेहे भोयणसामग्गि ज्झत्ति कारवेऊणं । पडिलाभिय मुणिजुयलं कुणइ तओ पारणं सेट्ठी ।। ५६ ।। अह धणसेट्ठी जिणगुरुचलणे नमिऊण जाइ नियगामे । धम्ममि दिन्नचित्तो विसइ तओ अप्पणो गेहं ॥ ५७ ॥ कोह न पुच्छा वत्तं गिहमि पत्तस्स तस्स सेविस्स । पत्तेयं रयणीए नियं कुडुंब भणइ तचो ॥ ५८ ॥ धणउरनयरंमि मए लई रम्मं निहाणमइविउलं । ता गंतवमवस्सं तत्थ तओ तेहिं सो भणिओ ।। ५९ ॥ तुह गहिल जायं दविणं दविणं ति झंखमाणस्स । अम्हाणं नामं पि हु तत्थ पुरे जाइन कया वि ॥ ६० ॥ लहुपुत्तो नेहपरो पमणइ भत्तीए धणगिरी एवं । आगच्छिस्सामि अहं तए समं ताय !
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तत्थ पुरे ॥ ६१ ॥ सो धणसेट्ठी घणगिरितणयं गहिऊण धणसिरिसमेयं । घणउरनुयरे गच्छद्द सुरदिने विसइ नियगेहे ॥ ६२ ॥ तत्तो नरवइपुरओ उवायणं करिय कहइ सुरचरियं । सम्मत्तरंजियमणो सो वियरह तस्स सेट्ठियं ।। ६३ ।। अह कड्डि निहाणं तणयस्स समप्पिउं सयं सेट्ठी । धम्मपरु च्चिय चिट्ठह मुणिऊणं तस्स माहप्पं ।। ६४ ।। जिणधम्मदिन्नचित्तो ववहारं कुणइ घणगिरी निच्चं । विहवेणं लोएण य कित्तीए पसरिओ तत्थ ।। ६५ ।। सोऊण से पसिद्धिं कुटुंबलोओ वि जिओ धणियं । आगंतुं नो सक्कह धणउरनयरंमि दीणमणो ।। ६६ ।। अन्नदिणे लहुपुत्तो परिभावइ किंतु मज्झ विहवेणं । अदुक्खेणं जणणी चिट्ठइ तह माउणो मज्झ ॥ ६७ ॥ किं तेणं तणएणं जीवंतेणावि इत्थलोयंमि । आजम्मं नियजणणी सुक्खेणं धरइ जो नेव ।। ६८ ।। इय चिंतिय नियजणयं पयंपए गाढभत्तिसंजुत्तो । आणेमि इत्थ जणणि तुम्हाएसेण सकुडुंबं ॥ ६९ ॥ जंपेइ तओ सेट्ठी जं तुह उचियं कुणेसु तं वच्छ ! । सो लद्धसमाएसो नंदिग्गामंमि संपत्तो ॥ ७० ॥ भाजणं नियजणणि पणमिय गामाओ आणइ सुहेण । घणउरपुरंमि ताई धम्मपराई तु चिट्ठति ॥ ७१ ॥ अन्नदिणे गुरुचलणे मत्तीह नमित्त पुच्छ सिट्ठी । कह जाया मह रिद्धी ? गया कहूं ? कह व संपत्ता ? ।। ७२ ।। अइसयनाणेण मुणी पुवभवं कहइ तस्स संखेवा । थलउरगामे सूरो नामासि तुमं वरो सेट्ठी ॥ ७३ ॥ दाणपहावसमजिय कित्तिभरो सच्चसीलगुणक लिओ । सिद्धंतसवणनिम्मलचित्तो जिणधम्मसंजुत्तो ॥ ७४ ॥ अह अन्नया कयाई तुमए मग्गंमि गच्छमाणेण । पडिओ महीह दिट्ठो हारो एगो सुबहुमुल्लो ।। ७५ ।। आजम्मं मह होही एयस्स पहावओ अदारिदं । इय चिंतिय लोहेणं तुमए सहस ति सो गहिओ
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पाइअकहासंगहे ।
॥ ८ ॥
॥ ७६ ॥ तत्थ ठिण वि तुमए चिंतियमेयं परस्स वत्थुमिणं । अवहरमाणस्स महं होही सम्मत्तपरिहाणी ॥ ७७ ॥ ता ममा मह नियनियमभंगक्खमेण हारेण । तं मुत्तुं तत्थ च्चिय अन्नत्थ तुमं तओ पत्तो ||७८ || सुहभावो कालेणं मरिउं जाओ तुम घणसेट्ठी । सम्मत्तपहावाओ पढमं जाया तुह समिद्धी ।। ७९ ।। परहारगहण अजियदुकम्मेणं समागयं तुज्झ । दारिद्द जा को तं ते पुणो वि तुह रिद्धी ॥ ८० ॥ इय पुत्रभवं सुणिउं सेट्ठी संजायजाइसरणो सो । गहियवओ संपत्तो देवतं पुन्नभावेणं ॥ ८१ ॥ इति सम्यक्त्तवप्रभावे घनश्रेष्ठिकथानकं समाप्तम् ।
दानविषये चंडगोवालकथानकम् - तं नत्थि किं पि लोए जं सिज्झइ नेव दाणमहिमाए । जह चंडगोवालेणं पत्ताओ देवरिद्धीओ || १|| अस्थि विसालं नयरं रिद्धीए गयणवल्लहभिहाणं । तं पालइ नरनाहो धम्मरहो नाम धम्मपरो ॥२॥ नयरपहाणो सिट्टी नामेणं कंथओ वसइ तत्थ । घम्मवई पाणपिया संजाया तस्स मणड्डा || ३|| जहवि नियदव संख कंथ सेट्ठी न याण तहावि । ओवजणं कुणतो स्यणिदिणं पि हु भ्रमइ निचं ॥ ४ ॥ अह ताण जाइ कालो सेबंताणं सया वि विसयहं । पुजियपुन्नपहावमिलियश्चिताणं (चित्ताणं) दुण्डं पि ॥ ५ ॥ अन्नदियहमि चिंतापरवसा कुणइ भोयणं नेव । अइदुक्खक्खयमणा चिट्ठ मोणेण धम्मवई || ६ || जाणियवृत्तंतेणं मणिया सा सेट्टिणा सदुक्खेण । दइए ! न हु मोणेणं पओयणं सिज्झए किंपि ९ ॥ ७ ॥ जं किंपि तुज्झ दुक्खं अइदुसहं अस्थि हिययमज्झमि । तं जइ मह कहणिअं हवेह ता कहसु सहसचि ||८|| अह हसिउं सा जंपर पिय ! किं तुह अत्थि एरिसं पिम्मं । जं मह समुहं पभणसि एयं वयणं तुमं अज ॥ ९ ॥ जं तुह १ ता अलमिमिणा नियनियमभंगकरणक्खमेव हारेण B २ पुन्नभावाण A
दानविषये
चंड
गोवालकथानकम् ।
॥ ८ ॥
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वि अणि तं दिट्ठे किं पि कहवि मह पासे १ । कुल महिलाणं खलु जीवियं पि नियुनाइसाहीणं ॥ १० ॥ दुहकारणंमि कहिए होही तुझ वि मणस्स संतावो । इय नो कहियं अइ आगहो ( अग्गहो ) त्ति ता संपयं सुणसु ॥ ११ ॥ तं किं पिनत्थि जं नहु तुम्ह पसाएण सिज्झई मज्झ । एयं चिय मह दुक्खं पुत्तमुहं जं न पिच्छामि ॥ १२ ॥ तत्तो पभणइ सेट्ठी किं किजइ ? पिययमे ! विसमवडिए । अत्थे इमंमि नूणं पुढञ्जियकम्मसाहीणे || १३ || नो विश्वेणं न परकमेणं बुद्धीए नेव न गुणेहिं । सो अत्थो सिज्झइ पुरिसाणं पुनसादीणो || १४ || तहवि मए जयवं पुत्तस्थे कुणसु भोयणं दइए । जेण कुणेमि अहं पि हु तो दुनि विज्झत्ति झुंजंति ।। १५ ।। अह सा भणेह दहयं मह कहवि होइ ताव न हु तणओ । पुत्तत्थे नाह ! तुमं अनं परिणे वरकनं ।। १६ ।। सेट्ठी पभणइ दहए ! दहूणं मज्झ पिययमं दुहयं । तुज्झ हविस्सइ ईसा दुक्खं गरुयं पुणो पच्छा ॥ १७ ॥ मा पिययम ! भण एवं तुह सवहो जइ धरेमि किं पि दुहं । तीए भणिओ परिणइ सिट्ठिधूयं जसवहमिहाणं ॥ १८॥ ती विन हव पुत्तो अनमुवायं तओ अलहमाणो । नयरस्त दूरभाए काली देवी समत्थि तहिं ॥ १९ ॥ सावि हु नयरजणाणं मणिच्छिए पञ्चए य पूरेह । कंथयसेट्ठी गंतूण तत्थ तं पूयए ज्झत्ति ॥ २० ॥ सो तत्थ ठिओ चिट्ठह नियमं काउं मणमि जइ एसा । वियरिस्सइ मह पुत्तं ता गच्छिस्सं नियं गेहूं ॥ २१ ॥ तं निच्छयं मुणेउं सा वि हु पयडीवित्तु पभणे । तुट्टा हं वरसु वरं सो जंपर देसु मह पुतं ॥ २२ ॥ महं अत्थि पुरोहडए चूयतरू तस्स फलदुगं गहिउं । अप्पे जसवईए भविस्सई तीए पुत्तदुगं || २३ || पढमं पुत्तं अप्पसु धम्मवईए परं जसवईए । इय कहिऊणं देवी तक्खणम
पत्ता ॥ २४ ॥ बहुपुत्तलोहजुत्तो सिट्टी गिव्हित्तु सत्तअंबाई । पमुद्दयचित्तो सगिहं पत्तो सवं कहर वृत्तं ।। २५ ।।
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कहासंगहे।
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&ाजा पिच्छह अंदाई दुनिश्चिय ताव तत्थ चिट्ठति । अप्पइ लहुमजाए सिग्धं सा मक्खए हिट्ठा ॥ २६ ॥ तमि वि दानविषये PIदिणमि पवरे जाओ गम्मस्स संभवो तीए । सा पडिपुग्ने काले पसवइ पुत्वं तओ एग ॥ २७॥ तणुकंतिसमुजोइयदि- चंड
सिवलयं सहलक्खणसमेयं । तं पिच्छिऊण चिंतह हिट्ठमणा जसवई हिचए ।॥ २८ ॥ एसो रम्मो पुत्तो पढमो मज्झेव गुण-18| गोवालनिही हवउ । जो पुण होही दुइओ धम्मवईए तमप्पिस्सं ॥ २९ ॥ इय चिंतियम्मि दुइओ न हु जायइ देवयापहावेण ।
कथानकम्। जसवहउयरंमि तओ अगाढा वेयणा जाया ॥३०॥ तो अप्पइ पढमं वि हु सिग्धं धम्मवईए नियं पढमपुत्तं । अह दुइयं ४ पसवेई देवपहावा जसवई वि ॥ ३१ ॥ धम्मवई हिट्ठमणा नियनाहं पइ पयंपए सिग्छ । महया विच्छड्डेणं वरजम्ममहू
सवं कुणसु ॥ ३२ ॥ सेट्ठी वि तो पभणइ दइए। दुक्खेण अजिओ अत्थो । सहिऊण छुहं सीयं तावं अन्नं पि बहु दुक्खं ॥ ३३ ॥ ता अम्ह इमे पुत्ता न उणो परसंतिया हविस्संति । नियअत्थो मुहियाए चयइजइ कह णु जम्ममहे ॥ ३४ ॥ एउं (एअं) सुणिउं पढमो पुत्तो पभणेइ उच्चवयणेण । सुण ताय ! मज्झ वयणं कालीदेवीए भुवर्णमि ॥३५ ।। चूयतरुअहोभाए कलसो चिट्ठह रयणवरमरिओ। तं आणेउं मह उच्छवेसु वियरेसु सक्वेसु ॥ ३६ ॥ इय सुणिउं भयभीओ सेट्ठी चिंतेइ कह णु पालो वि । जंपइ उच्चसरेणं न हु पुत्तो एस किं भूयं ॥ ३७ ।। तो पुण वि भणइ बालो मा बीहसु ताय ! गच्छ तहिं सिग्धं । कम्मयरं गहिऊणं आयड्डइ खणिय जो सिग्धं ॥ ३८ ॥ कोऊहलेण सेट्ठी लोमबसेण य गओ सकम्मयरो । आयड्डिऊण कलसं सो अप्पई सेट्ठिहत्थम्मि ॥ ३९ ॥ सो हरिसपरवसंगो तं गहिऊणं खिवेद फक्खाए । मा कहसु कस्स वि इमं सर्वहं वियरइ पुणो तस्स ॥ ४० ॥ आगंतूणं गेहे सेट्ठी रिद्धीए कृणइ जम्ममहं । अंब- 13॥ ९॥
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पहावा जाओ अंबकुमारो तओ नामं ॥ ४१ ॥ दुइयस्स वि तम्मि दिणे सिद्धकुमारो चि नाम संजायं । सो कम्मयरो पिच्छिय तं कलसं चितए हियए ।। ४२ ।। एसा अउडवता चिती मज्झ उयरमज्झमि । गाढं जणेह दुक्खं कुणमाणा कलकलारावं || ४३ || ता दुइयस्स य कस्स वि कहिउं उयरं कुणेमि असुहियं । अहवा कयसवहो कह कहेमि अन्नस्स करयाचि ॥ ४४ ॥ तो कम्मयरो रने गंतुं वाडिजुअअंबविवरंमि । पविसिय वाहरइ तओ उच्चसरेणं तर्हि सिग्धं ॥ ४५ ॥ मह सिट्टिणा याणि गहिओ मणिरयणपूरिओ कलसो । कालियवणे सहयारपरिसरे अप्पिओ य मए ।। ४६ ।। इय सो वाहरिऊणं पुणो पुणो कुणइ जाव उपरसुहं । ता पच्छन्नठिएणं सुणियं तं केण वि नरेण ॥ ४७ ॥ इय कारणेण कत्थ कहवि न भासिए अकहणिअं । वाडीह वि खलु कन्ना इवंति कश्यावि सच्चमिणं ॥ ४८ ॥ अह पुरिसो गंतूणं निवइसया संमि कहइ सर्व पि । सो भइ मंतिसमुहं कंथय सेट्ठि इहाणेसु || ४९ || मंती वि हु आएसइ धरणत्थं कथयस्स पुरिमजुगं । तंमि वि समए पण अंबकुमारो नियं जणयं ॥ ५० ॥ ताय ! तुह निवइपुरिसा धरणत्थं इंति इय सुणेऊण । सेट्ठी वि भणइ कलसो न हु लच्छी किं पुण अलच्छी १ ॥ ५१ ॥ नरनाहो रुमणो गिहिस्सह सर्व्वमेव गिहसारं । इअ चिंतिऊण सबं दवं सो खिवड़ भूमी ।। ५२ ।। आउलवाउलहियओ चिट्ठह सेट्ठी वि भणेइ ता पुत्तो । मह इत्थ विजमाणे किं को विहु कुणइ तुह किं पि १ ।। ५३ ।। जा एवं अन्नोन्नं भणति ते ताव आगया पुरिसा । सेट्ठि ! तुमं नरनाहो हक्कारइ ते पर्ययति ॥ ५४ ॥ कंपड़ सेट्टी बितओ पालणयाओ स नीहरेऊण । अंबकुमारो दुनि वि आहणई करचवेडाए ।। ५५ ।। ते तप्पहारजञ्जरियदेहविगलंतरुहिरहनासा | कहकहवि वलेऊणं नरवइपासंमि संपत्ता ।। ५६ ।। सेट्ठी वि तओ पभणइ अगाढं कंपमाणकरचरणो ।
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पाइअ
संगहे।
दानविषये
चंडगोवालकथानकम्।
जसो न सामन्त्रो। कथयस्तो गरे । रे! आणह सिग्यासहरो तं पिच्छिा विमि
LOCTOCRACCASIOGRACROSHASHA
दइए ! एवं सोक्खं जायं तणएण जाएण ॥ ५७ ॥ पालणयंमि पसुत्तो अंजकुमारो वि भणइ हसिऊण । मज्झ पहावा सोक्खं | तुम्हाण हविस्सई नूणं ॥ ५८॥ तस्स पहावा जाओ गेहस्स चउद्दिसि पि पायारो।गयणग्गलग्गसिहरो तं पिच्छिअ विम्हिओ सेट्ठी ॥ ५९॥ ते पिच्छिऊण निवई रोसारुणलोयणो पयंपेइ । रे! रे! आणह सिग्धं पुत्तजुयं कथयं सेट्ठि ॥ ६॥ अह भणइ बुद्धिसागरमंती नरनाह ! सो न सामन्नो । कथयपुत्तो चालेण जेण तुह आहया पुरिसा ॥ ६१॥ एसो उत्तमपुरिसो लिजइ मत्तीए न उण कोवेण । जुत्तिजुअं तवयणं मुणिउं मंतिं भणइ निवई ।। ६२ ॥ सो केरिसो सुओ जो दीसह जस्सेरिसो गुरुपहावो । मंतिवर ! गच्छ सिग्धं आणसु तं कहवि इत्थ तुमं ।। ६३ ॥ अह भणइ अंचकुमरो जणयं इह ताय ! एइ मंतिवरो । सेट्ठी वि हु भयभीओ पोलिदुवाराई ढंकेइ ॥ ६४ ॥ तो पुण वि वयइ पुत्तो भत्तिजुओ एइ न उण कोवपरो । ऊससिऊणं सेट्ठी उग्घाडइ ज्झत्ति दाराई ॥६५॥ संपत्तो सो सचिवो उवविसई नेव आसणे मुके । इय मणइ तुज्झ गेहे उबद्दवं किं पि न कुणेमि ॥ ६६ ॥ तुह पुत्तदंसणूसुयमहिवइणा सिट्टि ! पेसिओ अहयं । आहवणत्थं तं गिहिऊण तणयं तुम चलसु ॥ ६७ ।। तं सुणिय मंतिवयणं भयविहुरो जाव चिट्ठए सेट्ठी । ता भणइ अंबकुमरो मंति ! अहं आगमिस्सामि ॥६८॥
मंती पालणयठियं भासंतं पिच्छिऊण तं कुमरं । विम्हियहियओ गच्छइ ससिद्वितणओ निवसयासे ॥ ६९ ॥ निवलक्षणोद्र ववेयं अउवचरियं सुए असंजुत्तं । तं पेच्छिऊण बालं नरनाहो विम्हिओ बाढं ॥ ७० ॥ गहिऊणं उच्छंगे नरनाहो वजरेद
तं कुमरं । सो तं जंपइ वयणं जं पइ कोऊहलं जणइ ॥ ७१॥ अंबकुमार ! इयाणि नियवुत्तंतं कहेसु भणइ निवो। सो पडिभणेइ संपइ गच्छ तुम सिग्घमुजाणं ।। ७२ ॥ केवलनाणी तत्थ य समोसढो सो वि सयमेव । मह तुह वि
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चरियमेयं सर्व साहिस्सए सम्मं ॥ ७३ ॥ तं वयणं सोऊणं अइविम्हियमाणसो महीनाहो । नयरजणसिट्टिपुत्तयधम्मवईजसवईसहिओ ॥ ७४ ॥ धवलगिहाओ पत्तो उजाणे ज्झत्ति नमइ केवलिणं । वियरेद धम्मलाई सो वि तओ तस्स सुहजणयं ॥ ७५ ॥ उचियासणोवविढे सयलजणे तत्थ केवली भणइ । संदेहहरणकारणमेयं वयणं सुण नरिंद ! ॥ ७६ ॥ ज न हु संभाविजइ तं पिहु दीसेइ इत्थ संसारे। नियपुवकम्मजोगा दिद्वंतो एस इह बालो ।। ७७ ॥ एगमि गोयलंमी चंडपयंडा सहोयरा दुन्नि । निवसंति पिययमाओ चंडिपयंडीउ ताण कमा ॥ ७८ ॥ चंडस्स अस्थि पुत्तो सुपयंडो नाम अनसमयंमि । मरिऊण खीरिथालं उवविट्ठा चंडसुपयंडा ॥ ७९ ॥ता पत्तं मुणिजुयलं चंडो वियरेइ ताण तं खीरिं । एवं सुपयंडो वि हु पडिलाइ भावणासहिओ ॥ ८॥ नियनाहस्स सुयस्स य दाणं दह्रण निरुवमं जाति । चंडी वि हु पडिलाहइ खीरिं गुरुभत्तिसंजुत्ता ।। ८१ ॥ तं किं पि तेहिं पुनं समज्जियं तस्थ सुद्धभावेण । देवत्वरजरिद्धी न दुल्लहा ताण दुण्हं पि ॥८२॥ तं दद्ण पयंडो पयंडि मजा य भणइ अन्नुकं । अम्हाण किं हविस्सइ दिन्ना सवा वरा खीरी ॥८३॥ आउक्खयंमि मरिउं चंडो चंडी अ जति सुरलोए । कालीदेवीए पिउ सुपयंडो वंतरो जाओ ॥८४॥ भमिऊणं संसारे पयंडजीवो य कंथओ जाओ। न हु अस्थि दाणसत्ती पुत्वभवे वि हुन दिन ॥ ८५ ॥ चविऊण चंडजीवो धम्मरहो नाम नरवई तुमयं । चंडी वि हु धम्मवई संजाया कथयस्स पिया ॥८६॥ ममिऊण मवं जाया पयंडि जसवई य सेविपिया । कालीदइओ चविउं संजाओ अंबनामसुओ ॥ ८७ ॥ पुवसिणेहवसेणं अहिडिओ कालियाइ देवीए । तस्सत्तीए एसो अउव्वचरिउ व दीसेइ ।। ८८ ॥ नरवर! दाणपहावा जं न घडइ कहवि तं पि संघडइ । अवकुमारो रजं काउं गिहिस्सए दिक्खं ।। ८९ ॥
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पाइअ
कहासंगहे ।
॥ ११ ॥
पुचभवम्मि अभावो संजाओ जसवईइ मुणिदाणे । तेणेस रम्मपुत्तो पढमो एयाह न हु हुआ ।। ९० || धम्मबईए दाणं दिनं तेणेस रम्मपुचो य । संभूओ दाणाओ तं नत्थि न जं हवह इटुं ॥ ९१ ॥ इअ केवलिणो वयणं सोऊणं ताण तत्थ संजायं । जाईसरणं तचो नियचरियं पंच विनंति ।। ९२ ।। अह पभणइ नरनाहो मज्झ अपुत्तस्स पुवमवपुत्तं । नियरजे ठविऊणं गिहिस्सामी अहं दिक्खं ।। ९३ ।। पभणेइ मुणिवरिंदो अविलंबं कुणसु चितियं अत्थं । तं नमिउं नरनाहो लोयजुओ जाइ नियठाणं ।। ९४ ।। सहजणसम्मएणं सविसेसं पुच्छिऊण पुण सेट्ठि । अंबकुमारं नियए ठवेह रअंमि नरनाहो ॥ ९५ ॥ धम्मरहो कयकिच्चो होऊणं जाइ केवलिसयासे । गिण्डिय पद्दजभरं पालिय पत्तो य सुरलोए || ९६ || सिरिविजयसेणरन्नो धूयं परिणेइ कुसलवइनामं | अंबकुमारो रअं पालइ नाएण संपन्नं ॥ ९७ ॥ जाओ कमेण पुत्तो कुसलवईए तओ विभूईए । देवकुमारो नामं तस्स य दिनं सुहमुहुत्ते ॥ ९८ ॥ कंथयजणयसमेओ धम्मवईजसवईए संजुत्तो । कुसलवईए सहिओ नरनाहो मह दिहाई || ९९|| अंबकुमारो निवई देवकुमारं ठवित्तु नियरजे । सङ्घजणं खामेउं दाणं दाऊण सविसेसं ॥ १०० ॥ कंथयधम्मईए जसवइजणणी कुसलवईए य । संजुत्तो गिण्देइ पवअं मुणिवइसयासे ॥ १०१ ॥ पालेऊणं दिक्खं कमेण सवाई वाई मरिण । सुविसुद्ध भावणाई लहंति देवत्तरिद्धीओ ।। १०२ ॥ इति दानविषये चंडगोवालकथानकं समाप्तम् ।
दानविषये कृपणश्रेष्ठिकथानकम् – जो वियरह नियरिद्धिं सत्तसु खेत्तेसु सुद्धभावेण । इंदसमाणो देवो सुरलोए हवइ किविणो च ॥ १ ॥ लच्छिविलासं नामेण पुरवरं अस्थि लच्छिदुल्ललिअं । लच्छीनिलओ सेट्ठी नयरपहाणो वसई तत्थ ॥ २ ॥ नवकोडीउ निहाणे नव जलमग्गंमि नव थलपहंमि । नव नियपुरस्त मज्झे वट्टंति सया वि सिट्ठिस्स
दानविषये
कृपण
श्रेष्ठीकथानकम् ।
॥ ११ ॥
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॥ ३ ॥ छत्तीसं कोडीणं सामिचं वह तस्स सो सेट्ठी । सीलवरालंकरणा लच्छी नामेण तस्स पिया ॥ ४ ॥ एवंविहे वि विहवे लच्छीनिलयस्स होइ न हु तित्ती । परिममह रयणिदिवसं अत्थो अत्थो त्ति कुणमाणो ||५|| न हु कस्स वि सो वियरह दाणेण कवडियं पि कइया वि । कुट्ठी वि तस्स हट्टे कुट्टियहिययं मुहं जाइ || ६ || सो रसवईए भुंजई तिल्लं बल्ला य सह कुटुंबेण । न गिहे वि तस्स दीसह नवरत्तं चीवरं कवि ॥ ७ ॥ दाणभरण न गच्छइ देवकुले कहवि मुणिपासे । लच्छीनिलओ सेट्ठी न मिलेइ पंचजणमज्झे || ८ || दीवुच्छवे वि न हु तस्स दीसए कहवि मोययाईयं । कप्पडियतडियभिक्खायरा वि विलासया जंति ||९|| लोओ जहत्थनामं लच्छीनिलयस्स देह किविणो त्ति । तं सङ्घत्थ पसिद्धिं संजायं कित्रणचरियस्स ॥ १० ॥ अन्नदिणे सो किवणो अगाढं धरिय बाहुमूलंमि । मित्तेण कहवि नीओ देवउले उस्सवे कम्मि || ११ || उबविट्ठो पिच्छणए दिअंतं पिच्छिऊ तर्हि दाणं । हिययंमि तस्त्र चडिया गंठी अह निवड महीए ॥ १२ ॥ तो को वि कुणइ वायं को वि हु मद्देइ तस्स पुण उयरं । अह लद्धचेयणो सो गेहूं पइ चल्लिओ जाय ||१३|| तो पाउलेण भणियं बलाउ उबवेसिओ पुणो सेट्ठी । वरनट्टगेयरंजियलोओ दाणं तहिं देह || १४ | कित्रणो एगं पुप्फं कहकहवि हु देइ लोयलज्जाए । अह वित्ते पिच्छणए जा किवणो पह हिं चलिओ || १५ || पाउलएणं भणिओ पुप्फट्ठाणंमि देसु किंपि तुमं । किवणो भणेह अन्नं मह पासे नत्थि पुण किंपि ॥ १६ ॥ पभणेइ य पाउलयं जड़ किं पि हु अम्ह देसि न हु इत्थ । ता नियगेहे गंतुं नेव तुमं लहसि कहवि पुणो ।। १७ ॥ पाउलएणं गहिओ किरणो पभणेह लोयपञ्चक्खं । सच्चं चिय संजायं धम्मस्स वि धरणयं एवं || १८ || अइसंकडंमि पडिओ feat अकंपमाणहत्थेण । अप्पे तत्थ ताणं एगं चिय दद्धलोहडियं ॥। १९ ।। अह कसिणमुहो किवणो सुन्नमणो
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पाइअ
संगहे।
दानविषये कृपण
श्रेष्ठीकथानकम्।
॥१२॥
गच्छए निए गेहे । अम्भुक्खणं (१) विणा वि हु सो निवडइ ज्झत्ति खट्टलए ॥ २०॥ तं पेच्छिऊण लच्छी पभणइ कि नाह ! दीससे दुहिओ। किं मुट्ठो केणावि हु? किंवा तुह पवहणं फुट्ट ॥२१॥ किं न निएसि निहाणं ? किं वा अवमनिओ य केणावि । किं वा चलाउ केण वि किं पि तुमं मग्गिओ आसि ॥ २२ ॥ एवं सो भणिओ वि हु किं पि न वियरेइ उत्तरं तीए । अह सा पुणो वि जंपइ नाह ! तुम भोयणं कुणसु ॥ २३॥ सो पभणइ कोवेणं झंखंती चिट्ठसे कहं नेव । जं अज्ज मज्झ जाय कि पि तुमं तं न हु मुणेसि ॥२४॥ लच्छी भणेइ किं किं तुह जायं ? मज्झ पिययम! कहेसु । सो मणइ पाउलेणं लोहडिओ अञ्ज मह गहिओ ॥ २५ ॥ सा वजरेह पिययम ! इह अत्थे किजए कहं दुक्खं १ । दाणेण इत्थ लोए पाविजइ नूण सुपसिद्धी ॥ २६ ॥ सो भणइ पसिद्धीए किं किजइ जा हवेह दाणेण | ता अञ्ज मज्झ दइए! नत्थि छुहा नेव मुंजिस्सं ॥ २७ ॥ दाऊण तओ सवहे कुणावए भोयणं पियं लच्छी। कहकहवि कवलपंचयमह मुंजइ किवणसिट्ठी वि ॥ २८ ॥ एवं बढ़ताणं ताणं जा जाइ कित्तिओ कालो । ता लच्छिसिट्टिणीए जाया गम्भस्स संभूई ॥ २९ ॥ सा पडिपुन्ने काले पुत्तं पसवेह पुनसंपुग्नं । लच्छी पमणइ पिय ! कुणसु पुत्तजम्मूसवं सम्मं ॥ ३० ॥ किविणो मासह पिययमि ! तुझ हविस्संति नूण बहुपुत्ता । तो मज्झ नत्थि अत्थो वयजोग्गो को वि गंठीए ॥ ३१ ॥ लच्छी मोणेण ठिया नवरद्धं ओसहं षयाइजुयं । जह नो पिच्छह सिट्ठी तं तह भक्खेह सा सिग्धं ॥३२॥ संखेवेणं दिनं नामं पुत्तस्स पुषकलसु ति । सो वि हु कमेण वह बालो जिणधम्मलीणमणो ॥ ३३ ॥ उवविसइ तओ हटे दवं च समुजए सया वि बहुं । नियभुयअजिअदवं दाणे भोगमि वियरेइ ॥ ३४ ॥ नियपुत्वं भक्खंतं तंबोलं पिच्छिऊण सहस ति। आरत्तवयणकमलो सिट्ठी पुणु
SACROICERCOAR
॥१२॥
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हवह कोवेण ||३५|| अह अमदिणे किवणो रयणीअर्द्धमि पिच्छए सुमिणं । पुनकलसेण ब्राहि लोहडिओ मक्खिओ अज || ३६ ॥ इपिच्छिऊण सुमिणं उदुइ किविणो समाउलीहूओ । पभणइ सुत्ता ? अहवा किं जग्गसि १ पिययमे ! तुमयं ॥ ३७ ॥ कहकहवि हुजा जग्गह ता किवणो पभणइ सुणसु मह वयणं । तुह पुत्तेणं बाहिं लोहडिओ भक्खिओ अज्ज ॥ ३८ ॥ सा पभणड़ किं खसि १ किं कहिओ केण किं सयं दिट्ठो १ । सो मणइ मए सेट्टिणि ! सुमिणे दिट्ठो इमो अत्थो ॥ ३९ ॥ लच्छी पभणइ पिययम ! सच्चविओ सो आहाणओ तुमए । जं सुमिणगपट्ठीए मूढ ! तुमं रउडयं देसि ॥ ४० ॥ किवणो जंवर सेट्ठिणि ! जयति तुमं कुणसु दीवयं इत्थ । सा वि छु मोणं कुणिउं सुत्ता नो उत्तरं देह ॥ ४१ ॥ किरणो वि हु कुणिंऊणं सयमवि दीवं बोहर पुत्तं । वियरेसु हट्टलेक्खं रे। रे! मह अञ्ज सिग्धं पि ॥ ४२ ॥ अह कड्डिय संपुडयं पुत्तो वि हु हडलेक्खयं देइ । अनुलोमविलोमाओ न पुजए कहवि लोहडिओ ॥ ४३ ॥ तो पभणह किवणो वि हु रे! रे ! पाविट्ठ! मज्झ सबघणं । थोत्रेणं थोवेणं तर अहं मक्खियं मन्ने ॥ ४४ ॥ पुत्तो वि हु मणइ मए कम्मि दिणे ताय ! मक्खियं दवं । उच्चसरेणं कलहंति जाव ता तस्थ किं जायं १ ।। ४५ ।। समयंमि तंमि तस्स उ मितिं स्वणिऊण जाव पविसे । एगो चोरो ता तत्थ निसुणए ताइं वयणाई ॥ ४६ ॥ चितह जह गिण्डिस्सं दवं किवणस्स जीवियं गहियं । ता खलु एस मरिस्सर पावेउं हिययसंघ ॥४७॥ गिव्हिरसह गोहचं को स्खलु एयस्स चितिउं चोरो । गच्छ सिग्धं पि तओ कत्थ वि अन्नत्थ ठाणंमि ॥ ४८ ॥ किणो वहुविवयंतो रयणिं सयलं पि चिट्ठए तत्थ । रे पुत ! तुज्झ ठाणं मह गेहे नत्थि पमणेइ ॥ ४९ ॥ चिंते पुनकलस कायम किं व दद्वेण १ । जं न सगं नेव परो भुंजिस्सह कवि कहयात्रि ॥ ५० ॥ जइ इत्थेव बुभुक्खा
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पाइअ
दानविषये
ॐ
संगहे।
सहिजए नूण ता वरा दिक्खा । परलोए वि हु लोओ जीह पहावा हवइ सुहिओ ॥ ५१ ॥ पिउपुत्ता अन्नोन रिउणो खलु हुंति जस्स कब्जेण । तं अत्थं चहऊणं घना मिहंति पहजं ॥ ५२ ।। अह माणधणो धम्मे दिनमणो नियगिहाउ नीहरिउं । कृपणएममि वरुजाणे संपचो पुनकलसो वि ॥ ५३ ॥ पिच्छेइ तत्थ साहुं पणमिय तस्लेव संनिहाणमि । संसारविरत्तमणो पञ्चजं
बेष्ठिमिण्डए ज्झत्ति ॥ ५४ ॥ मुणिऊणं वुत्वंतं गच्छह अन्नत्थ तेण सह साहू । एवं मुणिउं लच्छी सई पि हु लोयवयणाओ कथानकम् । ॥ ५५ ॥ विमणमणा सा वि पुणो नियनाहं पद पयंपए एवं । पुनकलसेण दिक्खा गहिया किं कृणमि तुममिण्डिं ? ॥५६ । किंकायद्यविमूढा लच्छी चिंतेइ गाढदुहियमणा । मह अञ्ज पुत्तरयणं हत्थाओ निवडियं कह णु ।। ५७ ॥ निभग्गिया अहं खलु दबिरहे फुट्टए न ज हिययं । पुनस्स पुणो कलसो सो च्चिय जेणं मुणी जाओ ॥ ५८ ॥ सिट्ठी पहायसमए खत्तं दढुण मणइ नियदइयं । चोरेण गिममाणा कलहेण य रक्खिया लच्छी ॥५९ ॥ पढिऊण पुन्नकलसो थोत्रदिणेहिं पि बारसंगोइं । लच्छिविलासे नपरे पुणो वि सो एइ उजाणे ॥ ६० ॥ तं आगयं मुणेउं लोओ सबो वि जाइ उजाणे । लच्छीसहिओ किवणो जाइ अह वंदए पुत्वं ।। ६१॥ सो पुनकलससाई गहियवयं पिच्छिऊण लज्जाए । चिट्ठइ अहोभुह च्चिय तो तं पमणेइ मुणिनाहो ॥ ६२ ॥ इह संसारे एको सुदुजओ [ होइ] लोहगादरिऊ । तेण विजियाण कहमवि न हु सोक्खं होइ लोयाणं ॥६३।। दिट्ठतो इत्थ तुमं पुवमवे सुणसु तं समासेण । लच्छिविलासे नयरे एयंमि समिद्धिसंजुचो ॥६४॥ बाहडनामो सेट्टी तस्स पिया अस्थि रूविणी नाम । सेवंताणं ताणं विसयसुहं गाढनेहेण ॥ ६५ ॥ जाओ सि तुमं पुत्तो नाम धवलो ति तेहिं तुह दिनं । कालक्कमेण बाहडसिवी पंचत्तमावन्नो ॥ ६६ ॥ अह धवलो चिंतेइ जणएण समजिया इमा लच्छी । IP॥१३॥
RECORRECOR
CSC565
CHAR
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दुगुणी कुणेमि जह कहवि तस्स तायस्स ता पुत्तो ॥ ६७ ॥ नो विपरइ दाणेणं भयं पि उवभुंजए न कहयादि । न य सयणबंधवाणं लच्छी बहुअए तस्स ॥ ६८॥ सीवणधोयणकम्म कुणेइ सर्व पि सो सयं चेव । तस्संगमञ्जणं पि हु हवेह धणतेरसीदियहे ।। ६९ ।। सुको लुक्खो अइमलिणचीवरो भमइ रयणिदिवसं पि । कत्थ वि अत्थो होही इय चिंताए सयाकालं ॥ ७० ॥ जो को वि तस्स पासे उवदिसई देइ तस्स पुण सिक्खं । चलरूवे संसारे दायवं दाणमिह निचं ।। ७१ ।। इय मणिऊणं धवलो अवरजणं दावए सया दाणं । परलोयंतरजोग्गं तेणेव उवजए पुग्नं ।। ७२ ॥ इय सो गमेह कालं सयं पुणो देइ कहवि न हु दाणं । अन्न लोयं दितं पिच्छिय अइनिबुई होइ ॥ ७३ ॥ नियआउं पालेउं धवलो मरिऊण सो तुम जाओ । चइऊणं सवं पि हु नियदत्वं भूमिमज्झमि ॥ ७४ ।। पुरभवे वि हु तुमए दाणं दिनं कयावि न हु जेणं । तेण तुह दाणसची नहु जाया इत्थ वि भवंमि ।।७५।। दाणे वा ज्झाणे वा अज्झयणे वा तहेव अन्ने वि । पुत्वभवम्मासाओ सिग्धं पि पयट्टए लोओ ॥ ७६ ॥ जेणं अवरजणाओ दाणं निचं पि दावियं तुमए । तप्पुन्नप्पहावाओ तुह इह जाया गरुयरिद्धी ॥ ७७ ॥ लच्छीए उवओगो न कओ कहयावि जेग पुत्वभवे । इत्थभवे तुह तेणं तीए फलं किं पि नो जायं ॥ ७८ ॥ इय मुणिऊणं दाणं देयं निच्चं पि लच्छिसंजणणं । अहवा दाणपहावा तं नत्थि न जं हवइ लोए ॥ ७९ ।। इय सुणिऊणं किवणो जाई सरिऊण नियह पुवभवं । पच्चक्खं चिय सवं अह मुणिनाहं पयंपेइ ।। ८० ॥ दम्माण लक्खमेगं परिग्गहो हवउ मझ आजम्मं । अनं सत्वं धम्मे वियरिस्सं अजदियहाओ ।। ८१ ।। अह पुत्रकलससाहं किवणो नमिऊण
१ उवजुज्जए BI
LEARCRAWALA
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पाइअ
कहासंग ।
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जाइ नियगेहे । जिणभवणवसहिवरपुत्थएस वियरेइ नियदवं ॥ ८२ ॥ साहम्मियवच्छलं संघस्स य पूर्याणं कुणइ निचं । दीणाणा जणाणं सुवणटंके पुणो देह ॥ ८३ ॥ कप्पडियतडियभिक्खायराण रयणाई देह अणवरयं । भट्टनगारियपाउललोयं सो कुइ अदरिदं ॥ ८४ ॥ रयणीए भंडारो दाणपहावेण वडए तस्स । दुइयदिणे तं वियरइ जहिच्छियं पइदिणं सेट्ठी ॥ ८५ ॥ दाणपहावा तेणं तंमि भवे महीयलंमि सयलंमि । निम्मलकित्ती पत्ता मणसंतोसेण संजुत्ता || ८६ ।। अह मुणिय अंतसमयं सत्तसु खित्तेसु वियरए दाणं । लच्छीपियाए सहिओ सविसेसं धम्मलीणाए || ८७ ॥ नियआउं पालेउं अंते सुविसुद्ध भावणपराई | मरिऊण देवलोए इंदसमाणा सुरा जाया ||८८|| इति दानविषये कृपणश्रेष्ठिकथानकं समाप्तम् ।
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शीलप्रभावे जयलक्ष्मीदेवीकथा – दुस्सज्यं पि हु सिज्झइ सीलपहावेण ज्झत्ति लोयाण । जयलच्छीदेवीए दितं सुणह सुहजणयं ॥ १ ॥ भारहखित्ते खिते विजयउरं अस्थि लच्छिदुल्ललियं । नामेण विजयसेणो नरनाहो तत्थ बलकलिओ || २ || तस्संतेउरसारा विजया नामेण पिययमा अस्थि । अइपिम्मपासनद्वाई दो वि न सहंति विच्छोहं ॥ ३ ॥ अह मद्दव मासे एगेणं धीवरेण नइमज्झे । मच्छरगहणनिमित्तं वित्थारिय घल्लियं जालं ॥ ४ ॥ तत्थ जलपूरखिविया पडिया सहस चि पाउया एगा। मणिरयणकणयघडियं तं पिच्छिय धीवरो हिडो ॥ ५ ॥ चिंतइ रम्मत्तणओ एसा नरनाहपियमाजुग्गा । अह सो गच्छह सिग्धं पाउयहत्थो निवसयासे ।। ६ ।। तम्मि समयम्मि कत्थ वि नरनाहो जाइ रायवाडीए । उद्धकरपाउयं पिच्छिऊण तं पुच्छर सिग्धं ॥ ७ ॥ भो ! भो ! तुमए एसा लद्धा अदरम्मपाउया कत्थ ? । कहिऊण सो वि
शीलप्रभावे जयलक्ष्मीदेवी
कथानकम्
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CACANCIENCE%AALCHUC036
सई समप्पए पुहइनाहस्स ॥ ८ ॥ नरनाहो दाऊणं उचियं किं पि हु विसज्जए तं पिन कुणिऊण रायवाडि धवलगिहे ज्झत्ति संपत्तो ॥ ९॥ विजयाइ पिअयमाए सो तं अप्पेड़ पाउयं एगं । तं नियचरणपमाणं पिच्छिय सा भणइ हिट्ठमणा ॥ १० ॥ पिययम ! जइ मह जोग्गं दुइयं आणेसि पाउयं कहवि । ता हं करेमि भोयणमह नो नियमो महं असणे ॥ ११ ॥ पमपणेइ सुत्तहारे नरनाहो नयरमंडणसमाणे । एयसरिच्छं दुइयं सिग्धं पिहु पाउयं घडह ॥ १२ ॥ तं पिच्छिऊण ते वि हु अइदुग्धडपाउयं अपडिरूवं । पमणति अम्ह पिउणो वि नत्थि पहु! एरिसा सत्ती ॥ १३ ॥ सुणिऊण ताण वयणं कमसलायं व दुक्खिओ निवई । किंकायबविमूढो तो पडहं दावए नयरे ॥ १४ ॥ एयसरिच्छं जो कहवि आणए इत्थ पाउयं दुइयं । सो लहइ दम्मलक्खं वियखणो नेव संदेहो ॥ १५ ॥ अह मगरदाढनामा तं छिविडं कुट्टिणी भणइ निवई । इह पाउयमाणेमी तस्सामिणिसंगयं अहयं ॥ १६ ॥ इय भणिय अद्धलक्खं पढमं मग्गेइ देइ निवई वि । उड्डमुहा निग्गच्छइ नयराओ कुट्टिणी तत्तो॥१७॥ भुंजइ विजयादेवी निव्वुअहियया निवेण सह तत्तो । जीविजड़ आसाए पंचा(हया)साए पुणो नेव ॥१८॥ सुहस उणसूइउच्छाहकहियहिययइट्ठसिद्धिसंतुट्ठा। गामे पुरंमि वरपट्टणं मि खेडे मडंबे य ॥ १९ ॥ परिममइ रयणिदियह दसमासं जाव कुट्टिणी मयरा । हियइच्छियस्स सिद्धिं कहवि हु कत्थवि न पावे ॥ २०॥ अह सा विलक्खहियया चिंतइ सउणा वि निष्फला मज्झ । ता कह भट्ठपहना नियनयरं जामि निल्लज्जा ॥ २१ ॥ कयउच्छाहा जा पुण वि भमइ ता नियइ नयरमेगं सा। कत्थवि जत्थ न दीसइ दुपयं व चउप्पयं वा वि ॥ २२ ॥ सुन्न हदृस्सेणं गिहपंतीओ य तह 18 नियच्छंती । जा गच्छइ धवलगिहे विचित्तचित्ताइसंजुत्ते ॥ २३ ॥ सोहग्गरूवनिजियसुरंगणं पढमजुव्वणसमेयं । ता नियइ
OCREASEISEASEASON
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पाइअ
कहा
संगहे ।
॥ १५ ॥
तत्थ कथं कामोत्रम कुमरसंजुत्तं ॥ २४ ॥ ताई वि तं पिच्छेउं अन्युड्डाणं कुणंति सहमति । उववेप्सिय पुच्छंती किमत्थमिह तुझ आगमणं १ ।। २५ ।। दाऊणं समओचियमुत्तरमह सा वि खित्रइ जा दिहिं । ता नियइ एगकोणे एगं चिय पाउयं रम्मं ॥ २६ ॥ तं पिच्छिऊण चिंतह एसा दीसे तस्स सारिच्छा । एयाए एस चिय हविस्तई सामिणी मने || २७ ॥ ता अज मज्झ चिंतियमणोरहा सहलभावभावना । एसा कह नेयधा सपाउया तम्मि नियनयरे ।। २८ ।। अह तेहिं सा भणिया अम्मी ! अम्हाण हो पाहुणिया । आमं ति भणिय भुंजिय चिट्ठह सा तं दिणं तत्थ ।। २९ ।। अह एगंते जाए मयरा पुच्छेद सुद्भवणेण । वच्छि ! कई उसियं नयरं १ को एस १ का य तुमं १ ॥३०॥ सा वीसत्था पभणेड़ सुण अंब ! समत्थि जयउरं नयरं । तत्थ निवो जयसूरो पाणपिया जयसिरी तस्स ॥ ३१ ॥ जयलच्छी नामेण तणया ताणं समुप्पन्ना। सिक्खि अकला कलावा कमेण अह जुवणं पत्ता ||३२|| अम्हाण आसि रजे दिनं कुलदेवयाइ कमपत्तं । बहुसो दिवपहावं अहरम्मं पाउआजुयलं ||३३|| देवो व वंतरो वा रोगार्थको व अहत्र दुम्भिक्खं । परचकं च सचकं तस्स पहावा न पूरेह ॥ ३४ ॥ ताणं मज्झा एगा पुच्छे कवि कत्थ गया । खेयपरो मह जणओ तत्तो पालेइ रजमरं ।। ३५ ।। अह कित्तियंमि समए गयंमि पासाय सिहरपचाए । मह रूवं दट्टणं अइलुद्धो वंतरी एगो || ३६ || मह जणयं जयसूरं अह सो पभणेइ नियधुया तुमए । दायवा कस्सावि हु ता मह देवस्स वियरेसु ||३७|| अह भगइ मज्झ जणओ वंतरमणुयाण मिलइ न कया वि । इय पडिसिद्धो सो बिहु गाढं कोवेण संजुत्तो ॥ ३८ ॥ निहणे मज्झ जणयं जणणि अह सवनयरलोयं पि । मं इक्कं मुत्तूर्ण सो दुट्ठो वंतरी रुट्ठो ।। ३९ ।। अअ अहं नियदइयं कुणिस्समिय भणिय सो गओ व्हाउं । ता सहस चिय एसो कुमरो कत्तो वि संपत्तो ॥ ४० ॥
शीलप्रभावे जयलक्ष्मी
देवी
कथानकम् ।
।। १५ ।।
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तो बुचंते पुढे तेणं कहिए मए कुमारेण । आगच्छंतो नीओ पंचतं एस खम्गेण ॥ ४९ ॥ तस्थमए तस्पावि हु पडिपुत्रो अस्थि आउसमउ चि । कुमरखरखग्गघाओ निमित्तमित्तं पुणो जाओ ।। ४२ ।। मज्झ मर्ण मुणिऊणं परिणीया इं अणेण कुमरेण । कल्लदिणे संझाए गंधवेणं विवाहेण ॥ ४३ ॥ अह एसो रयणीए सुत्तो मिल्हेइ उण्हनीसासे । तो अंब ! मए पुट्ठो कहे किं तुज्झ पिय! दुक्खं १ ॥ ४४ ॥ इय मणिए कहकहवि हु एसो पभणेह पिययमे ! सुणसु। गंधवपुरे नयरे नरसीहो अस्थि नरनाहो ॥ ४५ ॥ संजाओ तस्स सुओ सूरो नामेण सो पुणो अहयं । मह अस्थि दुवे मित्ता परोप्परं नेहसंजुत्ता ॥ ४६ ॥ एगो अमचपुत्तो सुबुद्धिनामो सुबुद्धिसंजुत्तो । धारडनामा तणओ दुइओ उण सुत्तहारस्स || ४७ ॥ देसान दंसत्थं पच्छन्नं निग्गया सर्गेहाओ । महिमंडलं नियंता पत्ता अह पवए एगे ॥ ४८ ॥ तत्थ अघोरो नामा जोगिंदो अस्थि मंततविऊ । मं पिच्छिऊण पभणइ सो गाढं भत्तिसंजुत्तो ॥ ४९ ॥ तुह साहिजा विजं कुमार ! नहगामिणि पसाहेमि । मूरो धीरो उवयारसंजुओ दीससे जेण ।। ५० ।। इय भणिए जोगिंदं अहं पि पभणेमि तत्थ पाणपिए ! । जं किं पि मए सिज्झइ तं साहस नूणं सहमति ॥ ५१ ॥ जोगिंदेणं सवं पूओवगरणं समाणियं तत्थ । पत्ते रयणीममए उबविट्ठो निच्चले ज्झाणे ।। ५२ ।। आयड्डिय करवालो अहं पि चिट्ठेमि जात्रे ताव पुणो । अइभीमणरूवधरो संपत्तो रक्खसो एगो ।। ५३ ।। सो भणइ मज्झ समुहं रे ! गच्छतुमं सजीविअं गहिउं । जोगिंदं पुण दुङ्कं पाविट्ठमहं हणिस्सामि ॥ ५४ ॥ मइ जीवंते नो कहवि मरह रे ! अहम ! एस जोगिंदो । इय भणिए मह समुद्दो कोवेणं ज्झति जा पत्तो ।। ५५ ।। ताव मए सो हियए पायपहारेण निहणिओ बाढं । जीवियसेसो नट्ठो पाविट्ठो ज्याति दूरंमि ।। ५६ ।। जोगिंदस्स वि विजा सिद्धा तेणं नओ अहं भणिओ ।
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पाइअ
कहा
संग हे ।
॥ १६ ॥
॥
पच्चुवयारं काउं न समत्यो कुमर ! तुज्झ अहं सुरा विजिष्यंति निश्चपि ॥ ५८ ॥ अग्भिड जाव छम्मासे ।। ५९ ।। असिईसयदीहाणं मज्झे
५७ ॥ तहवि हु एयं खग्गं दिपहावं कुमार ! गिण्हेसु । एयस्स पहावेणं कहवि महिला जड़ पुण एयस्स खग्गरयणस्स । तो तस्सामी होही अचेयणो जड़ को विनिययसत्तीए जीवावड़ ता जीवड़ अह नो सो मरड़ पुण पच्छा ॥ ६० ॥ ता महिलाए फंसो रक्खेयवो कुमार ! जत्तेण । इय कहिय तेण खग्गं समप्पियं गिव्हिअं च मए ॥ ६१ ॥ अह कहवि रमणिकरकमलच्छित्तखग्गाउ वेअणा तुज्झ । गच्छ ता तुह मित्तो आणि (हरि) स्सह एम मंतिसुओ ।। ६२ ।। रक्खडिया मह एगा समपिया तेण कहिय माहप्पं । तिसछुहसीउण्डदुहं पासठिया हरई खलु एसा ॥ ६३ ॥ एगो मंतो तेणं दिन्नो कहिऊण मंतिपुत्तस्स । एयपहावा जीवह चेयणरहिओ वि जीवजुओ ॥ ६४ ॥ जत्थ लिहिज्जइ एसो नहेण तं जाइ चिंतियं ठाणं । इय भणिय मंतमेगं समप्पर सुत्तहारस्स ।। ६५ ।। कुणिऊणं पिए ! एवं जोगिंदो अम्ह गरुयमुवयारं । अन्नत्थ नहेण गओ तत्तो अम्हे वि संचलिया ।। ६६ ।। मग्गे गच्छंताणं कहकहमवि दिवपरिणइवसेणं । मुल्ला परुप्परेणं ते कत्थ गया न जाणेमि ॥ ६७ ॥ मग्गंमि ताण सुद्धिं मग्गंतो हं इह समायाओ । मित्तविओओ एवं दुक्खनियाणं पिए ! मज्झ ॥ ६८ ॥ एयं अणेण गुज्झं कहिअं अम्मो ! मए वि इह तुज्झ । इय सुणिय विहियमणा मयरा एवं विचिते ॥ ६९ ॥ कुमरंमि विजमाणे नो मह भणियं कुणिस्सई एसा । ता खग्गष्फंसेणं अचेयणं कुणिय इह एयं ॥७०॥ दावेऊणं किं पि हु लोहं एवं अहं तर्हि नेमि । इय चिंतिऊण सिग्धं जा पत्रिसह ज्झति अवयरए ॥ ७१ ॥ अइरम्मं अइरम्मं वग्गं कस्सेरिसं ति पुण भणिरी । फंसह दुट्टा मयरा वारंतस्सावि कुमरस्त ॥ ७२ ॥ अह कुमरो नियदेहे दाहं अइदुस्सहं मुणेऊणं । जयलच्छी ( जयलच्छि )
शीलप्रभावे
जयलक्ष्मी
देवी
कथानकम् ।
॥ १६ ॥
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एगते हक्कारिय भणइ ससिणेहं ॥ ७३ ॥ जो साहिओ मए तुह एगते खग्गरयणयुक्ततो । मूढमणाए तुमए सो कहिओ दुट्ठमयराए ॥ ७४ ॥ जो पुरिसो महिलाणं हिययामिप्पायमप्पए कहवि । सो नूणं मृदमई अप्पाणं खिवइ दुइजलणे ॥ ७ ॥ मयराए मह खग्गं फरिसियमेयं अणाए दृट्टाए । इय मुणिऊण दइए ! तुमए वि न वीससिया ॥ ७६ ॥ ता हं चेयणरहिओ हविस्समग्गी पुणो न दायको। जइ पुण कहमवि एवं मुणिम इह एइ मंतिसुओ ॥ ७७ ॥ ता मह जी दइए! छम्मासं जाव तो परं मरण । इय कहइ जाव तीए ता नट्ठा चेयणा तस्स ॥७८|| अह पमणइ जयलच्छी अंच! मओ मज्झ पिययमो कहवि । अइदुक्खदुक्खिया वि व तं मुणिउं भमइ(भणइ) मयरा वि ॥७९॥ सच्चं चिय जइवच्छे! तुझ पिओ एस मरण मावनो। मा तहवि कुणसु दुक्खं दाही अन्नस्स नियति ॥ ८॥ विजयपुरे नरनाहो नामेणं अस्थि विजयसेणु ति । सुहयसिरोमणिमझे रेहा तस्स चिय जयम्मि ।। ८१॥ तं पाणपियं काउं भुजसु मोए जहिच्छिए निच्चं । तं नयरं पइ संपइ ता चलसु मए समं वच्छि! ॥ ८२ ॥ इय सुणिऊणं चिंतइ किं किं एसा कुणेइ पाविट्ठा । सब पिच्छेमि ददं तत्तो सा जंपए मयरं ॥ ८३ ॥ अंब! तए अहरम्मं भणियं ता चलम मं गहेऊणं । पाउअजुत्ताउ तओ विजयपुरे दो वि पत्ताओ ॥ ८४ ॥ एगम्मि पुरुजाणे जयलच्छिं ठाविऊण सा भणइ । नरनाहं तुह समुहं बच्छे! सिग्धं समाणेमि ॥ ८५॥ विहसियवयणा मयरा रायउले जाइ नमइ नरनाहं । पुट्ठा तेणं साहइ चरियं सवं पि वित्थरओ ॥ ८६ ॥ मयरा पाउयमप्पिअ पमणइ एयाइ सामिणी वि मए। आणीया उजाणे चिट्ठह संपइ चलसु समुहं ।। ८७ ॥ तं पाउयं समप्पा तुट्ठो देवीए ज्झत्ति नरनाहो । कइवयजणसंजुत्तो
१ अहं BI
RECARRAGRAAGRAT
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पाइअ
कहासंगहे ।
1120 11
संपतो तंमि उज्जाणे ।। ८८ ।। विजिअसुरंगणरूवं तं पिच्छिय पंचवाणकर भलि । ईसाए विव विद्धो मयणेण सरेहिं नरनाहो ॥ ८९ ॥ ससिणेहं सो जंपइ सहलं मह कुणसु जीवियं दइए ! । जइ सुपसन्ना सि तुमं ता अंतेउरमलंकुणसु ॥ ९० ॥ सा भइ तओ एगं नरनाह ! सुणेसु वयण मज्झमिणं । नियपिययममयकिच्चं काय जाव छम्मासं ।। ९९ ।। सत्तागारे दाणं तस्स निमित्तं मए सया देयं । जं भणसि तुमं पच्छा तं चेव अहं कुणिस्सामि ।। ९२ ।। इय सुणिए नरनाहो पभणइ एवं हवे सो तसो । कारिय सत्तागारं पूरह सर्व्वं पि सो तीए ।। ९३ ।। सावि हु सत्तागारे विअरइ पहियाण भोयणं निच्चं । सविसेसं परिपृच्छ नामं ठाणं पि ताण पुणो ॥ ९४ ॥ एयं चिय सा चिंतइ सीलपहावो समत्थि जइ मज्झ । आगच्छि सिग्धं मंतिसुओ ता मह सयासे ॥ ९५ ॥ जयलच्छि सील मंतप्पहा व आगरिसिअं व संपत्तं । पहियदुगं अन्नदिणे सा ताणं पुच्छ वतं ।। ९६ ।। ताणं एगो पभणइ गंधवपुराउ तिन्निमित्तवरा । देसाण दंसणत्थं संचलिया कोउअक्खिता ॥ ९७ ॥ नरनाहसुओ सूरो मंतिसुओ हं सुबुद्धिनामेण । वरसुत्तहारपुत्तो विक्खाओ धारडो एसो ॥ ९८ ॥ सूरस्स पुणो मग्गे भुल्ला • इत्थेव तं निरक्खता । छुहिया भोयणहेउं समागया तुज्झ पासंमि ।। ९९ ।। अह विहसियमुहकमला जयलच्छी कहद्द मंतितणस्स । कुमरस्स वित्थरेणं निअपाणपियस्स वृत्तंतं ॥ १०० ॥ ता मंतिपुत्त ! गच्छसु गहिऊणं मं पि जयउरपुरंमि । जीवावसु तं कुमरं नहेण गंतूण सिग्धं पि ॥ १०१ ॥ तो घड घारडो वि हु विमाणमेगं लिहेइ तर्हि मंतं । अह पभणइ जयलच्छी अच्छरिअं किं पि हु कुणिस्सं ॥ १०२ ॥ नरनाहो निचं पि हु आगच्छ इत्थ पिययमासहिओ । ता तस्स पियं वित्तुं न गच्छ सिग्धं ।। १०३ ।। इय जा कुणंति वत्तं समागओ नरवई पियासहिओ । दट्ठूण वरविमाणं विजया उव
शीलप्रभावे जयलक्ष्मीदेवी
कथानकम् ।
॥ १७ ॥
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ॐ
विसइ तत्थेव ।। १०४ ॥ जयलच्छी वि हु उवविसइ मंतिपुचो य धारडो य तहि । हुं गच्छइ य भणेउं विमाणमणुपिल्लिअं गयणे ।। १०५ ।। खणमेचेणं पत्तं जयउरनयरंमि तत्थ तं कुमरं । मंतिसुओ जीवावह हत्थफंसप्पहावेण ॥१०६॥ पुट्ठाई विहसिएणं पाउन्भुयचेयषण कुमरेण । नियवुत्तंतं ताई कहंति सर्व पि दुहियाई ।। १०७ ।। मंतिसुएण रजंमि तम्मि अहिसिंचिओ तओ कुमरो। अह सूरमहीवइणा तं नयरं वासियं सत्वं ॥ १०८ । विजया वि तत्थ चिट्ठइ सो वि हु कुणइ तीए बहुभत्ति । सिरिविजयसेणपिअयमविरहे सा चिंतए दुहिया ॥ १०९ ॥ फलमेयं संजायं ममं परपाउयाइ लोहेण | जो भक्खेइ करवं विडवणं सहइ सो अहवा ॥ ११० ॥ अह विजयसेणनिवई अच्छरियं पिच्छिऊण तं मयलं । सो दिनगल्लहत्थो | अहोमुहो चिंतए दीणो ॥ १११ ।। दुट्ठाइ तीइ नीया कत्थ वि मह पिअयमा न हु मुणेमि । विरहानलतवियगी सा कह जीविस्सइ वराई १ ॥ ११२ ॥ इअ सो झंखइ निचं गहिलमणो मुक्करजवावारो । पभणेइ मयरदाहं मह दंससु पाउयाठाणं ॥११३ ।। जंपेइ मयरदाढा जयउरनयराउ पाउया एसा । आणीया इत्थ मए भमिऊणं सयलमहिवलयं ।। ११४॥ कइवयनिअलोअजुओ कुट्टिणिसहिओ य जयउरे चलिओ। वीसंभट्ठाणेसु मंतीसुं अप्पिउं रजं ॥ ११५ ॥ सो तत्थ गओ कमसो ओलक्खेऊण ज्झत्ति जयलच्छी । नियपइणो तं साहइ सो वि कुणइ तस्स पडिवत्तिं ।। ११६ ॥ अह पभणइ जयलच्छी नरनाह ! कयावि हवइ न हु सुक्खं । पररमणीलुद्धाणं तस्संगमवावडमणाणं ॥ ११७ ।। जयलच्छीए विजया समप्पिया तस्स कुणिय सम्माणं । तं गहिउं नियनयरे सो तेहिं विसजिओ पत्तो ॥११८॥ अह कुणिअ रजसुत्थं जयउरनयरंमि
१ विमाणमणुपिलिङ A I
ACCORECAPACHAR
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पाइअकहासंगहे।
शीलप्रमावे सुन्दरिदेवीकथानकम्।
॥१८॥
मित्तसंजुत्तो । सपिओ य सूरनिवई गंधवपुरंमि संपत्तो॥ ११९ ॥ नियजणणीजणयाणं दुहिअमणाणं मिलंति ते सत्वे । अपुवं किं पि सुहं संजायं संगमे ताणं ।। १२० ।। अह तत्थ मंतिपुत्तेण साहिअं सयलमवि नियं चरियं । नववहुयं जयलच्छि पाडइ चलणेसु ससुराणं ॥ १२१ ॥ अंतसमयंमि तेहिं रजंमि निवेसिओ निओ कुमरो । अह मूरनिवो पालइ रजदुर्ग नायसंपन्नो ॥ १२२ ॥ जयलच्छी नियनाहं देवयमिव ज्झायए सया हियए । सीलपरा धम्मजुया दियहाई गमेइ सोक्खेणं ॥ १२३ ॥ जयसेणनिवेणेसा लोहं भत्ति पि दंसिउं भणिया । जयलच्छीए तह वि हु मणमा वि न खंडियं सील ॥ १२४ ॥ नियआउं पालेउं पत्ता मरिऊण देवलोगंमि । सिरिजयलच्छीदेवी निरुवमसीलप्पहावेण ॥ १२५ ॥
इति शीलप्रभावे जयलक्ष्मीदेवीकथानकं समाप्तम् ।
->__ शीलप्रभावे सुन्दरिदेवीकथानकम्-[सो] मणवंछियसिद्धी(दि) देवाणं सुदुल्लहा(ई) वि पावेइ । जो पावइ(पालइ) वरसीलं सुंदरिदेवीए नाएण ॥१॥xxxxxxx वे वडणयं हवइ खंडगुलयंमि । सारिरमणमि मारो उपसग्गो सहसत्थेसु ॥ २॥ पीलिजइ तह उच्च जुन्नेसु देउलेसु उद्धारो। दंडो छत्ते दीसइ न उणो लोयस्स कइयावि ॥ ३ ॥ अमरसु(पृ)रीए समाणं नामेणं अस्थि रयणउरं नयरं । घणकतिरयणनिम्मियगयणग्गविलग्गदेवउलं ॥ ४॥ निच्चं दुहिओ लोओ मणवंछियविहवसारजुत्तो वि । दाणसमयंमि को वि हुन दीसए मग्गणो जत्थ ॥ ५॥ उज्जमबुद्धिपरकमधीरिमउवयारनायगुणकलिओ । तं पालइ अरिदमणो अरिदमणो नाम पुहहबई॥६॥ सोहग्गपिम्मलायनरूवसीलगुणभूसिया निचं । तस्सं
ACA4
॥१८॥
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CACIRCLOCI RCLOCAAAEE
तेउरसारा कमला कमल व पाणपिया ॥७॥ घणउ व तत्थ निवसइ सेट्ठी नयरस्स मंडणं परमं । दाणोवयारदक्खिन्नसंजुओ नाम धणसारो ॥८॥ सीलजमछेयत्तणलजाउवयारमंडणा निच्च । तस्स पिया पिम्मबई पिम्मवई नाम धम्मपरा ॥९॥ नियइच्छाए ताणं सेवंताणं सया वि विसयसुहं । जाया कमेण पुत्ता सत्त सुसत्तेण संजुत्ता ॥१०॥ तहवि हु दीणमणा सा सेट्ठी पुच्छेद तुज्य किं दुक्खं ? । को तुह खंडइ आणं ? मइ साहीणे सयाकालं ॥ ११ ॥ अहवा मए तुह विहियं कि पि अणिटुं ? तओ भणइ एसा । मा नाह ! भाससु इमं किं मुयइ ससी वि जलणकणे? ॥१२॥ किं पुण धूया एका वि मज्झ । उच्छंगवि(ब)त्तिणी नेव । तो आराहइ सेट्ठी कुलदेवि ज्झत्ति भत्तिपरो ॥१३॥ पञ्चक्खीहोऊणं धूयाजम्मं कहेइ देवो वि । किं चोज ? देवा वि हु हवंति भत्तीए अप्पवसे ॥ १४॥ सिट्ठी पहिछत्रयणो देवीचरियं पियाइ साहेइ । तीए चिय रयणीए संजाया गन्मसंभूई ॥ १५ ॥ संपुन्नदोहला सा पसवइ धूयं सुहेण सुमुहुत्ते । पुत्ताण वि अहिययरं सेट्ठी जसवं कुणइ ॥ १६ ॥ पत्तमि बारसाहे महाविभूईए सयणजणजुत्तो । सुंदररूवा जेणं सुंदरिनाम कयं तीए ॥ १७॥ चंदकल व कमेणं वड्डइ लोयाण दिन्नसंतोसा । कलगहणजोग्गदियहे पढइ सया उजमा कुमरी ।। १८ ॥ सद्दे तके छंदेऽलंकारे तह य उवनिबंधमि । कल्वे नद्दे गीयंमि चित्तकम्मंमि अइनिउणा ॥ १९ ॥ कुसुमसरकेलिभुवणं पत्ता सा जोवणं तओ तीए । सिरिविकमनिवचरियं गिजंतं निसुणियं कहवि ॥२०॥ तो तद्दिणाउ हिययं विक्कमनिवनेहपाससंजमियं । नन्नत्थ रमइ कइयावि मयणसरिसे वि पुरिसंमि ॥ २१॥ विकमनिवई लग्गइ मह देहे अहव हुयवहो जलिरो । इय निच्छइयं हियए न दुक्करं अहव नेहस्स ॥ २२॥ सिंहलदीवसमागयनिवणागभिहाणसिद्विपुत्तस्स । सुरसुंदरिरूवा सा दिन्ना जणएहिं जणसक्खं ॥२३॥ लग्गदिणं सा मुणिउं जाया
CALARGACASSASSANGACAE%
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पाइअ
संगहे।
॥१९॥
REACTICS
हियपंमि दुक्खिया वाढं । चिंतइ किं हयविहिणा मज्झ कयं निकिवमणेण ? ॥ २४ ॥ अह उजेणिपुरि पद सहोअरो तीए शीलप्रमावे वयणसारो चि । ववहारेण चलिओ तं जंपइ सुंदरी ज्झत्ति ॥ २५ ॥ चम्ममओ चित्तजुओ कीडाठाणं सुओ इमो भाय ! सुन्दरिदेवीनियपाहुडस्स उवरिं अप्पसु सिरिविक्कमनिवस्स ॥ २६ ।। सो चलिओ संपत्तो कमेण उजेणिन यरिमझमि | भरिऊण 18 कथानकम्। रयणथालं उवरिट्ठियकीररमणिकं ॥२७॥ गच्छेइ रायभुवणे विक्कमरायस्स नमइ पयकमले । अप्पेइ पाहुडं पि हु पिच्छइ राया | तहिं कीरं ।। २८ ॥ अहिणवपाहुडमेयं कोऊहलकारयं अइसुरम्मं । अवलोइऊण कीरं राया पुच्छेइ सिट्ठिसुयं ॥ २९ ॥ किं एस | कीरराया ? सिद्विसुओ भणइ सामि! निसुणेसु । रयणवई (सुन्दरिदेवी) मइणीए मज्झ इहं पेसिओ देव! ॥३०॥ हरिसपरो चिंतंतो || राया नेमित्तिएण विभत्तो । कीरपहावा होही अप्पुबो कोइ तुह लाहो ॥ ३१ ॥ एगंतं काऊणं पुच्छइ नेमित्तियं स साहेइ । कीरोयरस्स मज्झे सामिय ! चिट्ठेइ कि पि फुडं ।। ३२ ।। दारेऊणं कुच्छि एक पिच्छेइ तत्थ वरहारं । कत्थूरियाउ लिहियं लेहं दुइया(य) उ वाएइ ।। ३३ ।। सुहयसिरोमणि ! विक्कम ! तुम्ह गुणे निच्चमेव ज्झाएमि । सो होही को दियहो दीससि नयणेहिं जत्थ तुमं ॥ ३४ ॥ निवणागस्स बिइमा जणणीजणएहि सिद्विपुत्तस्स । वइसाहकसिणवारसि रविमि वारिजयं होही
॥३५॥ मह देहं नाह! तुम जलणो वा छिवह न उण इयरनरो । एयं मुणिउं पिययम ! जे उचियं कुणसु तं सिग्धं ॥ ३६ ।। | तो लेहत्थं नाउं हरिसचिसाएहिं पूरिओ राया। कह जियइ सा वराई मह विरहे चिंतए दुहिओ ॥ ३७ ॥ रयणउरे गंतवं | उजेणीए समुद्दमग्गेण । जोयणसयाई वीसं लग्गं उण कल्लदियहमि ॥ ३८ ॥ तो अग्गियवेयालं भिचं सुमरेइ सिग्धगमणत्थं । सो आगंतुं पभणइ न हु पहु ! जलहिमि मह सत्ती ॥ ३९ ॥ आसाचुको राया चिंतइ पुरिसेण उजमो नेव । कइयावि हु १९॥
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मो उमवंताण खलु सिद्धी ॥ ४० ॥ वेसपरावत्तेणं रयणीसमयमि धवलगेहाओ । निग्गच्छ असहाओ जाइ तओ रन्नमज्छंमि ।। ४१ ।। खिचंमि तत्थ पुरिसेोगेण पर्यपिओ महीनाहो । को सि तुमं १ पहिओ हं छुहिओ मह किं पि वियरेसु || ४२ || दिनासु कचरीसुं रन्ना गहियासु तो भणइ पुरिसो । रयणपुरं गंतूणं जावागच्छामि ता चिट्ठ ॥ ४३ ॥ इरिसपरो नरनाहो चित आहाणओ इमो सच्चो । जं पिच्छंतो वल्लि स च्चिय चलणंमि मे लग्गा ॥ ४४ ॥ पमणइ दे (वे) संत रिओ सच्च कह कहसु तत्थ तुह गमणं १ । सो भगइ जोगिणीओ वडउवरिं चडिय जंति तर्हि || ४५|| तो हं वडविवरडिओ जामि तर्हि लहइ भोयणं पुरिसो | दे (वे) संत रिओ जंपइ अहमवि तत्थेव गच्छस्सं ॥ ४६ ॥ तो दुनि वि सिद्धवडे संलुका रुद्धसासनीसासा | मिलियाउ जोगिणीओ सिद्धवडो तत्थ उप्पडिओ ॥ ४७ ॥ खणमेचेणं पत्तो नहेण रयणउरपरिसरे एसो । उत्तरिऊणं राया संपत्तो नयरमज्झमि ॥ ४८ ॥ अवलोयह तं सयलं रयणीए विहरिसपूरियच्छाहो । ज्झायंतो एगमणो सुंदरिलाहो कहं होही ॥ ४९ ॥ रयणविणिम्मिय देव उलपंति उज्जोय णेण रयणीए । न हु तत्थ अंधयारस्स होइ कइयावि अवयासो ॥ ५० ॥ कत्थवि गायणलोयं गायंतं सुणइ विविहभंगीहिं । देवउले पिच्छणयं कत्थ वि बहुनाडए नियइ ॥ ५१ ॥ वद्धावणयमहूसव - महं पिच्छे कत्थ वि गिमि । तो पुट्टेणं कहिओ नरेण केणावि वृत्तो ॥ ५२ ॥ धणसारो नामेणं सिट्ठी धूया य सुंदरी तस्स । पाणिग्गहणं होही कल्ले गोधूलिवेलाए ||५३ || इय सुणिउं सो चिंतइ किमिहागमणं निरत्ययं होही । अइदुक्ख दुक्खियमणो तह विहु नो धीरिमं चयइ ॥ ५४ ॥ उक्तं च- दुक्खं जणेह गरुयं लहुयं पि पओयणं असिज्झतं । अइदुहजणणं पि पुणो सिज्झतं जणइ सुहमउलं ।। ५५ ।। जं किंपि हु पुवभवे समज्जियं अत्थि कह वि रे ! हियय है। तं चिय हवइ अवस्सं मा
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पाइअ
कहासंगहे ।
॥ २० ॥
माणं म्रुयसु कइयावि ॥ ५६ ॥ एवं सो चिंतंतो पुन्नसहाओ भमेइ नयरंमि । रयणीए त्रिविकोऊहलेण अक्खित्तचित्तो सो ॥ ५७ ॥ तंमि समयंमि नयरे हत्थिवरो रायवल्लहो नाम । न हु ससइ नेव फंदइ मुय व चिट्ठेइ निचिट्ठो ॥ ५८ ॥ अइदुक्खपरो या समागओ तत्थ विगलिउच्छाहो । पुच्छेइ हत्थिविजे कह जीवइ एस करिराओ ।। ५९ ।। तेहि वि सम्मं नाऊण निउणबुद्धीए रोयपरमत्थं । निद्दाविरहे एयस्स देव ! उयरंमि अफरओ ॥ ६० ॥ कच्चरिखट्टियतकेण देव ! दिभेण जीवए एसो । सुणिऊण ताण वयणं नरनाहो भणइ हरिसपरो ॥ ६१ ॥ धणसेट्ठि ! नयरमंडण ! कओ वि आणेसु कचरिउ तुमं । सो लद्धनिवासो जोयावह नयरमज्झमि ॥ ६२ ॥ न उणो कत्थ वि पत्ताउ ताउ सविलक्खमाणसो सेट्टी । अह पडहसद्दपुत्रं नयरंमि भणावए ज्झति ॥ ६३ ॥ जो कच्चरीउ सिग्धं समप्पए कह व कोइ आणेउं । जं अस्थि मज्झ गेहे सो तं मणवंछियं लहइ || ६४ || एयं सुणिउं वयणं पहिओ हरिसेण तं छिवइ पडहं । घणसारसेट्ठिहत्थे समप्पर कच्चरीउ तओ ॥ ६५ ॥ हरिसपरो संजाओ सिट्ठी ताओ समप्पर निवस्स । तकेण समं दिन्ना करिणो जाओ विरेओ य ॥ ६६ ॥ गयरोगो सो हत्थी संजाओ नरवई वि मुणिऊण । पहियस्स तस्स चरियं नियधूयं देह रयणवई ॥ ६७ ॥ सो निव्वूढपइन्नो मणिच्छियं सुंदरिं विमग्गे | सेट्ठी चिंतहमा दिन्ना निवणागवणियस्स ।। ६८ ।। तो एयस्स अहं कह देमि ? तओ मुणियमाणसो राया । उवयारिणो य पहियस्स देइ सयमेव सेद्विधूयं ॥ ६९ ॥ पत्ता (ते) संज्झासमए पाणिग्गहणं हवे तिन्हं पि । तो निवणागो पत्तो कलहंतो सुंदरिकजे || ७० || मह दिना खलु कन्ना पाणिग्गहणं कुणेइ पुण अन्नो । चक्खू पसारिय च्चिय वाणं कजलं हरियं ॥ ७१ ॥ पभणइ सेट्ठी निसुणसु तुमं पि निवणाग ! मज्झ वयणमिणं । कच्चरियाउ विणा तुह थक्को एसो इह
शीलप्रभावे सुन्दरिदेवीकथानकम् ।
॥ २० ॥
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विवाहो ॥ ७२ ॥ तो निवणागो गच्छ पहिओ वि हु सुंदरीए सह रयणिं । मणिमयपईवरम्मे चिठ्ठद्द सो वासवर्णमि ॥ ७३ ॥ अह भजं मोत्तूणं सो तं रयणीए जाइ सिद्धवडे । राया नियधवलगिहे पुव्वविहाणेण संपत्तो ॥ ७४ ॥ खणनिद्दाविगमेण चित हियमि सुंदरी दुहिया । मणवंछियपाणपिओ न लग्गओ कह व मज्झ करे ।। ७५ ।। ता किं मह जीएणं १ किंवा भोगेहिं दुक्खजणगेहिं ? । एवं पत्ते काले मरणं चिय मज्झ वरि सरणं ॥ ७६ ॥ उक्तं च किं भणिमो लोयाणं जणसामन्ने विवदाणेण । नूणं दिजंति सया नेहमि सुहेण पाणात्रि ॥ ७७ ॥ ताउ चिय धन्नाओ सवं चइऊण जाउ धिप्पंति पंचमहव्वयसरणं सीलं पालंति सयकालं ॥ ७८ ॥ जाहिं न नाओ दहओ न य मोगा तह य नेत्र पेम्मं पि । धन्नाउ संजईओ ताउ चिय सुक्खखाणीओ ॥ ७९ ॥ उक्तं च- नूगं दुक्खसमेओ नेहो दिव्वेण निम्मिओ भुवणे । जाणं हवे हो हवन ताणं सुहं जेण ।। ८० ।। धन्नाउ संजईओ आबालाओ वि जाण हिययमि । तवदहणेण विलीणो मयणो मयणु | लीला || ८१ ॥ दुमज्झं पि हु सिज्झई सीलपहावेण चिंतियं लोए । पाणचए वि एवं मोत्तन्वं नेत्र धीरेहिं ॥ ८२ ॥ अन्नभवे विहु जीयं हवे मणवंछिओ चि पाणपिओ । न हु सीलखंडणाए हरियं पुत्रं हवइ कह वि ॥ ८३ ॥ मणवंछिओ न दइओ इहजम्मसुहाण भायणं मज्झ । वयगहणं पि हु काउं न खमा परलोयसुहजणणं ॥ ८४ ॥ एवं विणिच्छिऊणं पाणच्चायं मणमि धरिऊणं । तत्थेत्र वासगेहे सज्जइ पासं निए कंठे ॥ ८५ ॥ जड़ मणसा विहु अनो न वंछिओ विकमाउ [ ए ] नरो । ता परभवे वि सो च्चिय दविज सीलप्पहावेण || ८६ ॥ इय मणिउं वत्थंचलमवलंब जाव कंठपासत्थं । ता नियइ अक्खराई तंबोलरसेण लिहियाई ।। ८७ ।। सिरिविकमनरनाहो तुह लेहेणं समागओ इत्थ । सो नियनयरंमि
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पाइअकहासंगहे।
॥२१॥
मओ विवाहिउँ पहियवेसेण ।। ८८ ।। नियजीवियअन्महियाई ताई पेच्छित्तु अक्खराइं तहिं । वत्थंचलं पुणो पुण अवलो-16 शीलप्रमावे यइ हरिसपिम्मेण ।। ८९ ॥ कहमेस च्चिय पहिओ जाओ सिरिविक्कमो महीनाहो । मणवंछियपाणपिओ निम्मलसीलप्पहा- सुन्दरिदेवीवेण ॥९० ॥ सा एवं चिंतती नियचरियं दुग्घडं हिययमज्झे । सिग्धं गमेइ रयणी हरिसेणं विहसियसरीरा ॥ ९१ ॥ तो 181
कथानकम्। जामिणी विरामे सेट्ठी पुच्छेद पिययमो कत्थ ? । सा दसइ वत्थंचलमह सो सव्वं पि हु मुणेइ ॥ ९२ ।। अरिदमणमहीवइणो स्यणवईए य कहइ सवं पि । तत्तो सयलं नयरं हरिसपरं ज्झत्ति संजायं ॥ ९३ ॥ उज्जेणीनयरीए रयणवई सुंदरि पि पेसेइ । सिरिअरिदमणो राया महाविभूईए सिग्धं पि ।। ९४ ॥ अह ताण समागमणं नाऊणं उच्छवं कुणइ रम्मं । उज्जेणीनयरीए पवेसए विकमाइचो ॥ ९५ ॥ सेवंताई ताई विसयसुहं पुनपुनभावेण | सविसेसं धम्मपराई निति दियहाई देव ब्व ॥१६॥ सयलपुहई दाणं दाऊणं कुणिय ऊरिणं लोयं । संवच्छरो निओ जेणं अंकिओ विक्कमनिवेण ॥ ९७ ॥ सिरिविकममहिवहणो वह संवच्छरो पुहइमज्झे । अअवि दाणपहावा ता नणं उत्तमंदाणं ।।९८॥ वियरंति ताई दाणं भावंति सुमावणं च हिययंमि । दत्तरतवं तवंति य सीलं पालंति सयकालं ॥९९|| निआउं पालेउंदाणं दाऊण सीलिउं सील । तिनि वि ताई कमेणं लहंति देवत्तरिदीओ ॥१००॥ अजवि दाणपहावो सीलपहावो य दीसए लोए। एयं चिय मुणिऊण ता धम्मे आयरं कुणह ॥१०॥
। इति शीलव्यावर्णने सुन्दरिदेवीकथानकम् ।
- - - ... नवकारफले सौभाग्यसुन्दरकथानकम्-नवकारपहावेणं तं नत्थि जं न हवेइ लोयाणं । सोहम्गसुंदरेण व जह पचा सयलरिद्धीओ॥१॥ मुचिपईनामेणं नयरीए घणधमरिद्धिसुहियजणा । तं पाल नरनाहो जहत्थनामा मही
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पालो || २ || तस्स पिया महलच्छी ताणं सोहग्गसुंदरभिहाणो । पुत्तो कयत्थनामो सव्यकलापारसंपत्तो || ३ || कयवयमिचसमेओ कुमरो कीलाइ अन्नदियहंमि । धवलगिहाउ पहाए विणिग्गओ चरणचारेण ॥ ४ ॥ पिच्छड़ बंदणमालापडायज्झयपंतिचित्तदल्लीओ | कुमरो चउक्कतियचच्चरेसु हट्टेसु गेहेसु ।। ५ ।। पुच्छर सावयमेगं सिट्टिसुयं धम्मदासनामाणं । को इत्थ अदीसह महसवो १ सो वि हु कहेह ।। ६ ।। एगदिणे कुमर ! मए मुत्तिमईए नईए पत्तेणं । दिट्ठे गग्गरितुलं तरमाणं एगबीजउरं ।। ७ ।। तं गहिउं नरवहणो समध्वियं तेण नियदइयाए । महलच्छीए ती वि आहारिय रंजियमणाए ॥ ८ ॥ भणियं ना ! अन्वो एयस्स रसो न तीरए कहिउं । ता मज्झं पइदियहं देसु फलं एरिसं एगं ।। ९ ।। अह जइ न देखि एयं भोयणमवि कह विनो कुणिस्सामि । तो दुहिएणं रन्ना तव्वुत्तं पुच्छिओ अहयं ॥ १० ॥ कहियं मए वि लद्धं मुतिमईए नई तरमाणं । तत्तो जंप निवई असग्गहं चयसु देवि ! इमं ॥ ११ ॥ न मुणिजड़ नइमज्झे कओ वि एयं समागयं कह वि । मह वयणेणं दइए ! तेण तुमं भोयणं कृणसु ।। १२ ।। तहवि हु तीए बु (च) त्तं भोयणतंबोल कीलियाईयं । नरनाहो विन झुंज दुहिओ लोओ तओ सब्बो || १३|| अह महसारो मंती चउद्दिसं पेसए निए पुरिसे। गग्गरिसमबीजउरं कओ वि आह निएऊण ॥ १४ ॥ एगो नइमुत्तरिउं जा किं पि हु जाइ दूरमल्लवणे । गग्गरिसमबीजउरे निएइ ता सुन्नवाडीए ॥ १५ ॥ आहरहि (६) जहिच्छाए एगं गहिऊण ताण मज्झाओ । मइसारमंतिहत्थे समप्यए सो वि महिवइणो ।। १६ ।। निवई विनियपि - are आहरियं ती हिट्ठहिययाए । आणीयकलो पुरिसो रयणीए मरणमावन्नो || १७ || दुइयदिणे दुइएणं समाण (णि) ए मरह सो विरगणीए । पइदियहं एयंमि य ( एव मए ) ग्रह को वि न तं समाणे ।। १८ ।। नरनाहेणं भणिया दहए ! न हु को वि
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पाइअकहासंगहे ।
॥ २२ ॥
जाइ कह वि तहिं । जीवियलुद्धो ता तं इत्थीगाहं परिच्चयसु || १९|| सा भणइ भोयणेण वि पओयणं नेव देव ! तेण विणा । उववासदुयं तीए संजायं नरवइस्सावि || २० || अह मंती अनियंतो अन्नमुत्रायं कहिं पि ( कहं पि) बुद्धीए । लहिऊण चिट्ठियासुं पइगेहं लोयनामाई ॥ २१ ॥ कलसे निक्खिवियाणं मज्झाओ नीहरेइ जस्सेसा । सो पुरिसो तंमि दिणे समाणए एगबीजउरं ।। २२ ।। तस्स पुरिसस्स तुट्टो राया वियरेड दम्मसोलसयं । सो पावड़ पंचतं आणीए तम्मि रयणीए ॥ २३ ॥ एवं पड़ दियहं चिय नयरं सव्वं पि दुक्खियं तत्तो । नीसरमाणं धरियं नरवइणा गहिय संकलिए || २४|| कल्लदिणे मह वारो समागओ तं मए समणीयं । न मओ अजप्पभिहं न मरिस्सर को वि इह कुमर ! ।। २५ ।। तं कहियं इत्थ मए हरिसियचित्तो तओ जो सच्चो । नयरीए उच्छाहं (च्छवं) कुणेड़ पुणलद्धजम्मु व ।। २६ ।। एएण कारणेणं महूसवो इत्थ अज संजाओ । भणियं कुमरेण तओ विहसियमुहकमलहियएण ॥ २७ ॥ जं कहियं सिट्टि ! तए तमहं सव्वं मुणेमि पुवि पि । जं पुण न मओ तुमयं तं चिय मह कारणं कहसु || २८ || अह भणइ धम्मदासो स्यणि सव्वं पि एगचित्तेण । पंचपरमिट्टिमतो ज्झाओ जिणधम्मनिरएण ।। २९ ।। जाए पहायसमए गंतूणं वाडियाइ सुन्नाए । अणुजाणेमि भणित्ता नवकारं सुमरियं हियए ||३०|| बिजउरीए गहियं फलमेगं जाव ताव सहसति । पच्चक्खीहोऊणं भणियं केणावि देवेण ॥ ३१ ॥ सिट्टि ! अहं नयरीए पुव्वि एयाए आसि भोजनिवो। एसो रम्मो रामो कीलाठाणं सया मज्झ ।। ३२ ।। सयमेव मए एए बिजउरी के लिचूयदक्खाओ । सिंचिय जलेण फलफुल्लसंजुया विद्धिमुवणीया ||३३|| मह एसो आरामो नियपाणाओ वल्लहो अहियं । एयस्स फलं फुल्लं जो गिण्हइ तं हणेमि अहं ॥ ३४ ।। पुवंभवसिणेहेणं मरिडं इत्थेव वंतरी जाओ । तमहं हणेमि जो खलु गिण्हह एयस्स फलफुलं
नवकार
फले
| सौभाग्य
सुन्दरकथानकम् ।
॥ २२ ॥
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|| ३५ || सिरिमहिवालनराहिवमहलच्छीए न किं पि कुणिउमहं । जिणधम्मपुन्नभाना सावय ! सक्केमि कहयावि ॥ ३६ ॥ नवकारपहावेणं तुज्झ वि काउं न किंपि पारेमि । ता वरसु वरं सिग्घं ? देवाण न दंसणं विहलं ॥ ३७ ॥ अजप्पभिई लोओ न हणेयो फले विगहियंमि । इय मह वियरसु भणिए आमं ति पयंपियं तेण ॥ ३८ ॥ तं गहिय निवइहत्थे समप्पियं कहिय सङ्घवृत्तंतं । एयं मुणिउं लोएण ऊसवो एस अज कओ ||३९|| कहियं कुमर ! मए तुह जं न मओ तत्थ कारणं एयं । अह सो वि भणइ मज्झं सिट्टि ! तुमं देसु तं मतं ॥ ४० ॥ जस्स पहावा देवा वि हुंति वसवत्तिणो इद्द जणाण । सिट्ठी भणेह मंत गुरुणो च्चिय देंति न हु अन्नो ॥ ४१ ॥ ता अस्थि संतिसूरी इत्थ गुरू गच्छ ताण पासंमि । सो पत्तो गुरुपासे नमिऊणं मग्गिओ मंतो ॥ ४२ ॥ भणियं गुरुर्हि जिणगुरुसुतत्तसम्मतसंजुओ एसो । वंछियफलं पयच्छइ सविसेसं जिणमयजुयाणं ॥ ४३॥ संमत्तं गहिऊणं नवकारं गिण्हए तओ कुमरो । सवं पि विहिं पुच्छइ भतिन्भरनमिय सिरकमलो ॥ ४४ ॥ कहियं गुरूहिं जिणवरपडिमाण तिकालपूयणं काउं । अत्तरसयवारं जावो एयस्स कायो ॥ ४५ ॥ छम्मासछद्दिणाई जाव तओ अक्खराण संखाए । कायat चित्तवो उपवासई (साइ) निययसत्तीए ॥ ४६ ॥ दियहाई अट्ठसट्ठी पयपअंते कुणित पारणयं । तत्तो -कयउज्जमणो लोयाण मणिच्छियं देइ ॥ ४७ ॥ वसिकरणसमुच्चाडणरूवपरावत नहपहपयाणं । लच्छि तणयं रज्जं एसो साहेइ सर्व्वं पि ॥ ४८ ॥ कुमरो कयप्पणामो पत्तो गेहंमि धम्मकयचित्तो । परिमाणं पूयाई कुणेड़ मंतस्स तह ज्झाणं ॥ ४९ ॥ छम्मासं जाव तओ सुद्धमणो अट्ठसट्ठिदियहाई । पयपजंते पारणपुढं अंबिलतवं कुणइ ॥ ५० ॥ गुरुकहियविहाणेणं उज्जमणे संघपूयणं काउं । जिणपडिमाए ण्हवणं विलेवणं अच्चणं तह य ॥ ५१ ॥ कणयविणिम्मियनवकारवन्नरुप्पमयपट्टियं एगं ।
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पाइअकहासंगहे।
॥२३॥
विजउरक(वरुणदाडिमउच्छूनारंगअंबाई ॥५२॥ वरनालिकेरवायमउतित्तिय(१)पभिइरम्मवत्थूणि । दहिथरमंडीमोयगसोहा-18 नवकारलियगरुयखाई ॥ ५३ ॥ सवाई वि ठाणाई अटुत्तरसट्ठिसंखजुत्ताई । उज्जमणे जिणपुरओ ढोयइ कुमरो ससत्तीए ॥ ५४॥ एवं कयउजमणो जिणगुरुचलणे सया वि सो नमइ । नवकारं अद्रुत्तरसयवारं गुणइ एगमणो ॥ ५५ ॥ अन्नदिणे अत्याणे सौभाग्यकुमरो चिट्ठइ जाव उबविट्ठो । ताव य एगो पत्तो जोगिंदो बहुकलाकलिओ ॥ ५६ ॥ आसीवायं दाउं भणियं तेणं कुमार ! | सुन्दरसाहेमि । नहगामिणिबहुरूविणिविजं तुम्हाण साहिजा ।। ५७ ॥ भणियं कुमारेणं जो हवेह परपत्थणाइदीणमणो । पुरिसस्स * कथानकम्। तस्स जम्मो भूमीभारावहो नूणं ।।५८|| जोगिंद! हबउ एयं तेण वि मणियं तुम मसाणंमि । आगच्छसु रयणीए इय कहिउं तत्थ सो पचो ॥ ५९॥ कुमरो तमि मसाणे पओससमयमि ज्झचि संपत्तो । उवविट्ठो एगमणो जोगिंदो निच्चले ज्झाणे ॥६०॥ पंचपरमेट्ठिमंतं ज्झायंतो चिट्ठए कुमारो वि । आयड्डियकरवालो दिसाउ सहा निरिक्खंतो।। ६१ ॥ खणमित्तेणं पत्तो भयजणओ तत्थ रक्खसो एगो । कुमराभिमुहो न हु तस्स तीरए किं पि सो काउं ॥ ६२ ॥ नवकारमंतकवयाहिट्ठियदेहं इमं मुणेऊण । असमत्थो उवसग्गं काउं कुमरं तओ भणइ ॥ ६३ ॥ नवकारपहावेणं तुट्ठो तुह देमि दो वि विजाओ । तं जंपेइ कुमारो परोक्यारिकदिनमणो ॥ ६४ ॥ एयस्स चिय विजा दुन्नि वि वियरेसु पत्थमाणस्स । सो भणइ तुमं जोगिंद ! हबसि कुमरस्स जइ भिच्चो ।। ६५ ॥ ता देमि तुज्झ विजं सो वितओ जंपए हवउ एयं । विजाजुयलं वियरइ दुई पि हु तत्थ सो असुरो ॥ ६६ । सो पत्तो अईसणमह कुमरो वि हु गओ निए गेहे । मिचीभावगएण वि चिट्ठइ सह जोगिणा निच्चं ॥६७।। आयासेणं गमणागमणं इच्छाइ दुन्नि वि कुणंति । अन्नदिणे रायगिहे पचा सुहस उणसंजुत्ता ॥ ६८॥ एगमि जाव गोरी- P ॥२३॥
कमर तो नहु तस्स तीरए रवालो दिसाउ उबविडो एमागच्छस रयणीय
BCCIEWERS
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भुवणे ओयरिय ठंति खणमेगं । सहीसमेया एगा ताव कुमारी तहिं पत्ता ॥ ६९ ॥ अवलोइयंमि कुमरे तीए ससिणिवंकदिट्ठीए । ईसारोसभरेण व मयणेणं ताडिया एसा ॥ ७० ॥ गउरीए कुणइ पूर्य सुन्नमणा विसरिसीए रयणाए । मुणियमणा तं पभणइ कुडिला नामा सही एगा ॥७१।। जह सहि ! मह कहणिजं ता कहसु तुम किमित्थ सुन्नमणा । सा भणइ परित्ताणं न होइ कहियंमि केणावि ॥ ७२ ॥ जंपइ कुडिला पियसहि ! कहिए दुहकारणमि कुणइ जणो । साहिजं सयलो वि हु अहयं पुण तुज्झ एमेव ॥७३॥ गहिऊण तीए हत्था कुसुमाई गुंफिऊण वरमालं । सा गंतूण कुमार भणइ तुम नूण चोरो सि ॥७४॥ मज्झ सहीए हिययं तुज्झ हरंतस्स एस इह दंडो। नियमणसमप्पणेणं नूणं एयाए छुट्टेसि ॥ ७५ ॥ इय भणिय तस्स माला खित्ता कंठंमि विहसियमणस्स । भणियं जोगिंदेणं अहोऽबराहोचिओ दंडो ।। ७६ ॥ कुडिला जंपइ निसुणसु दुग्घडमेयं कुमार! वयणमिणं । नामेण जयतचंदो इह नयरे अत्थि नरनाहो ॥ ७७ ॥ जयतलदेवीनामा पाणपिया तस्स गुणगणनिहाणं । ताणं सुहागदेवी एसा धूया समुष्पन्ना ।। ७८ ।। नवजोवणमावन्ना दिना जणएहिं संपइनिवस्म । अज हविस्मइ वरणं लग्गं वि हु रयणिपहरदुगे ।। ७९ ।। केावि कारणेणं एयाए तम्मि नेव रमइ मणो। सुन्नमणा संजाया अवलोइय कुमर ! तुममिण्डिं ॥८०॥ इह समए जं उचियं विहेसु तं किं भणिजए तुज्झ । अह पभणइ जोगिंदो कुमर! तुम कुणसु मह वयणं ।। ८१ ॥ गहिउं सुहागदेवि चिट्ठिस्समहं गिरिम्मि वेयड्डे। तुमयं पुण एयाए रूवं वेउब्वियं तत्थ ।। ८२॥ गंतुं कुडिलासहिओ संपइनिवई(इं) विवाहिय गिरिम्मि । आगच्छसु वेयड्डे इय सुणिउ पभणए कुडिला ।। ८३ ।। जइ कुमर ! सुप्पसन्नो ता तुमयं कहसु अप्पणो चरियं । तत्तो जोगिंदेणं सवं पि हु तीए परिकहियं ॥ ८४ ।। गउरीपूयणनिरया
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पाइअ
संगहे।
॥ २४॥
नो कहसु ता मममा८९ ॥ नाह ! काययाइ दुन्नि वि मोणेणं ठति जाववासमि
सुहागदेवी सुणित्तु तं सयलं । हरिसियचित्ता जाया सविसेसं कुमरलाहेण ॥ ८५ ॥ जह नो पिच्छइ को वि हु तीए नवकारसरिच्छं कुणेत्तु तहरूवं । कुडिलाए समं कुमरो गओ गिहे मुणियचरियाए ॥ ८६ ॥ तं चिय सुहागदेवि मुणेइ फले सयलो वि तत्थ तं कुमरो। अह तीए संजायं वरणं तह पाणिगहणं पि ।। ८७ ॥ तं गहिय संपइनिवो नियआवासंमि सौभाग्यज्झत्ति संपत्तो । रयणीए वासभुवणे चिटुंति विसजिउं लोयं ।। ८८॥ हसियहिययाइ दुन्नि वि मोणेणं ठंति जाव खणमेगं ।
सुन्दरदक्खत्तणेण मुणिउं तच्चरियं भणइ नववहुया ॥ ८९ ॥ नाह ! कहं इह समए तुमयं चिंताउरु व दीसेसि ? । जइ
कथानकम्। नस्थि अकहणिजं सुपसन्नो कहसु ता मज्झ ॥९० ॥ सो भणइ विसन्त्रमणो कि इत्थ कहिजए पिए ! तुज्झ ? । अम्हं तुम्ह वि जम्मो निरस्थओ नूण संजाओ ।। ९१ ॥ सा वि हु भणेइ हसिउँ मा पिययम ! भणसु एरिसं वयणं । जह दुण्डं पि हु जम्मो होही सहलो तह जइस्सं ॥ ९२ ॥ नरनाहो भणइ तओ कोऊहलकारयं सुणसु किं पि । चंपाए नयरीए आसि निवो धम्मनामो त्ति ॥ ९३ ॥ धम्मवई तस्स पिया अह जाओ गन्भसंभवो ताण । तत्तो निवो अपुत्तो पंचत्तं देवि ! संपत्तो ॥ ९४ ।। कुसलेण अमच्चेणं पसवदिणं जाव रक्खियं रजं । धम्मवईए जाया तणया तत्तो सबुद्धीए ।। ९५ ॥ लोयाण पुत्तजम्म कहिऊण महूसवो पुरीमज्झे । रिद्धीए कारवियं संपह नाम पि से दिन्नं ॥ ९६ ॥ अंतेउरस्स मज्झे बुडि पत्तो कमेण समयंमि । नरवेसेणं तीए कलाउ सवाउ गहियाओ ॥ ९७ ॥ तत्तो अज निसाए वीवाहो से तए समं जाओ । तेणम्ह | अम्ह दुण्ह वि महिलाणं केरिसा भोया ॥ ९८ ॥ तो हसिउं नववहुया तं पभणइ तह वि कुणसु मा दुक्खं । जह दुण्हं पि हु। जम्मो हवेइ सहलो तह जइस्सं ॥ ९९ ॥ जह दिवेण महेला कया तुमं तह अहं पुरिसदेवो । ता देवि! मा विसायं घरेसु का॥२४॥
KOLKAR
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+AEXICOLAGHASHASHA
हिययंमि क पि तुमं ॥१०॥ इय मणिऊणं विजापहावओ कुणइ सो वि नररूवं । निवई महिलारूवं पयडइ हरिसेण संजुत्तो ॥ १०१ ॥ संपइदेवीए तओ कहिओ जणणीह सयलवुत्तंतो। तीए पुट्ठो कुमरो वि साहए अप्पणो चरियं ॥ १०२॥ इत्तो सुहागदेबि गहिउं जोगी गओ य वेयड्डे । अह कुमरो वुत्तंतं कहिऊणं संपइपियाए ॥ १०३ ॥ संपत्तो वेयड्डे नहेण जोगिंदरक्खिउं(अं) कुमरिं । परिणिय गंधवेणं ताई पत्ताई रायगिहं ॥ १०४ ॥ तो तत्थ तक्खण च्चिय महल्ललोओवलद्धवुत्तंतो । नव. जामाउयलाहं कहेइ सिरिजयतचंदस्स ॥ १०५ ॥ अह सो पहट्ठचित्तो सम्म मुणिऊण ताण वुत्ततं । संपइ लोयाणुमओ जंमि निवेसए कुमरं ॥१०६॥ सोहग्गसुंदरनिवो ताई विनवइ गंतुमहमिहि। साहिय वुत्तं गोसे जणयाण समागमिस्सामि ॥१०७॥ संपइ सुहागदेवीजोगिंदजुओ नहेण रयणीए । नियधवलगिहे पत्तो सो तेहिं विसजिओ संतो ।। १०८॥ सबाई ताई रयणि गर्मिति अन्नुनापिच्छिरमुहाइं । नवसंगमसुहनिव्वुयअहरीकयसग्गसुक्खाई ॥१०९ ॥ जाए पहायसमए कुमरो पणमेह नववहूसहिओ । अम्मापियरपयाई जोगिंदो कहइ वुत्तंतं ॥ ११० ॥ पभणइ कुमरो रजे अहिसित्तो तेहिं गमिह(हि)ई । चंपाए नयरीए तुम्हाणं अणुमई लहिउं ॥ १११ ॥ ताई वि तुट्ठमणाई नववहुयादसणेण जायाई । रायगिहे संपत्तो जणएहिं विसजिओ कुमरो ॥ ११२ ॥ सम्माणिउं विसन्जिय तत्तो तं जयतचंदनरनाहो (१) । मजादुगेण सहिओ सपरियणो एस चंपाए
॥ ११३ ।। संपत्तो नरनाहो कमेण सोहग्गसुंदरभिहाणो। मुणिऊणं वुत्तंतं कुणइ जणो ऊसवं तत्थ ॥ ११४ ॥ पविसेइ ४ है। पुरोमज्झे निवइ(ई) करियणखंघमारूढो। धवलगिहे संपत्तो नमिओ लोएहिं मत्तीए ॥ ११५ ॥ सम्माणिऊण लोयं
पसायवयणेहिं सो विसजेइ । धम्मुजमकयचित्तो पालइ रजं सुनीईए॥११६॥ जोगिंदेण समेओ नहेण गंतूण निययनयरंमि।.
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पाइअ. कहासंगहे।
नमिऊण जणयचलणे चंपाए एइ सो पुणवि ॥ ११७ ॥ देवीयो जिणधम्म कुणंति झायंति दो वि नवकार । पालंति बहुं कालं रजं मोए य भुजति ॥ ११८॥ जिणभवणवसहिवरपुत्थएसु बियरंति चंचलं लञ्छि। पंचपरमेट्ठिमंतं झायंति विसेसओ ताई॥११९॥ नियआउं पालेउं अंते नवकारसुमरणपराई । तिमि वि ताई कमेणं सुरलोए सुरवरा जाया ॥ १२० ।।
इति नवकारफले सौभाग्यसुन्दरकथानकम् ॥
| तपोविषये
मृगाङ्क
रेखा
॥ २५॥
कथानकम् ।
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तपोविषये मृगाकरेखाकथानकम्-अइनिविडं पि हु कम्मं विलयं गच्छइ तवपहावेण। गाढपजलंतजलणेण मयणपडिबिंब( पिंड विव) लोयाणं ।। १॥ तं नस्थि जं न जायइ तवप्पहावेण भवलोयाण । खयरी मयंकरेहा दिढते इत्थ नायबा ॥ २॥ उजेणी अस्थि पुरी सुरजदुल्ललियलोयरमणिजा । परिपालइ तहिं रजं महिंदसीहो महीनाहो ॥ ३॥ पंचसयाणं मज्झे अंतेउरियाणं वल्लहा एगा। पीइमई नामेणं सीलुजमधम्मगुणकलिया ॥ ४ ॥ अन्नदिणे नरनाहो उवविट्ठो चिट्ठए नियसहाए । पडिहारेणं नमिउं विश्नत्तो पिहियवयणेण ॥ ५॥ अप्पुबसुत्तहारो वंछह देवस्स देसणं सामि ! | पभणइ महिंदसीहो सिग्धं पविसेसु तं इत्थ ॥६॥ पडिहारेणं मुक्को नरनाहं पणमिउं समप्पेई । कट्ठमयमोरमेगं सो साहिय (इइ) तस्स पुचतं ॥ ७॥ कीलियसंचाराओ उप्पयइ नहेण एस नरनाह ! । इय सुणिय तेण दिनो वरहारो सुत्तहारस्स ।। ८॥ नरनाहो अत्थाणं विसज्जए ज्झत्ति कोउहल्लेण । उवविसिय मोरपिढि संचारइ कीलिङ एसो॥९॥ आयासेणं भमिउं सयलदिणं जत्थ तस्थ वि सुहेग । रयणीए नियनयरे महिंदसीहो समेइ तओ ।।१०।। मोरपहावेण सया उप्पयइ नहेण जेण तेणेसो । लोय
॥२५॥
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कयदुइयनामो विक्खाओ मोश्नरनाहो ॥ ११ ॥ अअसमयंमि पत्तो आयासेणं समुद्दमज्झमि । मोरनिवेर्ण दिट्ठो तत्थेगो पचओ रम्मो ||१२|| ओरिऊणं कोऊहले पिच्छे कन्नगं तत्थ । खामसरीरं अइतेयसंजुयं पढमवयकलियं ॥ १३॥ सहस त्ति तओ हियए निजियदुखयरिओ वि मोरनिवो। मित्रो समयं पंचहिं बाणेहिं पंचत्राणेणं ।। १४ ।। कहकहवि तेण भणिया नियवृत्तंतं कहे कुमरि ! तुमं । मज्झ मणे अच्छरियं दीससि एगागिणी इत्थ ।। १५ ।। तं पिच्छिऊण जाया पिम्मपराहीणमाणसा सा वि । कहकहमवि लजाए तीए कहियं नियं चरियं ।। १६ ।। वेयडपवयंदे (इंदे) नामेगं गयणवल्लहं नयरं । तत्थत्थि गयणसेहरमिहाणओ वेयराहिवई ।। १७ ।। तस्सत्थि सीलकलिया भञ्जा नामेण चंदरेह चि । ताण अहं संजाया मयंकरेहा सुया जाया || १८ || अह अन्नदिणंमि मए विमाणमज्झडियाए आयासे । गच्छंतीए मुको मुहतंबोलो अहोभाए ।। १९ । सवणे मज्झ पविट्ठो तत्तसलाय व दुस्सहो सहो । एत्थ भवे अन्नभवे न दविस्सह तुज्झ पाणपिओ ॥ २० ॥ इष तं वयणं सुणिउं दिना दिट्ठी मए महीसमुहा । तंबोलरसविलिचो दिट्ठो एगो मुणिवरिंदो ।। २१ ।। ओयरिय महीवीठे मुणिनाहो जंपिओ म नमिउं । सामिय ! मह अवराहं स्वमिऊण अणुग्गहं देसु ।। २२ ।। उवसमघणेण तेणं दिनं पच्चुत्तरं न मह कहवि । पच्चक्खीहोऊणं सासणदेवीए मणिया हूं || २३ || किं मुद्धि ! मुणिवरिंदो सावं कस्सावि देह कइया वि । सिक्खाकरणनिमित्तं सविया स महच्चिय इयाणिं ।। २४ ।। तुह उण पच्छायावा मुणिवरपयखामणं निएऊण । वियरेमि इममणुग्गहमद परिचत्तकोवभरा ।। २५ ।। वरिसचउकं आयंबिलाणि परिहरियसयलवावारा। कुणसु तुमं रयणायरमज्झट्ठिय सहकूडंमि ॥ २६ ॥ अमभवे तुह होही सुंदररूत्रो पिओ तवपहावा । इत्थ भवे नेव पुणो सावो न हु निष्फलो जेण ।। २७ ।। तत्तो विसन्नचित्ता
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कहासंगहे ।।
तपोविषये मृगाक
रेखाकथानकम्।
॥२६॥
तं नमिउं ज्झत्ति नियपुरे पत्ता। सयलो विमए कहिओ वुत्तंतो जणणिजणयाण ॥ २८ ॥ दुहियमणेहिं तेहिं मुक्का हं इत्थ सहिदुगसमेया । आणेऊणं निच्चं ताओ मह भोयणं दिति ॥ २९ ॥ चउवरिसअंबिलाणं अंतो मज्झं हविस्सई अन्ज । पारणयं नियनयरे तत्थ इयाणिं गमिस्सामि ॥ ३० ॥ जं तुम्हेहिं पुढं तं कहिय(य) मुद्धमाणसाइ मए । तुम्हाणं पि हु चरिअं मुणिउं इच्छामि अहमिहि ॥ ३१ ॥ अह तीए तेण सत्वं सवित्थरं कहियमप्पणो चरियं । सुणिऊण घरानाहं मोरं सा हरिसिया जाया ॥ ३२ ॥ चिंतइ य इत्थ अहवा कयंमि ( भवंमि ) अन्ने वि हवउ मज्झ पिओ। एसो चिय अत्थि फलं एयस्स तवस्स जइ कहवि ॥ ३३ ॥ इय जा कुणंति वत्तं आयाउ सहि(ही)उ चल्लिया कुमरी । मोरेण गहियहियया सुन्ना पत्ता निए नयरे ॥ ३४ ॥ कुणिऊण संघवच्छल्लमणुवमं पारणं कयं तीए । सुन्नमण च्चिय चिट्ठइ निचं पि हु मुकवावारा ॥ ३५॥ अन्नदिणे सहिवग्गेण पुच्छिया दुक्खकारणं कुमरी । तं साहिऊण सवं पभणइ सा दीणमुहकमला ॥३६ ॥ उजेणीए सामी सो च्चिय मोरो महीवई मज्झ । लग्गइ देहे अहवा जालामालाउलो जलणो ॥ ३७॥ तं सवं सहिवग्गेण साहियं तीए जणणिजणयाण । मोरनिववरणकजेण पेसिओ तेहिं नियमंती ॥ ३८ ॥ खणमित्तेण नहेणं गच्छंतो परिसरे विसालाए । नयरीए संपत्तो सुइसउणविवजिओ सचिवो ॥ ३९ ॥ नहतीरे बहुयाओ चियाउ कद्वेहिं सजमाणाओ । पिच्छिय एगो पुरिसो पुट्ठो दुहिएणऽमच्चेण ॥ ४० ॥ सो भणइ इत्थ रजं पालइ नाएण मोरनरनाहो । आयासेणं भमिओ सो निच्चं एइ संझाए.
॥ ४१ ।। अज पुणो संजायं मासदुगं तस्स कत्थ वि गयस्स । न हु आगच्छइ जेणं मउ ति मनिजए तेण ॥ ४२ ॥ न हु P] दुइअदिणं कहमवि चिट्ठइ कयावि मोरनिवो। तविरहे अंतेउरमियाणि साहिस्सए जलणं ॥ ४३ ॥ इय वुत्तं मुणिउं मंती
॥२६ ॥
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बलिउं गओ निए नयरे । तं सवं पि हु कहिअं कुमरीजुत्तस्स महिवइणो ॥ ४४ ॥ कुमरीए निवो भणिओ तुम्हारसेण जामि तत्थ अहं । पिक्खेऊण सयं पि हु सिग्धं इह आगमिस्सामि ॥ ४५ ॥ मंतिजुयं नरनाहो उजेणिं पेसए तओ कुमरिं । सा पत्ता वेगेणं अकंदे सुणइ अइदुसहे ।। ४६ ।। कत्थ गओ नाइ ! तुमं ? को अम्ह कुणिस्सई परित्ताणं ? । नियमुहकमलं दंससु एगं वेलं विलक्खाणं ॥ ४७ ॥ अंतेउरियालोयं इय बिलवंतं सुणित्तु सा कुमरी । चिंतेह तस्स विरहे कुणेमि किं जीविउमहं पि ॥ ४८ ॥ ओयरिडं भूमी लिहिओ एगो सिलोगओ जाव । सहमत्ति तीए हिययं ता फुङ्कं विरहदुहमरियं ॥ ४९ ॥ तं पिच्छिय अच्छरियं लोओ दुहिओ वि गाढदुहजुतो । संजाओ सयलो वि हु तं चैव सिलोगयं पढइ ॥ ५० ॥ ' मयूरो नररूपेण विधिना प्रेषितो ह्यसौ । तेनैव नीयमानाऽस्मि हहा ! सख्यौ ! यमान्तिकम् ' ॥ ५१ ॥ सुणिऊण तीए वत्तं खयरवग्गो समागओ तत्थ । अच्छरियजुओ सयलो वि लिहई तं पढइ य सिलोयं ॥ ५२ ॥ खयरो एगो लिहिऊण तं सिलोगं गओ पिवासाए। सलिलासयस्स तीरे पत्तं मोतुं पिअइ सलिलं ॥ ५३ ॥ सो तं विम्हरिऊणं गंतूणं किं पि आगओ तत्थ । दिट्ठो तेणेगनरो वायंतो इत्थपित्तं ॥ ५४ ॥ सो भणिओ खयरेणं मो ! भो ! अप्पेसु मज्झ पत्तमिणं । पुरिसो भणेइ केणं एसो लिहिओ इह सिलोगो ।। ५५ ।। सो जंपर मोरनिवो कहवि मओ तस्स विरहदुक्खेण । विजाहर निवदुहिया मयंकलेहा मुया तत्तो ॥ ५६ ॥ लिहियंमि सिलोगंमी महीए तीए दुहागयं हिययं । कोऊहलेण एसो पढिओ आबालबुडीए ॥ ५७ ॥ इय मुणिउं पहियनरो झूरह oriमि दुखिओ वाढं । हा ! हा ! मयंकलेहा पंचतं निष्फलं पत्ता ॥ ५८ ॥ सच्चं मुणेमि सर्व्वं विजाहर ! सुणसु निवइवुतं । सो जलनिहिंमि पत्तो मोरेण कीलियपहावा ।। ५९ ।। तत्थ तवसोसियंगी दिट्ठा विजाहरिंदवरधूया । पारणदियहे तेणं तत्तो सा
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पाइअ
कहासंगहे ।
॥ २७ ॥
नियपुरे पत्ता ||६० || बिरहे मोरनिवो सुन्नमणो ममह पहए तत्थ । किंकायद्यविमूढो चिलवंतो बहुपयारेहिं ।। ६१ ॥ सुन्नम घोणं तेगं गच्छंतेणं न कीलिया गाढा । दिना तेण समुद्दे सा पडिया मोरनिवजुत्ता ।। ६२ ।। लहिऊणं दिवसा फलदं जलहिं तरितुमिह पत्तो | मग्गं अयाणमाणो परिन्भमंतो अहं एसो ॥ ६३ ॥ किं मह जीएण विरहे तीए मयंकरेहाए । इय बहुपयारचिता संततमणस्स तहिं समए || ६४ ॥ तविरहदुक्ख भरियं हिययं फुट्टं तड ति मोरस्स । विजाहरो निएउं तं सवं चितए दुहिओ ।। ६५ ।। मह वत्तं सुणिऊणं पत्तो पंचतमेस सहस त्ति । एयस्स मरणहेऊ जाओ हं कह णु पाविट्ठो ॥ ६६ ॥ इय खेयं काऊणं मयं पितं कुणिय नियविमाणंमि । उझेणीए वाहिं चित्रसमीवम्मि मुत्तूण ।। ६७ ।। अंते उरियालोयं पभणइ सो खिन्नमाणसो तत्थ । इत्थीहच्चापावस्त मूलमेयस्स हं जाओ || ६८ || जेण मए मयवत्ता कहिया विज्जाहरीकुमारीए । हिययं तड ति फुलं एयस्स तओ इहाणीओ ।। ६९ ।। अह अंतेउरलोओ नियदइयं मुणिय मरणमावनं । हरिसपरो तं गहिउं खयरिं पहु विस जलगंमि || ७० || अह गयणसेहरनिवो दुहिओ दुहियाह कुणइ मयकिच्चं । मरिउं उववन्नाई ताई दुवे जत्थतं सुणसु ॥ ७१ ॥ नामेण विलासपुरं अस्थि पुरं महीयलंमि विक्खायं । चंदजसो तत्थ निवो चंदमुही पिययमा तस्स ॥ ७२ ॥ मोरनिवो मरिऊणं संभूओ ताण पुत्तभावेण । पुरिसुत्तमकयनामो जाओ बालो वि नरनाहो || ७३ ॥ सुणिऊण तं सिलोयं पढिखमाणं जणेहिं पुब्वुत्तं । चिंतेह महीनाहो कहं पि निसुओ मए एसो ॥ ७४ ॥ ऊहापोहं सो कुणइ जाव ता ज्झत्ति तस्स संजायं । जाइस्सरणं अह तेण पिच्छए पुवभवचरियं ।। ७५ ।। मह कसे परिचत्तं नियजीयं जीए पच्छिमभवंमि । कत्थुष्पन्ना होही मयंकरेहा पिया सा मे ।। ७६ ।। ठीए विणा पखतं भोएहिं मज्झ जावजीवं पि । इय चिंतिय न हु परिणइ अनं सो
तपोविषये
मृगाङ्करेखा
कथानकम् ।
॥। २७ ॥
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SAIRACLERKASHANKAR
के पि निवकुमरिं ॥७७ ॥ अह पमुहमंतिलोओ पमणइ नरनाह! मचेरवयं । जुत्वं साक्ष्ण सया पुहइवईण पुणो नेव ।। ७८ ॥ मोणेणं चिय चिट्ठह सो ताण न किं पि उत्तरं देइ । परिपालइ रजभरं सत्तहि वसणेहि परिचत्तो ।। ७९ ॥ पञ्चक्खीहोऊणं संज्झाए कहइ अन्नदियहमि । पुरिसोत्तमस्स रणो पूयानिरयस्स कुलदेवी ।। ८० ॥ पउमावइनयरीए पवाहि(इ)याहिडिओ समत्थि मढो । पुत्वभवपिया तुझं तर्हि चिट्ठइ कुसुमसिरिनामा ॥८१॥ गच्छसु तत्थेव तुमं इयाणिमवि कुणिय महिलियारूवं । सा(तं)परिणिय वलिऊणं रयणीइ वि आगमिजासु ।। ८२ ।। सुणिऊण तीए वयणं संतुट्ठो चिंतए पुहइनाहो । सा लद्धा नूण मए
मयंकरेहा हिययइट्ठा ।। ८३ ।। अह निवई लिहइ पडे सवित्थरं अप्पणो वि तीए वि । पुत्वभवं ससिलोयं नामजुयं मोरनहगमणं ।।। ८४ ॥ तस्सस्थि पुणो सिद्धो आबालाओ वि एगवेयालो । चिंतियमित्तं पत्तं महिनाहो तं पयंपेइ ।। ८५ ।। गंतवं अम्हेहिं इयाणि पउमावईए वेयाल !। उबवेसइ नियखंधे ते तत्थ गया दुवे तत्तो॥ ८६ । एकम्मि उजाणे विस्समिओ चिंतए महीनाहो। इत्थीरूवं अयं कुणेमि अह तत्थ गमणत्थं ।। ८७ ॥ खणमित्तं संजाया निद्दा चिंतापरस्स नरवइणो । अह विजाहरजुयलं कीलाहेउं तहिं पत्तं ।। ८८ ॥ भममाणो सच्छंदै उजाणे खेयरो तहिं ठाणे । संपत्तो जहिं चिट्ठइ पुरिसोत्तमनरवई सुनो | ।। ८९ ॥ निरुवमरूवं तं पिच्छिऊण विजाहरो वि चितेइ । जइ नियइ इमं कहमवि परिममंती पिया मज्झ ।। ९० ॥ एयंमि रत्तचिचा विगलियनेहा ममोवरि होही । तस्स चरणंमि ततो सो बंधइ ओसहिं एगं ।। ९१ ।। सो गच्छइ अन्नत्तो जग्गइ पुरिसुत्तमो तओ निवई । अप्पाणं पुण पिच्छइ इत्थीरूवं तओ हिट्ठो ॥ ९२ ॥ हरिसभरनिन्भरंगो जायं कह मज्झ महिलियारूवं । इय जा चिंतइ चरणे बद्धं ता ओसहिं नियइ ।।९३ ॥ एयाइ पहावाओ मह जायं नूण रमणियारूवं । गच्छामि अहमि
ACCORREARRIGINE
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पाइअकहा
संग हे । ।। २८ ।।
याणि अविसंकं तस्स पासंमि ।। ९४ ।। लोयाओ मुणिऊणं सो गच्छ तत्थ चइय वेयालं । नमह पवाइयचलणे तं पुच्छह सायं सा वि ।। ९५ ।। कक्खाहि पडो पडिओ पणामसमए निःस्स सहस ति । गहिओ कुसुमसिरीए अवलोयइ निययभवं ।। ९६ ।। कयमुणिवरोवसग्गो कुणेमि एसा अहं तवं इत्थ । लिहियसिलोगा य मुया एसो सो मोरमहिनाहो ॥ ९७ ॥ एयं मुणेमि म सो चिट्ठह जत्थ तं पुणो नेय । तेणं चिय एस पडो लिहिओ अन्नस्स न हु सत्ती ॥ ९८ ॥ एयं चिय पुच्छेमी मुणिस्सए नूण समवि एसा । इत्थद्वियकंकणे णं किं किजड़ दप्पणेणहवा ॥ ९९ ॥ सा हरिसमणा पभणइ नवमहिलं केणिमो पडो लिहिओ १ । सा कहर विलासपुरे पुरिमुत्तमपुहनाहेण ॥ १०० ॥ इय कहियं तुज्झ मए तुमं पि मह कहसु भइ नवमहिला । नियत्ततं सवं कुसुमसिरी साइए तीए । १०१ । पउमावइनामेणे एसा नयरी सुनीइसंपन्ना । इह पउममहीनाहो पउमसिरी पिययमा तस्म ॥ १०२ ॥ कुसुमसिरी संजाया ताण सुया विसयसेवणपराण । सा लोयाउ सिलोयं मयूरपयलंछियं सुणिउं ॥ १०३ ॥ कत्थ वि एस सिलोओ सुणिओ पुविं मए इह सुरम्मो । ऊहापोहं सा कुणइ जाव ता ती संजाय ॥ १०४ ॥ जाईसरणं सहमा सवित्थरं मुणइ अप्पपुवभवं । स च्चिय मयंकरेहा मरिऊणं इत्थ उपवा ॥ १०५ ॥ मोरनिवं पुवपियं कत्थुववन्नं अयाणमाणा सा । कुणइ पइन्नं लग्गह मह देहे सो व जलणो वा ।। १०६ ।। अनं पुरिसं दिट्ठीए पिच्छई नेव कवि कइयावि। अह पउममहीनाहो मुणिउं नवजोद्दणं दुद्दिओ ॥ १०७ ॥ सो नेमित्तियमेगं पुच्छर एयाइ मज्झ तणयाए । मणइट्ठो को होही पाणपिओ ? कहसु मुणिऊण ॥ १०८ ॥ सो भणइ मढे चिट्ठउ इममि एसा लहिस्सई ज्झति । मणवंछियपाणपियं पुरिसुत्तमनामनरनाहं ॥ १०९ ॥ सा य अहं इह मुका पवाइयाओ
तपोविषये
मृगाङ्क
रेखा
कथानकम् ।
॥ २८ ॥
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सुणेमि धम्मक | नयणेहिं ननपुरिसं पिच्छेमि सुरूबकलियं पि ॥ ११० ॥ इय सहि ! सबो कहिओ नियवृत्तंतो मए तुहं इहई । ता चलसु मज्झ जणयाण संनिहाणंमि सिग्धं पि ॥ १११ ॥ तं नेइ बलाउ तओ कुसुमसिरी कहइ जणणिजणयाण । मह पुइपिओ चिट्ठs विलासनयरे तहिं गमिस्सं ॥ ११२ ॥ तत्तो पुराउ एसा समागया मह सही पडं गहिउं । साहित्राणं लिहियं पियचरियं तत्थ वित्थरओ ॥ ११३ ॥ जणएहिं सा भणिया गच्छसु वच्छे ! सयंवरा तत्थ । अहिणवसहीए सद्धिं अमच्चवग्गेण य इयाणिं ।। ११४ ।। तो नवमहिला पमणइ गमण किलेसेण तुज्झ किं इमिणा । आणेमि इत्थ जड़ तं ता किं दाही तुमं मज्झ १ ।। ११५ ।। तं जंपर कुसुमसिरी दहयं आणेसि जइ तुमं इत्थ । ता मग्गसि जंतुमयं मणिच्छियं तं अहं देमि ॥ ११६ ॥ नवमहिला तो पभणइ जइ एवं पिच्छ ता समाणीयं । तो छोडिऊण ओसहिमेसा दंसेइ नररूवं ॥ ११७ ॥ तं पिच्छिय अच्छरियं मयहरिससमाउला तओ बाला । पुवभवाभिन्नाणे सपच्चए कहइ सो तीए ॥ ११८ ॥ उल्लसियपिम्मनवपुलयअंकुरा तक्खणंमि सा जाया । सो तं पभणइ वाले ! याणिं चिय तत्थ गंतवं ।। ११९ ॥ जेणं अकहियवत्तो वेयालपहावओ इहं पत्तो । सामंतपमुहलोओ कुणिस्सई मज्झ अवसेरिं (१) ॥ १२० ॥ तं सवं मुणिऊणं इरिस भरुन्भिन पुलयल लियंगो । पउमनिवो दुहं पि हु सुमुहत्ते कुणइ वीवाहं ॥ १२१ ॥ पउमनिवेणं सम्माणिऊण पुरिसुत्तमो महीनाहो । कुसुमसिरीए समेओ विसजिओ नियपुराभिमुहं ।। १२२ ।। सुमरियमित्तो तेणं वेयालो आगओ चडावेइ । एगे खंधे पुरिसुत्तमं च दुइए य कुसुमसिरिं ॥ १२३ ॥ अह तेण तक्खण चिय सुहेण नीओ निवो नीए ठाणे । अहिणवपियाए सहिए विलासवणे ठिओ रम्मे || १२४ ॥ कुसुमसिरीए पुढं पिअयम ! कोण केण नगरीए । पउमावईए पत्तो अह सर्व
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पाइअ. कहासंगहे।
तपोविषये
अघटकथानकम्।
॥२९॥
कास्कललकारक
साहियं तेण ।। १२५ ।। जंपा पहायसमए दटुं सपियं निवं पयहवग्गो । अन्ज रयणीए जायं सामिअ ! एयं किमच्छेरं ? ॥ १२६ ।। सबो वि तस्स कहिओ तेणं कुलदेवयाए वुसंतो। निव्वुयहियओ तत्तो पालइ पुरिसुत्तमो रजं ।। १२७ । सो मणवंछियभोए तीए समं भुजई बहुं कालं । अनदिणे उजाणे समामयं मुणिय मुणिनाहं ॥१२८ ॥ कुसुमसिरीए समेओ पत्तो पुरिसुत्तमो महीनाहो । नमिऊण साहुचलणे उपविट्ठो उचियठाणमि ।। १२९ ॥ मुणिणा वि समारद्धा गंभीरसरेण देसणा पवरा । धम्मो चउप्पयारो सारो चिय इत्थ संसारे ।।१३०।। तत्थ वि तवे विसेसो दुच्चिन्नाई पि नूण कम्माई । जस्स पहावा विलयं गच्छंति जणाण मयण व ॥ १३१ ॥ तवमाहप्पवसेणं करमणो वि हु न पारए काउं । लोयाणं उवसग्गं तम्हा तत्थेव जइयत्वं ॥ १३२ ॥ इय देसणं सुणेउं मुणिनाहं पणमिऊण नियठाणे । संपत्तो नरनाहो सुहेण सो गमइ दियहाई ॥ १३३ ।। सिरिकुसुमसिरीदेवीसहिओ पुरिसुत्तमो कुणइ धम्मं । सम्मं जिणमणियं दाणसीलतवभावणारूवं ।। १३४ ॥ नियआउसमत्तीए मरिऊण गयाई देवलोगंमि । मिहुणचणेण तत्थ वि भुजंति जहिच्छिए भोए ॥ १३५ ॥ पावेह तवपहावा मयंकरेहा भवंतरे पत्ते । मणइटुं पाणपियं तं चिय मोरं महीनाहं ॥ १३६ ॥
इति तपोविषये मृगाङ्करेखाकथानकं समाप्तम् ।
-- - तपोविषये अघटकथानकम्-तं किं पि नत्थि जं न हु सिज्मइ लोए तवप्पहावेण । अपडेण जहा पत्तं दासीपुण वि सुरजं ॥१॥ इंदपुरीए समाणा भारहखेत्ते अवंतिदेसंमि । अस्थि विसाला नयरी नामेणं सिरिविसाल चि
४
॥२९॥
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॥ २ ॥ बुद्धिपरकमदाणोवयारद क्खिमगुणगण समेओ । तत्थ त्थि महीनाहो सुघङियनामेण नायपरो || ३ || सीलजुया पाणपिया नामेण मयणमंजरी तस्स | पंचप्पयारविसए दुन्नि विभुंअंति अणवरयं ॥ ४ ॥ विक्कमसीहो पुचो उत्पन्नो ताण गुणगणनिवासो | तणया य रयण सुंदरिनामा जियअच्छरावा || ५ || तस्सत्थि महीवहणो पुरोहिओ नाणगन्भ नामेण । परिणाओलगाओ भूयमविस्सं घ्रुणइ सवं ।। ६ ।। अन्नदिणे नरनाहो अत्थाणं पूरिऊण उचविट्ठो । सामंतदंडनायगमंतिपुरोहिअपराउत्तो ॥ ७ ॥ अह एगो कम्मयरो आगंतूर्ण गिहाउ वेगेणं । कहिऊणं किं पि पुरोहिअस्स सवणे गओ सिग्धं ॥ ८ ॥ तं सुणिय त्रिम्हियमणो दाउं नहछोडियं घुणियसीसं । तं पिच्छिऊण निवई पुच्छर अच्छरियअक्खित्तो ॥ ९ ॥ किं तुह विम्हयठाणं ? कहेसु मह नाणगन्म ! सिग्धं पि । सो भणइ देव ! एयं न कहिजड़ कहवि कस्सावि ॥ १० ॥ इय मणिए नरनाहो निब्बंघेणं पुणो वि पुच्छेइ । अमयाउ वि महुरतरा अद्धं कहिआ हवड़ बत्ता ॥ ११ ॥ जंपेह नागगन्भो हविस्सई तुज्झ दुक्ख महगरुयं । तहवि कहिजड़ अहआगहु त्ति नरनाह ! सुण इन्ही ॥ १२ ॥ मज्झ घरे कम्मरी समत्थि एगा सुयं पसूया सा | संपइ सरूवकलियं इयं सुणिउं भणइ नरनाहो ॥ १३ ॥ किमणेण कारणेणं निरत्थयं मत्थयं बिहूणेसि ? । जंप य नाणगन्भो न निष्फला देव ! मह चिट्ठा ॥ १४ ॥ तो नरनाहो पभणड् सचं चिय कहसु सहमवि एयं । बजरइ नाणगन्भो नाणेण मुणियपरमत्थो ।। १५ ।। जीवंतंमि वि देवे एसो दासीसुओ सुकयपुन्नो । इह नयरीए रजं करिस्सई नेह संदेहो || १६ ।। इय मुणिउं नरनाहो विसजए तत्थ ज्झत्ति अत्थाणं । तो पत्तो नियगेहे पुरोहिओ पिच्छए बालं || १७ || देहपहाउञ्जोइयदिसिवलयं चक्कवालकरचरणं । दासीपुत्तं नरवइवरलक्खणकलियसबंगं ।। १८ ।। अह सुघडियनर
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पाइअकहासंगहे।
॥३०॥
नाहो चिंतइ हिययंमि दुक्खिओ अहियं । नेह पुरोहियवयणं वितहं कइयावि खलु जायं ॥ १९ ॥ ता जाव एस अज विद
तपोविषये बालो निहणेमि ताव सिग्धं पि । इय चिंतिऊण पुरिसाण जुयलमेगं समाइ8 ॥ २०॥ गंतुं पुरोहियगिहे पच्छन्नं दासिदारयं । अघटहणह । इस निवासमाएसं लहिण गया णिसीहंमि ॥ २१ ॥ विसिउं पुरोहियगिहे सुत्ताणं ताण गहिय तं पुत्तं । नीह- | कथानकम् । रिऊण पुरीए जुन्नुजाणे गया पुरिसा ॥ २२ ॥ अन्नोन्नं ते दुन्नि वि भणंति बालो अईवसुकुमालो । न वहंति अम्ह हत्था हणमाणाणं इमं कहवि ॥ २३ ॥ इय चिंतित्र उजाणे बालं मुत्तण तत्थ जीवंतं । सुघडियरायसमीवे गंतूण भणंति ते एवं ॥ २४ ॥ अम्हेहिं देव ! बालो हणिओ सो जत्थ केण विण दिद्यो । तं सुणिय ताण वयणं नरनाहो निव्वुओ जाओ ॥ २५ ॥ अह तणयं अनियंती अकंदंती निवारिया दासी । पुत्तस्स माविरजं कहिऊणं नाणगम्भेण ॥२६॥ पुन्नवसेण विभाया चालस्स विभावरी सुहेणं सा । उजाणपालओ तत्थ ज्झत्ति पत्तो पियासहिओ ॥ २७ ॥ सो जंपिउं पउत्तो पिययमि ! सुक्को वि एस आरामो । रम्मफलकुसुममंजरीजुत्तो दीसइ अगाले वि ।। २८ ॥ सा जंपइ पिय ! बालो पुननिही दीसए बउलमूले । एयस्स पहावेणं फुल्लियफलिओ इमो नूणं ॥ २९ ॥ गंतूण तत्थ सिग्धं गहिओ तीए करेहि सो बालो। मालागारो तं पिच्छिऊण लग्गो पयंपेउं ॥ ३० ॥ सवंगलक्खणधरो बालो एसो सिरीइ आवासो। पुनरहिएण केण वि निकरुणेणं इहं मुको ॥ ३१ ॥ धनेण विणा रयणीए जीविओ एस अञ्ज कह बालो । अघडियचरियं एयस्स तेणिमो अघडनामो ति ॥ ३२ ॥ इण्डिं हवेउ पिययमि ! तुज्म अपुत्ताइ पुत्तओ एस । अहिणवपसूयवेसा चिट्ठसु एत्थेव उजाणे ॥ ३३ ॥ लोए पयासियवं एयं चिय गूढगम्मसंजुत्ता। अञ्ज पस्या एसा तणयं उआणगयमत्ता ।। ३४ ॥ इय मणिऊणं मालागारो पत्तो नियंमि ठाणमि । ॥३०॥
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जतिअत्तो पयासिओ लोयममि ॥ ३५ ॥ जहवुतं वृत्तंतं सवं कहिऊण तेण पच्छन्नं । वीसंमठाणमेगा मुका धाई पिपासे || ३६ || मालागारस्स पिया कह्वयदियहेहिं आगया सगिहं । अघडकुमारो बढइ कीलंतो विविधकीलाहिं ॥ ३७ ॥ अह सो मालागारो ओलगकुसुमाई अप्पर तत्थ । सुघडियभिहाणरत्रो पहायसमयमि पइदियहं ॥ ३८ ॥ अन्नम्म दि तयं अघडं गहिऊण मालिणी एसा । गच्छइ निवइसयासे अप्पर कुसुमाई अस्थाणे ।। ३९ ।। पुहईवइणा दाउ पसायदानं विजिया एसा । अह भगइ नाणगन्भो सुणेसु नरनाह ! मह वयणं ॥ ४० ॥ गिहिस्सा तुह रअं पुचो एयाए मालिणीए फुडं । इय सुणिउं नरनाहो अइदुहिओ चितए हियए ॥ ४१ ॥ न हु इणिओ तेहिं तथा मुको कत्थ वि हविस्साई पालो । तो पो एयाए अहवा ति चेय पोच्छामि ॥ ४२ ॥ सद्दाविऊण ते वि हु अभयं दाऊण बालवृत्तंतं पुच्छेद महीनाहो कहंति ते सचमेगंते ॥ ४३ ॥ तो नरनाहो अनं पुरिसं पभणेइ ज्झत्ति एगंते । मालिणिबालो जो इत्थ आगओ हणिअ तं सिग्वं ॥ ४४ ॥ तकंठठियाभरणं आणसु गहिऊण मह सयासमि । इह लड्समाएसो सो पत्तो तस्थ ठामि ।। ४५ ।। मग्गे तं पि रमंतं दड्डुं काऊण खंघदेसंमि । केण वि अदिस्समाणो संपत्तो बाहिरुञ्जाणे || ४६ || अघडो वि तस्स कुवं गिव्हंतो मह ताय ! ताय ! ति । सो वि हु करुणारसिओ संजाओ सुणिय तं वयणं ॥ ४७ ॥ बालेण इत्थ ताओ मणिओ ता हूं हमि कह णु इमं । इय चितिऊण मुको भवणे जक्खस्स एगंमि ॥ ४८ ॥ कंठाभरणं गहिउं पुरिसो पत्तो निवस्स पासंमि । तं अप्पिऊण पभणइ देवासो मए बिहिओ ।। ४९ ।। तो सुघडियनरनाहो अहिनाणं पिच्छिऊन चिंते । इणिओ अपेण बालो हरिसिपचिचो तओ जाओ || ५० || मालामारो अह मालिणी अ पिच्छंति मेव नियपुषं । दाऊण उपालंमे विहिणो चिति
६
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पाइअ
कहासंमहे ।
॥ ३१ ॥
दुहियाई ॥ ५१ ॥ अह सो अघडकुमारो कीलाए ममह तंमि देवउले । पिच्छेइ जक्खपडिमं आलिंगइ ज्झत्ति तं सो वि ।। ५२ ।। कुचं पि परानुसई बालसहावेण ताय ! ताय ! ति । पभणतो जंघोवरि उवविसई हसिरमुहकमलो ॥ ५३ ॥ एवं तवयणाई विविहाई जक्खवंतरो सुणिउं । पिम्मपरायणहियओ करुणाभरमंथरो जाओ ।। ५४ ।। तं पिच्छिऊण बालं जक्खो चिंते ओहिनाणेण । कत्थ ट्ठिओ पुननिद्दी चिट्ठिस्सह एस सोक्खेण ।। ५५ ।। अह तंमि पुणो समए उजाणे तत्थ देवधरनामा | आवासिओ समंता लच्छिसमिद्धो वणियपुत्तो ॥ ५६ ।। बालस्स एयमुचियं ठाणं नाऊण देवरूवेण । जंपड़ निसाइ जक्खो वणिय ! जग्गेसि अह सुतो १ ॥ ५७ ॥ तं वयणं सुणिऊणं अन्भुड्डाणं कयं तओ तेण । जग्गामि अहं सामिय ! तं पभणइ देवघरसेट्ठी ॥ ५८ ॥ तो जंपइ तं जक्खो वंतरदेवं मुणेसु मं सोम ! । मह एयं उआणं कुणेमि कीडं सया इत्थ ।। ५९ ।। देवधरसेट्ठि ! पुत्तय ! आवाससि इत्थ मज्झ उखाणे । ववहारबुद्धिगमणागमणेणं सङ्घकालं पि ॥ ६० ।। कइयावि तए न कओ वदवो कुसुमफलदलाणित्थ । एएण कारणेणं तुट्टो हं तुज्झ वरसु वरं ।। ६१ ।। तो पभणड़ देवघरो लच्छीना ( रा ) माई मज्झ गेहंमि । नो अस्थि पुणो पुतो तं चिय मह देसु जइ तुट्टो || ६२ ॥ इय सुणिउं जक्खो वि हु पभणइ मह देउले पामि । उच्छंगे उवचिठ्ठे गिण्हसु बालं अघडनामं ।। ६३ ।। इय मणिउं सो देवो पत्तो असणं तओ सेट्ठी । चिंतेइ सुमिणमेयं महमोहो अहब किं सच्चं १ ।। ६४ ।। गमिऊण सयलरयणि पहायसमयमि हिट्ठचित्तेण । पत्तेण जक्रखवणे दिट्ठो बालो गुणनिवासो ।। ६५ ।। संपूइऊण जक्खं बालं गहिउं गओ निए ठाणे । देवइभजाइ तओ समपिओ कहिय वृत्तं ।। ६६ ।। पुरहियाए तीए गहिओ वालो अबालचरिओ सो । देउलवाडयगामे पुताई ताई नियमि ॥ ६७ ॥ अघडकुमारो एसो
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तपोविषये
अघट
कथानकम् ।
॥ ३१ ॥
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%ETAHSIDHI
संजाओ अदुवरिसपरिआओ। सबकलापारगओ थोवदिणेहिं 'पिअभिओगो ॥ ६८ ॥ सा का विहु नत्थि कला तं नाणं नेव नेव विमाणं । जं सो न मुणइ अघडो चालो वि अबालबुद्धीए ॥ ६९ ॥ अह अन्नया कयाई देवधरो अघडपुत्तसंजुत्तो। ववहारेणं पत्तो नयरीए सिरिविसालाए ॥ ७० ॥ आवासिऊण बाहिं थालं गहिऊण रयणपडिपुग्नं । संपत्तो धवलगिहे पुत्जुओ नमइ | नरनाहं ।। ७१ ॥ वरस्यणाई पिच्छिय हरिसियचित्तो पयंपए निवई । सिट्ठिसुय ! तुज्झ दाणं सर्व मुकं पसाएण ॥ ७२ ॥
तो वीडिअं पयाउं निययावासंमि पेसिओ सेट्ठी। अह एगते जाए पयंपियं नाणगन्भेणं ।। ७३ ।। सामिय! एयस्स सुओ | करिस्सई रजमित्थ नयरीए । जीवंतमि वि देवे तं सुणिउं चिंतए निवई ॥ ७४ ।। दुट्ठमणेणं तेण वि किं मह वेरी न मारिओ होज । मारेयवो बालो संपइ वि कयावि जुत्तीए । ७५ ।। अह अत्थाणे पत्तो देवधरो अघडपुत्चपरियरिओ। नरनाहेणं पुट्ठो ससिणेहं कूडहियएण ।। ७६ ॥ देवधर ! तुज्झ पुत्तो दीसइ एसो सुलक्षणो सूरो। ता रम्ममेगदेसं देमि पसाएण एयस्स ॥ ७७ ।। नमिऊण भणिय( भणइ ) सेट्ठी सामिय! अम्हाण नेव वंसंमि । जाओ कस्स वि देसो अइभयभीया वणियजाई ॥ ७८ ॥ तो अघडो वि हु पमणइ किं ताय ! भणेसि एरिसं वयण ? । किं चक्कवट्टिपिउणा पत्तं कइयावि चकितं? ॥ ७९ ॥ सोऊणं तबयणं निउणं सपरकम सउच्छाई । रनो दिन्ना नयरी महुरा महुरं चवंतेणं ।। ८ ।। पत्तलयं गहिऊणं अघडेण गएण तीए नयरीए । देउलवाडयगामे नियजणओ पेसिओ ज्झत्ति ॥ ८१॥ देवधरो वि कमेणं गच्छंतो नियपुरंमि संपत्तो। हरिसियचित्तो लोयाण कहइ पुत्तस्स वृत्तं ॥ ८२ ।। सयलजणो वुत्तंतं सुणिऊणं गओ पुरीए महुराए । अघडपहुणा वि
पिअभिहोगो AI
ACCASIOCCASIA
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पाइअ
तपोविषये अघटकथानकम्।
संगहे।
का
॥३२॥
SHASHIONS
दिनो जहजोग्गं तस्स अहिगारो।। ८३ ॥ अह सुघडियनरनाहो कुडिलमणो चिंतए नियमणमि । कहमेसो इणियवो अघडो सुघडियसुकयपुंजो।। ८४ ॥ अहवा अस्थि उवाओ विक्रमसिंहस्स भइणिजुत्तस्स । जियसत्तुविम्गहत्थं गयस्स पेसेमि तत्थ इमं ॥ ८५ ।। इय चिंतिऊण लिहिअं जुयलं लेहाण तेण सयमेव । विक्कमसिंहसुयस्स य एगो एगो य अघडस्स ॥ ८६ ॥ एयं लेहाण जुयं अघडकुमारस्स सिग्घमप्पेसु । इय भणिय लेहहारो विसजिओ ज्झत्ति महुराए ॥ ८७ ॥ गंतूण तेण सिग्धं समप्पियं तस्स लेहजुयलं तं । नियनामंकियमेगं दट्टणं वायए अघडो ॥८८॥ उजेणीए विक्रमसिंहस्स गयस्स सत्तुजिणणत्थं । दुइ लेहं गिव्हिा गंतवं तत्थ तुमए वि ॥ ८९ ॥ तकालं तं लेहें गिहिय चउरंगविउलदलकलिओ। संपत्तो सो कमसो रयणीए कुमरकडयंमि ॥ ९० ॥ जक्खो वि तंमि समए संपत्तो तत्थ अघडपुण्णेण । लेहत्थो नाणेणं जहडिओ तेणिमो नाओ ॥९१ ॥ विक्कमसिंह ! तुम खलु देसु विसं ज्झत्ति अघडकुमरस्स । एयाणमक्खराणं ठाणे जक्खो लिहा एवं ॥९२ ॥ कुमरीए रयणसुंदरिनामाए तह प अघडकुमरस्स । कारेयवं सिग्धं पाणिग्गहणं तए वच्छ ! ॥९३॥ सुरसत्तीए लिहिलं जक्खो वि गओ पभायसमयंमि । मिलिऊणं अघडेणं कुमरस्स समप्पिओ लेहो ॥ ९४ ॥ वाएइ तओ कुमरो मुणिऊणं मणइ जोइसियं । कुमरीए अघडस्स य विवाहलग्गं कहसु सिग्धं ॥ ९५ ॥ जोइसिओ तं पभणइ सुसाइ अजेब अहव परिसदुगे । कुमरो चिंतइ ताएण पेसिओ तेण इह एसो ॥ ९६ ॥ संखेवेणं जाओ तम्मि दिणे ताण दुह वि विवाहो । एवं बहमवि मुणिउं सुघडियराया वि चिंतेह ॥ ९७ ॥ सच्चं चिय मणइ जणो जं कुणइ विही हवेह तं चेष । जं न पडा कायाविहुतं घडियं तेण अपडस्स ॥ ९८॥ बह रचिजागराओ जायाइ विसइयाइ वियणत्तो। पंचत्तं संपचो विकमसिंहो बिहिवसेण ॥१९॥
CARRAR
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अघडेण कयं सवं मयकिञ्चं तस्स दुक्खियमणेण । जाणाविओ य एयं सिग्धं सुघडियूपुहहनाहो ॥ १०० ॥ नियपुतमरणसवणे हियए सुघडियनिवस्स सहस्स त्ति । तं उत्पन्नं दुक्खं जं न हु तीरेह कहिउं पि ।। १०१ ।। अह तम्मि चैव समए केवलनाणी समोसढो तत्थ । मुणिऊण सुषडियनिवो तस्स गओ वंदणनिमित्तं ।। १०२ ।। तिपयाहिणं करेउं वंदिय उवविसह उचियभूमी । तं केली वि पमणइ मुंचसु खेयं सुणसु एयं ।। १०३ ।। तुह नयरीए सेट्ठी घणओ नामेण आसि घणयसमो । निजामण पुणो न हु अनं मन्नए किंपि ।। १०४ ।। थोवदिणेहिं वि नट्ठा लच्छी विउला वि तस्स कम्मवसा । तेणं चिय वेरगेण तेण गहियं वयं ज्झत्ति ॥ १०५ ॥ मासस्स य मासस्स य एगंमि दिणंमि कुणइ पारणयं । चम्मट्ठिसिरादेहो अइउग्गतवेण सो जाओ ।। १०६ ।। अह अन्नदिणंमि तर गच्छंतेणेस रायवाडीए । दिट्ठो तमेव वलिओ तुमं पि मणिऊण अवसरणं ॥ १०७ ॥ सुणिऊण तुज्झ त्रयणं चिंता हिययंमि कोवपज्जलिओ । उत्तमकुलंमि जम्मो दिक्खा विहु उत्तमा मज्झ ॥ १०८ ॥ एसो वि हु पाविट्ठो अवसउणपयंमि गणइ मं समणं । मारेमि इममिआणि दयावरा अहब मुणिपवरा ॥ १०९ ॥ तवस्स तेण अन्नभवे । इत्थेव हुआ रजं जीवंते सुघडियनिवमि ॥ ११० ॥ बहुमुलं नवरयणं मउिं जाइमएणं दासीपुत्तो इमो जाओ ।। १११ ॥ जं चितियं अणेणं मारेमि इमं नियं एयंमि गयावराहे वि ॥ ११२ ॥ तेण मओ न हु एसो इमिणावि तुमं न मारिओ जेण । तुह ११३ ॥ इय सुणिऊण सवित्थरमधडकुमारस्स निरुवमं चरियं । पणमिय गुरुणो चिंता य इमं सयमवि रअं वियरेमि तस्स जेण पुणो । इसमाणाणं अहवा रूप
मह उण जइ अस्थि फलं एयस्स विकिणियं तेण कागिणीए वि तओ तुह वि । जाया मारणबुद्धी
।
पुण एसो करिस्सई कयनियाणु ति ॥ चलणे नियत्रणे नरवई पत्तो ॥ ११४ ॥
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पाइस
संगहे।
गावना प्रमावे धर्मदत्तकथानकम्।
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माणाणं पि पाहुणओ ॥ ११५॥ रजाएसं पेसिय हकारइ सो वि ज्झत्ति संपचो । दाऊण नियं रजं अबराहं खामए सवं ॥ ११६ ॥ मुणिवरकहियं सयलं साहइ अघडस्स पुत्वभवचरियं । तं सुणिउं संजायं जाईसरणं तओ तस्स ॥ ११७ ॥ तो सुघडियनरनाहो गहियवओ ज्झत्ति सो दिवं पत्तो । अघडचरिएण तत्व य जाओ अघडो महीनाहो ॥ ११८ ॥ नियजणणी मालियमालिणी य सिद्धिं च अप्रमुयणं च । हक्कारइ नियपासे सिग्धं अघडो महीनाहो ॥ ११९ ॥ बहुकालं रज्जमरं पाले सो वि धम्मसंजुत्तो । सिरिरयणसुंदरीए दुग्पडपुत्तं ठविय रजे ॥ १२० ॥ गहिऊण साहुदिक्खं मग्गिय भिक्खं पचोहिङ लोयं । दुत्तरतवं तविचा अकलंकं पालियं नियम ।। १२१ ।। भावणभारियचित्तो समाहिजुत्तो इमो पुणियतत्तो। आउक्खयंमि मरिउं जाओ देवो महिड्डीओ ॥ १२२ ।।।
इति तपोविषये अघटकथानकं समाप्तम् ।
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ACCOCA%
SONGS
भावनाप्रभावे धर्मदत्तकथानकम्-दाणं वा सीलं वा तवोविहाणं पि तह य अनं पि । सत्वं निष्फलमेयं जाण मणे भावणा नत्यि ॥ १ ॥ जं एगो फलमउलं पाव किरियं सया वि कुणमाणो । तं चिप लहेइ अन्नो भावेन्तो भावणं एक |॥२॥ रहियाण भावणाए सवं पि हु नूण निष्फलं हवइ । सहियाण भावणाए थोवं पि बहुप्फलं मणियं ॥३॥ किं किजह विहवेणं ? किं वा पढिएण ? किं व अत्रेण ? | जाव न हियए मावो सुनिम्मलो होइ लोयाणं ॥ ४ ॥ तं नत्थि जं न वियरइ एक चिय भावणा विदईण (१)। जह धम्मदत्तसेट्ठी सुहाई भुंजेइ सुरलोए ॥ ५॥ गयउरनामेण पुरं गयतुरयसमाउलं
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॥३३॥
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स(सु)हावासं । परिवसइ तत्थ सिट्ठी जसघवलो धम्मघरधवलो ॥६॥ जिणमयभावियचित्ता जसदेवी अत्थि तस्स पाणपिया । लच्छिललियाण ताणं को वि हु कालो अइकंतो ।। ७॥ अन्नदिणे जसदेवी दुहियमणा पभणए नियं नाहं । पुत्तेण विणा लच्छीए किजए किमिह विउलाए ॥ ८ ॥ जा न हु उच्छंगठियं सुयरयणं नियइ मम्मणुल्लावं । महिलाए तीए जम्मो निरत्थओ नूण लोयंमि ॥ ९॥ पिययम ! धम्मपहावा मणिच्छियं हवइ सबलोयाण । निबिडंतरायकम्मं पि जाइ दरं खणेणावि ॥ १०॥ सविसेसं अट्ठाहियमहिमं ताई कुणंति भत्तीए । नियगिहदेवालयसंठियस्स सिरिसंतिनाहस्स ॥ ११ ॥ अट्ठमदिणंमि सेट्ठी चिट्ठइ ज्झाणंमि जाव उवविट्ठो। पञ्चक्खीहोऊणं सासणदेवी भणइ ताव ॥ १२ ॥ जमधवल ! संतिजिणवरभत्तीए अंतरायविगमेणं । तुज्झ हविस्सइ पुत्तो कहिऊण तिरोहिया देवी ॥ १३ ॥ जसधवलो तं स्यणि धम्मज्झाणेण गमह सविसेसं । जाए पहायसमए जसदेवीए कहा सई ।। १४ ।। दाणंमि वावडाए संतिजिणिदस्स पूयणपराए । रिउण्हायाए तीए गम्भो जाओ अह अन्नदिणे ॥ १५ ॥ गम्भषहावा जाओ विसेसओ तीइ डोहलो धम्मे । तित्थयराणं पूर्य कुणेह वियरेइ तह दाणं ॥ १६ ॥ नवमाससद्धसट्ठमदिणेसु अइएसु सुक्खभावेणं । जिणधम्मभावियमणा पसबइ पुत्तं दिणयरं च ।। १७ ॥ सुहमइनामा दासी वद्धावइ पुत्तजम्मणा सेट्ठी । सो वियरइ बहुदवं हरिसपरो तीए सहस त्ति ॥ १८ ॥ रिद्धिभरेणं सेट्ठी सम्माणेऊण सयलसयणजणं । जम्ममहं कुणइ पुरे नामं पि हु बारसे दियहे ॥ १९ ॥ जणणीए डोहलओ जाओ धम्ममि गम्भपढमदिणे । तेणेस हवउ कुमरो नामेणं धम्मदचो ति ।। २० ।। अह सो परिवडतो संजाओ अट्ठवरिसदेसीओ । सुगहियकलाकलावो कमेण नवजोवणं पत्तो ।। २१ ।। तंमि पुरे सिट्ठिवरो जसहडनामो वसेइ बहुविहवो। तस्सऽस्थि तिहुणदेवी
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कहा
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॥ ३४ ॥
I
नवजोवणसंगया दुहिया ॥ २२ ॥ तीए समं जसधवलो वीवाहं कारवेइ पुत्तस्स । अह ताण जाइ कालो परोप्परं नेहकलियाणं ॥ २३ ॥ अनादिणे नियजणयं भक्तिन्भरनिम्भरो पणमिऊण । पमणेइ धम्मदत्तो साहसउच्छाहबुद्धिजुओ ।। २४ ॥ जो जण अजियलच्छि भुंजई निल्लजसेहरो लोए । सो पुरिसो काउरिसो निंदाठाणं सुपुरिसाणं ।। २५ ।। निययदंडसम - जियलच्छीए कुणइ जो जणुवयारं । एक्केण पुरिसरयणेण तेण पुहई खलु सणाहा || २६ || ताय ! अहं संतरगमणं कृणिऊण अखिउं दवं । जिणभवणे संघे तह दुत्थियलोयाण वियरिस्सं ॥ २७ ॥ जसधवलो मणइ तओ नियपुत्तं वच्छ ! गाढदुक्खकरं । देसंतरंमि गमणं तुमं पि सुहलालिओ निच्चं ॥ २८ ॥ जंपेड़ धम्मदत्तो जणयं गाढग्गहेण नमिऊणं । सयम जिऊण लच्छि भुंजिस्सं ताय ! न हु अन्नं ।। २९ ।। तस्सग्गहं मुणेउं पभणइ पुत्तं विसेसओ सिट्ठी । परदेसंमि नरेणं एरिसरूवेण होय || ३० || मुद्धतं दक्खत्तं मोणममोणं धणित्तमघणत्तं । पंडिच्चमपंडिचं सभयत्तं निव्भयत्तं च ॥ ३१ ॥ कुवियत्तमकोवितं निल्लअत्तं सलअं च । देसकालानुमाणा धारेयवं सुपुरिसेणं ॥ ३२ ॥ सेसं व जणय सिक्ख पडिच्छियं गाढभत्तिसंजुतो । गहिउं कयाणगाई चलिओ सो पिययमासहिओ ॥ ३३ ॥ कयविक्रयं कुणंतस्स तस्स मग्गम्मि गच्छमाणस्स । मिलिओ मग्गे कूडो नामेणं बंभणो एगो ॥ ३४ ॥ तं भणइ घम्मदत्तो कहेसु किं पि हु कहाणयं रम्मं । जेणं गच्छइ रयणी सोक्खेणं अज इह मज्झं ।। ३५ ।। वज्जर तओ कूडो अणुहवसिद्धं कहेमि अक्खाणं । पंचसयं दम्माणं पढमं चिय देसि ज मज्झ || ३६ || चिंतेह सिट्ठिपुत्तो केरिसमक्खाणयं इमं होही । एगं वेलं लब्भइ जं सोउं बहुयमोल्लेण ॥ ३७ ॥ तं नूण सुणेयवं अच्छरियं जेण जणह मह हियए । अत्थो ( अत्थं ) पुणो वि अहयं सम्मुजिस्सामि लीलाए ॥ ३८ ॥ तो देह तस्स
भावनाप्रभावे
धर्मदत्त - कथानकम् ।
॥ ३४ ॥
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मोल्लं गिण्दt विप्पो कहं परिकहे । नीयजणेणं मित्ती कायदा नेव पुरिसेण || ३९ ॥ इय सिट्टि ! तुज्झ कहियं कहाणj सो मणेड़ हसिऊणं । किं कहियं विष्य ! तए मुहियाए गिव्हिओ अत्थो ॥ ४० ॥ कूडो भणे निसुणसु अपि कहाrयं असुरम्मं । जइ अत्थि तुज्झ पासे दम्माणं दससयं पुण वि ॥ ४१ ॥ चिंते धम्मदत्तो दक्षं दाउं इमं पिनायां । सचं हवे जेणं जत्थ सयं तत्थ पंचासा ॥। ४२ ।। सो अप्पेर सहस्सं कहेइ अक्खाणयं पुण वि विप्पो । महिलाए विस्सासो कायवो नेव कइया वि ।। ४३ ।। मज्झ कहाणयजुयलं सया वि जइ घरिसि हिययमज्झमि । ता कत्थ वि नेव तुमं पराहन कह विपाविहिसि ॥ ४४ ॥ हरिसविसायसमेओ पारसकूले कमेण सिद्धिसुओ संपतो तं पुच्छर कत्थ तुमं दियवर ! वसेसि १ ॥ ४५ ॥ सो भणइ इत्थ अइयं सया वि निवसेमि मज्झ गिरमेयं । जं किं पि तुज्झ होही पओ
तं कवं ॥ ४६ ॥ मंतेणं अभिमंतिय जत्रमुट्ठि तस्स बंभणो देइ । कहइ य वावियमित्ता खणेण मिण्हंति फलमेए ॥ ४७ ॥ ते गिण्डिय सिट्ठिसुओ पुरीए आवासिओ परिसरंमि । अह संपत्तो सिग्धं सिरिसेण निवस्स पासं ॥ ४८ ॥ वररयणभरियथालं पाहुडमप्पिय तओ निवेणावि । रंजियचित्तेणद्धं मुकं सुकं वणिसुयस्स ॥ ४९ ॥ संपत्तो नियगेहे सेट्ठी कयविषयं तओ कुणइ । अतो बहुदवं गमइ समओ तहिं कालं ॥ ५० ॥ जं किं पि तिहुणदेवी पभणइ तं चिय कुणेइ सो सेट्ठी । रागंघाणं अहवा एस च्चिय होड़ नूण गई ॥ ५१ ॥ एगो परिवसइ विडो सयज्झए तस्स धम्मदत्तस्स । नामेण गंगदत्तो मित्तत्तं ताण संजायं ॥ ५२ ॥ अइसच्छमणो सेट्ठी भोयणतंबोलखअपिजाई । मित्तत्तणेण निश्चं सो वियरह गंगदत्तस्स ।। ५३ ।। सो तं विडं सया विहु पिच्छइ नियबंधवं व नेहेण । अक्खलिओ सिडिगिहे गमनागमणं कुणइ एसो
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कहासंगहे।
मावनाप्रभावेधर्मदत्त.. कथानकम्।
॥३५॥
CARKASARKARI
॥ ५४ ।। जइ वि हु न हवह गेहे सेट्ठी तह वि हु समेइ सो तत्थ । अइदुट्ठमणो हासं कुणेइ सह तिहुणदेवीए ।। ५५ ॥ अइपरिचयाउ तीए सिग्धं पि मणोवियारमावन्नं । किं बहुणा ? दुण्हं पि हु संजायं ताण अइपिम्मं ॥ ५६ ॥ एगाए महिलाए पुरिसेणेगेण नेव वत्ता वि । कायवा चवलाणं विसमा खलु इंदियाण गई ।। ५७ ।। जह न हु इच्छइ सेट्ठी तह सा वियरेइ तस्स भक्खाई । नियपिययमाउ अहिओ महिलाणं उववई अहवा ।। ५८ ।। लुद्धो तीए सिट्ठिम्मि गंगदत्तो पओसमावहइ । सो दुचरियं ताणं सच्चमणो नेव जाणेइ ।। ५९ ।। अन्नदिणे सो गच्छइ निवइसयासम्मि नमियमुवविसइ । वरमंतिपमुहलोओ अस्थि तहिं गंगदत्तो वि । ६० ।। जंपेइ महीनाहो सेट्टि ! तुमं कहसु किं पि अच्छरियं । दिढे सुयं व कत्थ वि देसेसुं जेण परिभमसि ॥ ६१ ।। सो वयइ मह सयासे एगमउवं समस्थि अच्छरियं । ओगच्छंति फलंति य वा यमित्ता जवा देवा ! ॥ ६२ ॥ वजरइ महीनाहो तं धनं अस्थि किं पि जं लोए । गिण्हइ फलं खणेणं आमं ति पयंपए सेट्ठी ॥ ६३ ।। भासेइ गंगदत्तो दुट्ठमणो धम्मदत्त ! तुह सर्व । अलियं पि इत्थ वयणं छाइजइ विउललच्छीए ॥६४।। जइ एयं सच्चं चिय कहमवि इह कुणसि सिट्टि ! घिट्ट ! तुमं । सबा वि मज्झ लच्छी गेण्हेयवा तए ताव ।। ६५ ।। अह जइ एयमलीयं होही ता तुज्झ गेहमज्झम्मि । मह हत्थदुगे जं किं पि चडइ तं चिय तुमं देसु ॥ ६६ ॥ मन्नेह धम्मदत्तो सवं पि तह त्ति सच्छसम्भावो । महिनाहो संजाओ सक्खी उभयमि पक्खंमि ॥ ६७ ।। अत्थाणाओ लोओ सबो वि तओ गओ निए ठाणे । कयविक्कयस्स कले सेट्ठी वि हु [अट्ट]मज्झम्मि ॥ ६८ ॥ गंतुं जववुत्तंतं कहइ विडो ज्झत्ति तिहुणदेवीए । सा भणइ तक्खणेणं वावियमित्ता फलंति जवा ।। ६९ ॥ हारिजइ सवं चिय इत्थ विजयम्मि सिट्ठिणा समयं । ता गिण्ह ति च्चिय जवे जित्ते पुण एरिसं कुणसु
CONNOCASSAGACA
॥३५॥
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॥ ७० ॥ इत्थदुगेण ममं चिय उप्पाडसु सयललोयपच्चक्खं । अम्हाणं भोगसुहं हवेइ निकंटयं जेण ॥ ७१ ॥ अह मंतिए समप्पइ तस्स जवे खिवः तत्थ आसन्ने ( सा अन्ने ) । कयको सो गच्छर्इ अह सेड्डी आगओ गेहं ॥ ७२ ॥ सो दुइयदिणे पत्तो गहियजवो ज्झत्ति निवइअत्थाणे । उबविट्ठो सिरिसेणं पणमिय बहुलो परियरिए || ७३ || वावेह मट्टिया सिंचे जवे जलेण सिट्ठी वि । उग्गच्छंति न कहमवि विलक्खहियओ तओ जाओ || ७४ ॥ चिंतेड़ बंभणेणं किं तेणं विप्पयारिओ अहयें । किं वा तेसिं केण वि कओ जवाणं परावत्तो ।। ७५ ।। अह भणइ गंगदत्तो जं किं पि हु सिट्टि ! चडइ हत्थदुगे । तं गिसारं वियरसु सो भासइ नूण दायां ॥ ७६ ॥ महिवइणा अत्थाणं विसज्जियं सिट्टिणा वि कूडस्स । गंतू तस्स गेहे निवेइओ सयलबुत्तं तो ।। ७७ । सो भणइ मए कहियं जं तं सर्व्वं पि तुज्झ वीसरियं। महिलाए विस्सासो अहमे मित्ती न कायवा || ७८ || सो अहमो जेण विडो तुह महिला वि हुन सीलसंजुत्ता । जीए हि मंतियजवे गहियं (उं) मुक्का पुणो अन्ने ।। ७९ ।। तं वयइ धम्मदत्तो मा मा एवं भणेसु मज्झ पिया। सीलालंकारजुया महोवरिं गाढनेहा य ॥ ८० ॥ सो जंपड़ सिट्ठि ! तुमं चरियं न हु सुणसि किं पि महिलाणं । एयं सवं तुज्झं पच्चक्खमियाणि दंसिस्सं ॥ ८१ ॥ ततो बंभणजुत्तो समागओ नियगिहम्मि सो सड्डी । हकारइ नरनाहं उववेसह आसणे पवरे ।। ८२ ।। कूडो कहे कन्ने तुह भजा अस्थि मालउवरंमि । उस्सारसु निस्सेणि सिग्धं तं चिय कुणइ सिट्ठी || ८३ || नरनाहस्स समकवं हकारेऊण गंगदत्तविडं । पभणइ गिण्हेसु तुमं हत्थदुगे चडइ जं किं पि ॥ ८४ ॥ सो चंचलनयणेहिं पिच्छइ बहुदम्मरम्मरयणाई । न हु किं पि पुणो गिण्हइ सुन्नमणो तं अपिच्छंतो ।। ८५ ।। जाणावणत्थमह तस्स खासए छिकए तिहुणदेवी । तुणिऊण तीए सदं सो
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पाइअकहा
संग्रहे ।
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वेगेणं तहिं पत्तो ॥ ८६ ॥ न हु नियइ चडणमग्गं गच्छइ निस्सेणिसंनिहाणम्मि । हत्थदुगेणं तं गिव्हिऊण मोएह जाव तहिं ॥ ८७ ॥ ता बंभणेण भणिओ मा मुंचसु इत्थ अहम ! निस्सेणिं । जं हत्थदुगेणं चिय गहियं तं चेत्र तुह होउ ॥ ८८ ॥ नहु किंपि पुणो अनं लहेसि निल्लज ! कह वि कइयावि । सो वि हु विलक्खहियओ अहोमुहो जाव चिट्ठेह ॥ ८९ ॥ तं परिपुच्छइ राया संक्रियहियओ किमित्थ दवाई | चईऊणं निस्सेणी गहिया तुमए पढममेव ॥ ९० ॥ सो सो विलक्खहियओ न किंपि जंपेह जाव ताव तर्हि । गाढो कओ कहेई वृत्तंतं जं जहावुत्तं ॥ ९१ ॥ नायपरेणं रन्ना कुविएण पिओ वि गंगदत्तविडो । निविसओ आणतो अन्नायपरायणो काउं ।। ९२ ।। अह मरह तिहुणदेवी भयभीया दंतगहिय नियजीहा । संमाणिय तं सिद्धिं गओ निवो ज्झत्ति धवलहरे ॥९३॥ पभणइ कूडो सेट्ठि छलिओ सि इमेहिं कहसु सच्छ ! तुमं । पनरहसयदम्मेहिं पढिओ वि न पंडिओ जाओ ॥ ९४ ॥ सो जंपर महिलाए चरियं धुत्तस्स घ्रुणइ न विही वि । जायं सुतेयमहं तहवि पुणो तुम्ह साहिजा ।। ९५ ।। तस्सुवयारं मुणिउं सम्माोउं विसजिओ कूडो । संखेवेणेव कथं मयकिचं तिहुणदेवीए ॥ ९६ ॥ तं पिच्छिऊण सर्व सो मुणइ पलीवणं व गिहवासं । पारसकूलाउ तओ गयउरनयरे लिए पत्तो ॥ ९७ ॥ जणयाणं सो चलणे मिस पिकतं । मणइ य वेरग्गजुओ महिला दुक्खाण खलु खाणी ॥ ९८ ॥ उक्तं च निजसुभाषितगाथाकोशेदीसंति वइरितुल्ला जणणी जणया उ जाण कअंमि । ता उवविहडंति जओ ही ! जम्मो तान महिलाण ।। ९९ ।। पुरिसो महिलाण कए नाणादुक्खाई सहइ अणवश्यं । ताउ पुणो न हु केण वि कुडिलसहावाउ विप्पति ॥ १०० ॥ लोहबसेणं नेहं दंसंति या विजइ वि महिलाओ । तह वि हु विमूढहियओ बहुमाणं मुणइ ताण मरो ॥ १०१ ॥ सुहकंखिरो
भावना
प्रभावे
धर्मदत्त -
कथानकम् ।
॥ ३६ ॥
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KARWARISEKASHAN
समीहइ जो को विहु रमणिसंगम मृढो । सो सिसिरसमीहाए पविसइ पजलंतजलणंमि ॥१०२॥ मोहंधो एस जणो विवरीयं चिय सया वि पेक्खेइ । असुईण निहाणं पि हु रमणि खलु मुणइ रमणीयं ॥ १०३ ॥ ता जणणिजणय ! अयं विरच चित्तो इयाणि गिहवासा । संसारजलहिवेडा गिण्हेयब्बा मए दिक्खा ॥ १०४ ॥ सुणिऊणं तं वयणं वञ्जनिवार्य व जणणिजणया तं । पभणति वच्छ ! तुमयं एक च्चिय अम्ह पुत्तो सि ॥१०५ ॥ जइ कहवि तुमं दिक्खं गिहिसि हिययं तड त्ति अम्हाण । फुट्टिस्सइ ताव लहुं वच्छ ! तुमं कुणिय कारुनं ॥१०६ ॥ गयसावओ चिट्ठसु गेहि च्चिय भावओ मुणीहोउं । जा अम्हे जीवामो तओ परं कुणसु जं उचियं ॥ १०७॥ सो पभणइ जणयाणं पडिउवयारोन विजए कहवि । जेहिं मणुस्सजम्मो दिण्णो चिंतामणिसमाणो ॥ १०८ ॥ भावेण गहियदिक्खो चिट्ठइ गेहे वि मुकवावारो। सो निचलज्माणमणो विरत्तचित्तो गमह कालं ॥ १०९॥ जे सवं चइऊणं तिणं व लीलाइ गिहियं(उ) दिक्खं । पालिंति निक्कलंकं ते चिय धना जए मुणिणो ॥११०॥ किं होही सो दियहो पहजमहं पि गिव्हिय सुहेण । चारित्तं पालित्ता नियकजं जेण साहिस्सं ॥११॥ इय भावमावियमणो बहुपुग्नं अजिऊण सो धनो। सुरलोयं संपचो सुहसुक्खं झुंजए तत्थ ॥ ११२ ॥
इति भावनाप्रभावे धर्मदत्तकथानकं समाप्तम् ।
- - - भावनाप्रभावे बहुबुद्धिकथानकम्-दाणेणं सीलेणं तवेण लोओ विणा वि पावेह । बहुबुद्धी विन मावणपहायो देवरिद्धीओ ॥१॥ चंपाइ पुरवरीए गयणम्मबिलग्गजिणहरजुयाए । जियसन्तुनरनाहो जहत्वनामो सुधम्मपसे ॥२॥
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पाइअ
भावना
संगहे। ॥३७॥
तस्सत्थि बुद्धिसागरमंती सुहबुद्धिविहवसंपन्नो । तस्स पिया सीलबई सीलवईगुणगणसमेया ।। ३ ।। सदरसरूवगंधफासविसयाउ सेवमाणाणं । बहुबुद्धी नामेणं पुत्तो ताणं समुप्पन्नो ॥ ४ ॥ साहिच्चतक्कलक्खगलंकारनिघंटुसद्दकवाई । जोइस- प्रभावे निमित्तसंगीयस उणसत्थाई पढियाई ॥ ५ ॥ तह वि न विरमइ कुमरो कओजमो गाढपाढविसयाओ । तं मणइ तओ मंती || बहुबुद्धिबहुविजाए अलं वच्छ ! ।। ६ ॥ बहुपाढो साहूणं गुणावहो होइ चत्तसंगाण । न हु नियकुडंबचिंतापराण पुत्तय ! गिहत्थाण कथानकम्। ॥७॥ ता कुणसु तुममियाणिं पुहईनाहस्स निच्चमोलग्गं । सो नेव तह वि विरमइ नाणम्भासाओ कइयावि ।। ८॥ अन्नदिणे महिवइणो समागओ पाहुडम्मि परदेसा । एगो हारो तेणं समपिओ मंतिणो हत्थे ॥ ९॥ तं गहिउं नियगेहे समागओ बुद्धिसागरो मंती । हाणम्मि वावडमणो अप्पइ बहुबुद्धिपुत्तस्म ॥ १० ॥ जियसत्तुमहीवइणा समप्पिओ एस संपयं मज्झ । रक्खेसु वच्छ ! हार गरुयपयत्तेण इय मणिउं ॥ ११ ॥ गहिओ तेणं तत्थ वि विम्हरिओ पढणवावडमणस्स । कम्मयरेणं
लद्धो गंगडनामेण सो हारो ॥ १२॥ अह दुइयदिणे मंती दारं पुत्ताउ मग्गए सो वि । चिट्ठइ अहोमुहो चिय न कि पि ला पच्चुत्तरं देइ ।। १३ ।। मुणियमणो सो मंती निन्मच्छइ गाढकोवरत्तच्छो । रे ! रे ! तुह विम्हरिओ हारो अइपढणगहिलस्स
॥ १४ ।। अइपाढेणं लाहो चिट्ठउ रे गओ निओ हारो । अइ सव्वत्थ गरहिया विउसेहिं पहिजए अहवा ॥ १५ ॥ न हु दीसइ कम्मयरो अज गिहे तेण गंगडेणेसो । नूणं गहिओ होही भण कस्स न वल्लहा लच्छी ।। १६ ।। जइ कहवि महीनाही हारं मग्गिस्सए तओ तस्स । तं कहसु मज्झ निल्लज ! उत्तरं जं मए देयं ॥ १७ ॥ रेरे! तं चिय हारं कत्तो वि निरिक्खिऊण आणेसु । अप्पाणस्स इयाणि अहवा, ठाणं गवेसेसु ।। १८ ॥ इय बुद्धिमागरेणं गाद निब्भच्छिओ पवविएण । अहिमाण
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art कुमरो विणिग्गओ ज्झत्ति गेहाओ ।। १९ ।। तं चिय हारं कहमवि लहेमि जइ बूण ता निए गेहे । आगच्छस्सामि अहं न अन्ना इय मणे धरिउं ॥ २० ॥ संपत्तो धीरमणो कमेण कुमरो जयंतिनगरीए । तं पालह नरनाहो विजओ विजओ रणे निश्च ।। २१ ।। निवसह सुवन्नसिट्ठी घणावहो तत्थ तस्स हट्टम्मि । बहुबुद्धी उबविट्ठो परिक्खए सवरयणाणि ।। २२ ।। मोल्लं कहे दंसणमित्रोणं कणयहीरयाईणं । सेट्ठी चिंतेइ तओ एसो अइउत्तमो कोइ ॥ २३ ॥ मोल्लं मुणेमि कमवट्टयाउ नाssरायओ य एयाण | कहकहमवि अहयं पि हु एसो उण दिट्ठमित्तेनं ।। २४ ।। सेट्ठी तं पडिपुच्छइ देतरिउ व बच्छ ! दीसेसि। कहसु महं इह नयरे अज तुमं कस्स पाहुणओ ।। २५ । सो पभणइ तुम्हं चिय सेट्ठी तुट्ठो तओ मणे जाओ । तं गहिउं जाइ गिहे धणपियाए नियपियाए ।। २६ ।। कहइ य एसो उत्तमपुरिसो परदेसिओ समायाओ । तुह गेहे पाहुणओ पिक्खसु नियपुत्तनेहेण ॥। २७ ।। जणणि व तस्स मञ्जणभोयणतंबोलवत्थपभिईणि । वियरेह गाढ सम्माण संजया सावि पदिय ॥ २८ ॥ अन्नदिणे एगंते घणावहो पुच्छर सहपुवं । सचं कहेसु मज्झं बच्छ ! तुमं अप्पणो चरियं ॥ २९ ॥ 'जणस्स व बहुबुद्धी बहुमाणं पिक्खिऊण अड़गाढं । आरंभिय मूलाओ सच्चं चिय कहह सर्व्वपि ॥ ३० ॥ मुणिऊण मंतिपुत्तं सिट्ठी हिययंमि हरिसिओ भणइ । वच्छ ! तुमं इत्थ चिय नि सुक्खं नियगेह व ॥ ३१ ॥ समुज बहुदवं सिट्ठी हट्टमि तस्स साहिजा । अन्नदिणे विहिवनओ कम्मयशे गंगडभिहाणो ॥ ३२ ॥ तं चिय हारं दंसह विकिणणत्थं घणावहो वि तह । वजरई मज्झ पुत्तो इहागओ मोलमेयस्स ।। ३३ ।। सवं मुणिउं तुज्झं वियरिस्स सो परंपए ज्झति । इकारसु नियपुचं ता मो वि ममागओ तत्थ ।। ३४ ।। ओलक्विऊण पभणड़ गंगड ! कम्मयर ! एम
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पाइअकहासंगहे।
ने भावनाका प्रभावे
बहुबुद्धि
दि.
॥३८॥
४० ॥ पक्खितो जो३९ ॥ जंपेह
मह हारो । सो जपइ को तुमय ? को हारो? गंगडो को य? ॥ ३५ ।। मह तुझं दसणमवि आजम्माओ वि नेव संजायं। तह वि जइ हारवंछा ता गिण्हसु निवइपच्चक्खं ।। ३६ ॥ गंतूण दो वि तत्तो नमिऊणं नायसंजुयं विजयं । पभणेह मंतिपुत्तो मज्झ गिहे एस कम्मयरो ॥ ३७ ॥ मह चोरिऊण हारं चंपानयरीओ आगओ इत्थ । सो पमणेई सामिय ! पं पि हु नेव जाणेमि ॥ ३८ ॥ चिट्ठउ दूरे एसो हारो गेहं च सबमलियमिणं । एवं ताण विवाए न निभयं देइ नरनाहो ॥ ३९ ॥ जंपेइ निवो तुम्हं दिवेण विणा हवेइ न हु सुद्धी । तं पुण इह नयरीए दिवपहावम्मि कूवम्मि ॥४०॥ पक्खित्वो जो सुद्धो कुवाओ उम्भयाइ य जलाओ । पउमासणोवविट्ठो निस्सरई बुट्टए इयरो॥४१॥ सुद्धमणो हरिसपरो तं दिवं मन्नए अमच्चसुओ। अवरो चिंतह मझं जह जह वि समागयं मरणं ॥ ४२ ॥ तम्हा जणपञ्चक्खं विगुप्पमाणाउ कुवपडणंमि । जं मरणं तं जुत्तं इय मन्नइ सो वि तं दिवं ॥ ४३ ॥ तं दहणं हार अइरमणिजं विचिंतए निवई । जइ दो वि बुद्धिऊणं मरंति ता होइ मह हारो॥ ४४ ॥ गच्छंति निवसमेया दो वि हु कुवंमि कुणिय वरपूयं । सासंको कम्मयरो पढम चिय पडइ बुड्डह य ॥ ४५ ॥ पमणइ लोओ सामिय! हारो सुद्धस्स हबउ कुमरस । लोहेण पराभ्यो जंपइ विजओ महीनाहो ॥ ४६ ॥ पडिऊणं जइ कृवे निम्गच्छद ता इमस्स सुद्धस्स । एसो होही हारो न अन्नहा सो तओ पडिओ ॥ ४७ ॥ सच्चपहावा कंठप्पमाणवडियजलस्स कुवस्स । सो बाहिं नीहरिओ कुमरो कमलासणासीणो ।। ४८॥ सुद्धो सुद्धो चि तओ पयंपमाणं जणं भणइ निरई । मंतपहावणेसो नीहरिओ नेव सच्चेण ॥ ४९ ॥ मुणियमणो नयरजणो पमणह तुम्हं न एरिसं जुवं । अमायपरे निवइम्मि होउ लोओ कई देव! ॥ ५० ॥ सच सचं नीई जणाववायं कुलस्स य कलंकं । अगणिय सर्व एवं दो अधगमए कमरं
हारो गोवि तं दिवं ॥ ४३ मयं मरणं ॥ ४२ ॥१॥४१॥ सुदमणो
ARCH
॥३८॥
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॥ ५१ ॥ उक्तं च निनसुभाषितगाथाकोशे-सहो वि हु एस जणो निंदिय कम्मं कुणेह खलु पच्छा। पढमं पि हु चऊणं लजामाहप्पभयकिति ॥ ५२ ॥ सो भणइ हारमेयं जइ कहवि न लेर्निं तुह सयासाओ । ता न हु इवेमि नरवर ! अमचपुतो अहं नूणं ।। ५३ ।। गाढपराहवजुत्तो विलक्खचित्तो गिमि सो पत्तो । सेट्ठी भणेड़ मा कुणसु वच्छ ! दुक्खं तुमं कहवि ।। ५४ ।। पुवभवे कह वि तए जड़ परवत्युं न गिव्हियं आसि । ता नूग एस हारो बहुयदिहिं पि तुह होही ।। ५५ ।। सो तत्थ ठिओ चिह्न पहननिवहणदिन एकमणो । अनदिणे अच्छरियं संजायं तत्थ नयरम्मि ।। ५६ ।। निवसेड़ तत्थ मंती सुघणू नामेण पिययमा तस्स । सोहग्गसीलकलिया नामेणं चंदरेह त्ति ॥ ५७ ॥ road दहुं खुहियमणो तीए वंतरी एगो । सुघणूनरिच्छरूवं कृणिऊणं सरिसपरिवारो ॥ ५८ ॥ अमुणिअंतो थेवं वि सायरण अंगवेगाओ । चाहिं गए अमचे समागओ तस्स गेहम्मि ॥ ५९ ॥ दुट्ठमणज्झवसाओ गच्छड़ पासंमि चंदरेहाए । सीलपहावा तीए न किंपि सो पारए काउं ॥ ६० ॥ जड़ वंतर एकं चिय हवेउ सीलं जयंमि लोयाण | जरून पहावा काउं उद्दवं तरह न सुरो वि ॥ ६१ ॥ सबो वि तत्थ लोओ सुधणु ति पयंपए तओ सो वि । पभणेड़ अज नयरीए आगया के वि ठगपुरमा || ६२ ॥ पविसह परस्स गेहे सरिच्छरूवेण मंततंताओ । तेणं अज पवेसो इह दायवो न कस्सावि ॥ ६३ ॥ पाहरियपभिइलोओ एवं सवो वि वारिओ तचो । सच्चामचो गेहे पवितो तेहिं पडिसिद्धो ॥ ६४ ॥ चिट्ठ मज्झे मंती ठगो तुमं इय कदंति ते तस्स । सो भणइ अहं मंती गिमज्झे को विधुतवरो ॥ ६५ ॥ ता सो विलक्खयिओ विपासे जाइ कहह सर्व पि । मज्झ गिम्मि पविट्ठो सरिच्छरूवो नरो को वि ।। ६६ ।। न लहेमि कह
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पाइअकहासंग्रहे।
IN
प्रमावे
॥३९॥
SHOCCACIOCLCCORE
वि सामिय ! तत्थ पवेसं अहं तओ निवई । हकारह तं गेहा सपरियणं आगओ सो वि ॥ ६७ ॥ तं पिच्छिय विजयनिवो भावनान मुणइ दुण्डं पि कहमवि विसेसं । पुढेण परियणेण वि सो च्चिय कहिओ सुधणुमंती ॥ ६८ ॥ सच्चामच्चो पभणइ में न मुणसि पिययमे ! कह तुमं पि । सा जपइ मज्झ पिओ एसो चिय नेव धुत्त ! तुमं ॥ ६९ ॥ दुण्ह वि नाण विवाओ संजाओ बहुबुद्धिगाढमच्छरुच्छाहो । सरिसाण ताण कहमवि न निवयं वियरए को वि।। ७० ॥ भणियं नरनाहेगं सुद्धी तुम्हाण कव. तकथानकम् पडणाओ । तत्तो सच्चामच्चो निवडिय सिग्धं पि नीहरिओ ।। ७१ ॥ जंपेइ महीनाहो सुद्धो सुद्धो त्ति एस खलु सचिवो । धुत्तामचेण तओ पयंपियं अहमवि पडेमि ॥७२॥ महिनाहेणं मणिओ मरसि तुमं तह वि निवडियो झत्ति । जलपउठिओ कुवाउ निग्गओ दिवसत्तीए ॥ ७३ ॥ सच्चामच्चो जाओ विच्छाओ विहसिओ पुणो अवरो । नरनाहो सासंको न कं पि ताणं पमाणेइ ॥७४॥ दो वि तओ एगमणा भणति पहु ! किं पि निन्नयं देसु । तो निवई नयरीए भणावए पडहसदेण ।। ७५ ।। जो एयाण विवायं हरेइ सो वंछियं लहइ पुरिसो। निन्नेउं असमत्थो एयं तो तं न को छिबइ ।। ७६ ॥ तो बहुबुद्धी छिविओ कुणिऊणं सक्खिणं अमच्चजणं । निवई नियदत्तवयणो आणेइ सोवन्नभिंगारं ॥ ७७ ॥ तं पूइऊग पभगइ एयस्स मुहेण पविसिउं जो उ । निस्सरई नालेणं सो नणं हवह सचिववरो ॥ ७८ ॥ धृत्तो कलसमुहेणं पविसिय नालेण नीसरह ज्झत्ति । दिवेण पहावेणं हरिसेणं विहसियसरीरो ।। ७९ ॥ भणिओ वि णेगवारं मच्चो सत्तीए विरहिओ तत्थ । पविसेउं पि न तीरइ बहुबुद्धी भणइ तो निवई ।। ८०॥ एसो चिय पहु! सच्चो एयस्स न जेण एरिसा सत्ती । दुइओ उण नीसरिओ नणं दिवाइ सत्तीए ।। ८१ ॥ जंपेइ तओ धुत्तो जं भणियं किं पि तं मए विहियं । बहुबुद्धि ! सच्चभासय ! मंतिपयं देसु मह
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इण्डिं ॥ ८२॥ जो सुज्झइ सो मंती हवेह इय हवउ तुज्य मंतितं । नियगेहि चिय न उणो इत्थ व अहवा वि अन्नत्थ ॥८॥ जेण मए मंतित्ते सामन्न चिय कया इह विवक्खा । सुरनरनिच्छयणत्थं दिवं पि इमं मए विहियं ॥८४॥ नूण तुमं देवो चिय सव्वं सच्चं कहेसु मज्झ तुमं । बहुबुद्धिबुद्धिरंजियचित्तो सो कहइ सच्चमिणं ॥ ८५ ॥ ददृण चंदरेहं समागओ भोगसुहसमीहाए । तीए सीलपहावा मणिच्छियं नेव मह जायं ॥ ८६ ॥ तहवि अहं अविरचो थक्को गेहमि भोगासाए । अन्नं सवं तुझं पि पच्चरखं कि पि जं जायं ॥ ८७ ॥ सो देवो संपत्तो अदंसणं अह भणेइ मंतिसुओ। नरवर ! वियरसु हारं मज्झं तं चेव अइरम्मं ।। ८८ ॥ लुद्धमणो महिनाहो न समप्पइ कहवि तस्स तं हारं । सुधणुअमचेण तओ गाढं कुविएण सो भणिओ ।। ८९ ।। नो वियरइ तं तहवि हु मंती मेलित्तु नयरसवजणं। पभणइ नरवर ! अम्हे न वसामो तुज्झ नयरंमि ॥१०॥ जेणं कस्स वि गेहे जं कि पि हविस्सइ असुरम्मं । तं गिण्हसि देव! तुमंता लोओ हबउ कह इत्थ ॥ ९१ ॥ नीसरिओ नयरीए लोओ सयलो वि मिलिय एगस्थ । अह चिंतइ महिनाहो मह रजं केरिममियाणि ।। ९२ ॥ लोएण विणा एगस्म निष्फलं इत्थ रनमज्झि छ । महिनाहो पिट्ठीए गंतूण भणइ नियलोयं ।। ९३ ॥ एगो मह अवराहो खमियो नो कुणेमि पुण अन्नं । अप्पइ तं चिय हारं बहुबुद्धी गिण्हए ज्झत्ति ।। ९४ ॥ सयलो वि पुरीलोओ नियनियठाणंमि आगओ तत्तो। सिट्ठिधणावहगेहे गंतूणं भत्तिसंजुत्तो ॥ ९५ ।। सुधणुअमच्चो रंजियचित्तो कुमरस्स देह नियधूयं । विजयवई दुण्डं पि हु पाणिग्गहणं तओ जायं ॥ ९६ ॥ कडवयदिणावसाणे नियजणउकंठिओ अमच्चसुओ। सिट्ठिधणावहधणपियपयकमले नमिय पभणेइ ।। ९७ ॥ तुम्हाएमा नियदंसणेण सुहियं कुणेमि सयणजणं । चंपाए नयरीए गंतूममियाणि कयकिच्चो ।। ९८ ॥
बुद्धी गिहए ज्झत्ति रजियचित्तो कुमरस्स देह साधणावहधणपियपयकमल ९८॥
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पाइअकहासंगहे।
॥४० ॥
ताई वि मुणियमणाई सम्माणं कुणिय परियणं दाउं । भत्तीइ कयपणाम दिन्नासीसं विसर्जति ॥ ९९ ॥ सुधणुअमचं नमिउं ||
भावनाविजयवईपिययमं तहा गहियं (उ)। निग्गच्छइ नयरीए बहुबुद्धी बहुजणसमेओ ॥१००॥ पत्तो कमेण रनंमि तत्थ पिक्खेइ प्रभावे मुणिवरं एगं । काउस्सग्गेण ठियं निम्मलचित्तो विचिंतेइ ॥ १.१॥ निम्ममनिरहंकारो गयलोहो चत्तसबवावारो । परिह
बहुबुद्धिरियगिहावासो धन्नो एसो च्चिय मुर्णिदो ॥ १०२॥ गिहवासंमि वसंतो जंन कुणइ नत्थि किं पि तं लोए । जेणं विजय
कथानकम्। नरिंदो वि गंजिओ लोहसुहडेणं ॥ १०३ ॥ तह गिहवासाउ च्चिय जाओ देसंतरो दुहावासो । तम्हा मुणिणो धन्ना केण वि न पओयणं जाण ।। १०४ ॥ इय भावितो भावणमणहं मग्गे कमेण गच्छंतो। संपत्तो नियगेहे जणयाण समप्पिउं हारं |॥ १०५ ॥ पणमेइ तायचलणे विजयवईभजसंजुओ कुमरो। निबूढनियपइन्नं जणओ तं कुणइ उच्छंगे ॥ १०६ ॥ ४. अह तं भणंति ताई हरिसभरुल्लसियअंसुनयणाई । रूसंति उत्तमजणा गुरूण किं रुक्खसिक्खाए ? ॥ १०७॥ दाकि वच्छ ! तुमाउ चिय हारो अम्हाण वल्लहो एसो । जं देसंतरदुक्खं सहियं एमेय कुमर! तए । १०८ ॥ तुह विरहे जं
दुक्खं सहियं अम्हेहिं एत्तियं कालं । तं वइरीण वि नणं हवेउ मा कहवि कइयावि ॥ १०९ ॥ ता पुत्त ! कत्थ तुमए लद्धो एसो कई वरो हारो। परिवारेण कहिओ वित्थरओ सयलवुत्तो॥११०॥ बहुबुद्धिणा वि जियसत्तुनिवइणो कहिय सयलवुत्ततं । हारो मुक्को चलणेसु तेण तस्सेव सो दिनो ॥ १११ ॥ नमिऊण महीनाई समागओ नियगिहमि सो सई । सिद्धिधणावहलोयं विसजए कुणिय पडिवति ॥ ११२ ॥ विजयवईइ समेओ संसारसुहाई सेवए निचं । गमइ य सो बहुकालं भावितो मावणं एवं ॥ ११३ ।। अरसं विरसं रुक्खं सुजितु सहति विविहउघसग्गे । संसारवारिरासिं तरंति तारिंति अबे वि ॥४०॥
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॥ ११४ ॥ गयकोवा वि हु निजियअंतरअविग्गगाढमाहप्पा | सबंगमुवसमसिरीउवगूढा तह वि नीरागा ॥ ११५ ॥ ते चिय मुणिणो घना अहं पि किं तरिसो हविस्सामि । कम्मि वि दिणंमि कल्लाणकारए चइय सवं पि ॥ ११६ ॥ इम भावणासमेओ चविधम्मे कम अंते । आउक्खयंमि पत्तो सुरलोए झुंजइ सुहाई ।। ११७ ॥
इति भावनाप्रभावे बहुबुद्धिकथानकं समाप्तम् ।
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अनित्यताविषये समुद्रदत्तकथानकम् - जीयं देहं पेम्मं पियसंगो जुवणं घणं चवलं । सिट्ठिसुओ दिहंतो समुद्ददत्तो व इत्थ ॥ १ ॥ रायगिहं नामेणं नयरं जिणधम्मभावियजणोहं । पालइ रजं निवई जियसत्तू तत्थ जियसत्तू ॥२॥ तत्थत्थि महीमंडण मणवरयं धम्मकम्मकयचित्तो । सागरदत्तो सेट्ठी घणउ व समिद्धिदुल्ललिओ || ३ || जिणचरणकमलमसली कमला नामेण पिययमा तस्स । तांणं वच्चर कालो परुपरं मिलियचित्ताणं ॥ ४ ॥ सुहरसनिमग्माण वि एवं निश्वच्चयादुहं ताणं । किं वियरह जीयाणं समं (विही सहसामग्गिं १ ।। ५ ।। जोइसियअणुमयाइं दववरणं कुणंति गहपूयं । अच्चंति मंडलाई मंतियकहिएण मग्गेण ॥ ६ ॥ पुच्छंति तणयजम्मं दाणं नेमित्तियाण दाऊणं । रक्खडियमूलियाओ पवाइयाओ विमग्गंति || ७ || ओवाइयाइं मन्नंति देवदेवीण दिट्ठमहिमाण । किं बहुणा ? धुत्ताणं मक्खट्ठाणाई जायाई ॥ ८ ॥ तह वि हु न होइ तणओ धम्मं ताइं कुणंति सविसेसं । तं नत्थि जं न वियर एसो सुविसुद्धचित्ताणं | ९ || अट्ठाहियमहिमाओ कुमंति ताई जिनिंदबिंबाणं । पूर्यति सयलसंघ दीणाणं दिति दाणाई ॥ १० ॥ पुचंतरायकम्मं धम्मपदाचा स्वयं गयं ताणं । किचिय
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कहासंग ।
॥ ४१ ॥
मेत्तं एयं ? मोक्खं पि हु वियरह जमेसो || ११ || अन्नदिणे रिउण्हाया कमला हलंतबद्दल कल्लोलं । जलहिं पिच्छइ सुमि कहइ पहाए पिययमस्स || १२ || सो सुविणत्थं मुणिउं साहइ तीए पहाणसुयजम्मं । सेसं (१) धम्ममणा दिणाई सा गमइ सुक्खेण || १३ || अह पडिपुन्ने समए पसवइ पुचं सुलक्खणं धीरं । वद्धावह दासीओ सेडिं सो देह बहुदवं ॥ १४ ॥ महयारिद्धिमरेणं सिट्टी जम्मूसवं तओ कुणइ । सुमिणानुसारओ से समुद्ददत्तो त्ति नामं पि ||१५|| वडइ कमेण कुमरो समय तेरण गिम्हदिवसु च । सुगहियकलाकलावो कमेण सो जुवणं पत्तो ।। १६ ।। कणयवईना मेणं कन्नं कणयप्पहस्स सिट्ठिस्स । परिणाविओ य कुमरो जणएहिं महाविभूईए || १७ || चिंतह य निसासेसे समुद्ददत्तो अहन्नसमयंमि । जो जणयज्जियलच्छिं उबभुंजइ अहमचरिओ सो ॥ १८ ॥ किं एढिएणं ? बुद्धीए किंव किं तस्स गुणसमूहेण ? । जो पियरविदत्तघणं भुंजइ अञ्जणसमत्थो वि ।। १९ ।। जणणिजणयाण चलणे नमिउं विन्नवइ जोडियकरो सो । जणमग्गेणं अजय बहुदवं आगमिस्सामि ॥ २० ॥ ताई वि भांति पुत्तय । लच्छी बिउला वि अस्थि अम्ह गिहे । एवं चिय वच्छ ! तुमं भुंजसु निच्चं सइच्छाए ॥२१॥ ओवायसयल एगो चिय अम्ह पुतो सि । तुम्हारिसाण सुद्दलालियाण दुग्गो जलहिमग्गो ॥ २२ ॥ उच्छाहुल्हसियतणू समुद्ददत्तो पयंपए तत्तो | सुगमं व दुग्गमं वा कुणेह किं धीरपुरिसाण १ || २३ || पुवपुरिसजियाई धगाई विव इच्छाए १ । जे समजिय झुंजंति हुंति ते उत्तमा के वि ।। २४ ॥ किं बहुणा भणिएणं ? जह तह व मए अवस्सगंतवं । तं निच्छयं मुणेउं विसजिओ तेहिं कहकहवि ।। २५ ।। अह कणयवई पभणइ दहए । देसंतरे गमिस्सामि । बाहभरुल्लियनयणाए तीए अणुमन्निओ एसो || २६ || तुट्ठमणो सो वचो गहिऊण कयाणगाई विविधाई । मुणिऊण सुहमुहुचं अच्चिय पडिमं
अनित्यताविषये
समुद्रदत्तकथानकम् ।
॥ ४१ ॥
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| जिणवराणं ॥ २७ ॥ काऊण जलहिपूयं चलणे नमिऊण जणणिजणयाण । दिनासीसो तेहिं चडिओ वहणमि सेट्ठिसुओ
॥ २८ ॥ वणिउत्तेहिं समेओ सुवियखणणेयमित्तसंजुत्तो। पत्रणेणणुकूलेणं पत्तो दीमि एगमि ।।२९ ॥ मणइच्छियलाहेण विकिणिय कयाणगाई तत्थेव । गहिऊण अहिणवाई तेण उप्पेलियं वहणं ॥ ३० ।। जा किं पि गओ मग्गं उच्छलिओ ताव कालियावाओ। संजायं वद्दलयं खलु व खे गजिनो मेहो ।। ३१ ।। डुल्लेइ जाणवतं मण व दारिद्दपीडियजणस्त । जा निजामयलोओ खिवह अहो नंगरे ज्झचि ॥ ३२ ॥ आउलवाउलहियओ उस्सारद जाव सियवडे वियडे । संचारेइ य जाव य आउलयाई सुबहुयाई ॥३३॥ ता फुटुं तं वहणं नारीहिं य (नारीहियं) इच्छियं रहस्सं व । को वि मओ को वि पुणो फलई लहिऊण उत्तरिओ ॥३४॥ सिद्विसुओ वि हु फलहं अवलंबइ वल्लहं व लहिऊण । तरमाणो कहकहमवि गिरिंमि पत्तो गिरावत्ते ॥ ३५ ॥ तत्थ विसनो चिंतह जणएहि निवारिओ वि जं अहयं । एयज्झवसायाओ न नियत्तो तं फलं एयं ॥३६॥ कत्थ गया ते मित्ता ? वणिउता कत्थ ? कत्थ सा लच्छी ? । नियवयणं दंसिस्सं कहं अहं जणणिजणयाणं ॥ ३७ ।। जे न करेंति गुरूणं सिक्खं दुहजलहितारणतरंडं । अम्हारिस व पच्छा ते पच्छायावदुहजुत्ता ॥ ३८ ॥ मवियवयाइ नासो कहिं पि नो हवइ नूण कइयावि । ततो सप्पुरिसेहिं सोगो हियए न कायदो ॥ ३९ ॥ पुरिसाण आवय चिय यहेइ कसबट्टए मतुल्लतं । एयाए निवडिओ जो खलु कणयं व सो जच्चो ॥ ४० !! इय दुहियमाणसो वि हु निरुवममवियंभमाणउच्छाहो । परिभमहिं ( मेहिं ) जलहिमज्झं ठियंमि सेले गिरावचे ।। ४१ ॥ विविहवणस्सइरम्मे अणेयगंभीरगुहसयाने( इन्ने) । भयजगयसीहचिचयमित्तकरेणूहि दुल्ललिए ॥ ४२ ॥ जा पचो कि पि तओ नियइ सिलं सो कवाडियारूवं । तं उग्घाडिय हिट्टा गच्छद
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पाइअ. IN सोवाणपतीए ॥ ४३ ॥ तत्थ गएवं दिटुं धवलहरं कणयभित्तिनिम्मवियं । गयणग्गलग्गमाणिकपुत्तलीथंमतोरणयं ॥४४॥ अनित्यताकहा- I दारंमि मन्निविट्ठ दुवारवालं मणेइ सिट्ठिसुओ । कस्सेसो आवासो रम्मो पडिपुनपुनस्स ॥ ४५ ॥ सो भणइ इमं ठाणं विषये संगहे। जलनिहिपहणो समुद्ददेवस्स । निम्माणुसप्पयारे कह णु तुमं आगओ इत्थ ? ॥ ४६॥ वजरइ सिट्ठिपुत्तो तं मह दंसेसु | समुद्रदत्त
देवयं भाय ! । तेणं भणियं चिट्ठसु इत्थेव तुम खणं एग ॥४७॥ विनविउ नियसामि जावागच्छामि लद्धआएसो। गंतूण ॥४२॥
तकथानकम्। हा तम्म पासे कुणिउं पंचंगपणिवायं ॥४८॥ विन्नवह नरो कत्तो वि आगओ को वि चिदुइ दुवारे । कोऊहलपडिपुनो सो
जंपद तं पवेसेसु ॥ ४९ ॥ लद्धाएसेणेसो पवेसिओ तेण ज्झत्ति सेद्विसुओ। अह पंचवन्नमणिमउडकिरणविच्छुरियसिरकमलंद ॥ ५० ॥ आम्बलयथूलमोत्तियहारविरायंतपिडुलवच्छयलं । रयणविणम्मियकेऊरकिरणसोहंतभुयदंडं ॥ ५१ ॥ झणज्झणिररयणकंकणकलायअंकणयकडयपयजुयलं । निरुवमरूवं पिच्छिय समुहदेवं विचिंतेइ ॥५२॥ गच्छंति दिट्ठमग्गे नूणं एपारिसा सुपुन्नाणं । मह आवई वि जाया इह समए संपइसमाणा ॥५३ ।। सुपसनो लोयाणं कहमवि एसो हवेह जाण जए । मणवंछियअहियाओ लहंति ते नूण रिद्धीओ ॥५४॥ सिद्विसुएण पणामो तस्स कओ भत्तिनिम्मरमणेण । हरिसुल्लसिरसरीरो दिनासणयंमि उबविट्ठो ॥५५|| पुट्ठो सुरेण कत्तो संजाओ इत्थ आगमो तुज्झ । वणिउत्तेणं सबो कहिओ मूलाउ वुत्तो ।। ५६ ॥ सम्म मुणिऊण सुरो पयंपए वच्छ ! नत्थि तुह लाहो । कइयावि हु जलमग्गे होही खलु आवय चेय ॥५७॥ तह वि हु विहलं मा हवइ दंसणं देवयाण तेण तुमं । वच्चसु सुवन्नदी होही लाहो तुह अउदो ॥ ५८ ॥ सो जंपइ जलमज्झे अमुणिय ठाणंमि जामि कहमिहि । तस्साएसेण तओ उप्पाडिय किंकरेण लहुं ॥ ५९॥ मुक्को सुवनदीवे सो न हु स्यणाई. नियह नो IB॥४२॥
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कणयं । न य दम्मे अन्नं वा न कि पि जं हरइ दारिदं ॥ ६० ॥ तत्तो विलक्खचित्तों समुद्ददत्तो विचिंतए दुहिओ। दिवमि पराहत्ते किं पुरिसो कुणइ धीरो वि? ॥ ६१ ॥ लोयाणं दारिदं हरेह जंतुट्ठमाणसो सो वि । धिद्धी निकरुणमणो भयठाणे इत्थ मं खिवइ ।। ६२ ॥ रुद्वेण तेण मुक्को लोहं दमित्तु इत्थ ठाणमि । कह अन्नह तत्थ चिय न कि पि दिनं मह सुरेण ॥ ६३॥ उत्तमजणा वि एवं कुणंति जं विप्पयारणं कहवि । ता कह पावउ सोक्खं खणं पि अम्हारिसो लोओ ।। ६४ ॥ अहवा नो दायबो दोसो कस्सावि केण कइयावि । पुत्वजियकम्माओ हवंति जं सुक्खदुक्खाई॥६५॥ तं किं पि दहं जायं समुद्ददत्तस्स तमि समयंमि । जं न कहिउं न सहिउं तीरिजइ अन्नपुरिसेण ॥ ६६ ॥ अह कुणिय पाणवित्तिं फलेहिं सो तत्थ सीयभयभीओ । कडेहिं पाडिऊणं जलणं जालेइ रयणीए ॥ ६७ ॥ भूमी सुवन्नरूवा संजाया तावभावओ तत्थ । सो हरिसपरो जाओ तं पिच्छियऽणभविढि व ।। ६८ ।। मुणिउं सुवनभूमि खणिऊणं कुणइ इट्टियाओ तओ। दिन्ने जलणे ताओ सुवन्नरूबाओ पिच्छेद ॥ ६९ ॥ तम्मि समयस्मि पत्तो माउलओ सोहडो कहवि तत्थ । अबतिस्थियवहणाओ ओलक्खिय तं पयंपेइ ॥ ७० ॥ वच्छ! कहं इह पत्तो एगो च्चिय कह व कह व दीणमणो । तं पणमइ मुणिऊणं सिद्विसुओ विहसिया सरीरो ॥ ७१ ॥ लञ्जोण्णामियवयणो नियवुत्तं कहित्तु सर्व पि । सबाउ इट्टियाओ तस्स च्चिय खिवद वर्णमि ॥ ७२ ॥ आरुहिऊणं तेहिं वहणं तो पिल्लियं गिरावत्ते । संपत्तं निजामयलोओ दीणो पयंपेइ । ७३ ॥ उम्मग्गेणं एवं संपचं जाणबत्तमइदग्गे । न चला इह ठाणाओ कहमवि किं किजइयाणि ।। ७४ ॥ एसो दीसह जेणं अइदुग्गो पहओ गिरावचो । इह पत्तो नियठाणे जाइ जणो गरुयपुत्रेण ॥ ७५ ॥ आउलबाउलहियया जाया सवे विमुकजीयासा। जलनिहिगमण
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पाइअकहासंगहे।
अनित्यताविषये समुद्रदत्तकथानकम्।
॥४३॥
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| विरत्तो समुद्ददत्तो पयंपेइ ।। ७६ ॥ भग्गे वहणे लद्धेण फलहखंडेण इत्थ ठाणंमि । पत्तेणं सक्खं चिय समुद्ददेवो मए दिट्ठो
॥ ७७ ।। अह सोहडेण सहिओ भमेह सो तं न पिक्खए तत्थ | अहवा वारं वारं सुरवग्गो दीसए कह वि ।। ७८ ॥ खिन्नो समुद्ददचो तत्थ य चिंतेइ आवय चेय । पाणप्पवासहेऊ जाएइ पए पए मज्झ ॥ ७९ ॥ दुक्खसमुद्दे खित्तो करुणाठाणं अहं सुरेणावि । पुवक्कियकम्माणं हरिउं को तीरइ विवायं ।। ८० ॥ वणिउत्तमित्तलच्छीविच्छोहदुहेण खिन्नदेहेण । गयणंगणसंभूओ निसुओ सद्दो अमयतुल्लो ॥ ८१ ॥ वणिउत्त ! अहं सुच्चिय सुरो तए इह पहायसमयंमि । आउल्लनंगरेहिं सज्जं वहणं कुणेयवं ।। ८२ ॥ जेणागच्छंति सया बहवे भारुंडपक्खिणो इत्थ । तप्पखवायवहुं पवणपिल्लियं जाणवत्तमिणं ।। ८३ ॥ निवडिस्सइ सुहमग्गे इत्थत्थे को वि नेव संदेहो। अह भइणिभाउणो सो कहेइ सव्वं पि वुत्ते ॥ ८४ ॥ भणइ य किं सचं चिय नो वा जाणिजए कहवि सम्मं । अहवा दहिदड्डतण फुक्केउं पियइ खलु दुद्धं ।। ८५ ॥ तहवि कुणिजइ एयं तेहिं तओ सियवडो कओ पउणो। आउल्लयवग्गकरा संजाया धीवरा ज्झत्ति ॥८६॥ जा चडिओ सयलजणो ता पत्ता नहपहेण भारुंडा। तं पक्खवायहरियं वहणं पत्तं सुमगंमि ।। ८७ ।। पुणलद्धजीविया विव संजाया हरिसनिम्भरा धणियं । पचा कमेण नयरे रायगिहे कयमणुच्छाहा ।। ८८ ॥ बहिभाए उत्तारिय सवाई कयाणगाई सिविसुओ । समुवन्जियबहुदवो संपत्तो निययगेहंमि ॥ ८९ ॥ पणमह समुद्ददत्तो चलणे जणयाण मत्तिसंजुत्तो। लद्धासीसो साहइ अच्छरियकरं नियं चरियं ॥ ९॥ सोवन्नइट्टियाओ गहिऊण गओ निवस्स पासंमि । पाहुडमप्पिय जियसत्तुनिवइणो नमह पयपउमे ॥ ९१ ।। सुपसन्नमाणसेणं सुंकद्धं तेण तस्स परिचत्तं । तत्तो सम्लं रिद्धि नियपिउणो दंसइ पहिहो ॥ ९२ ॥ चिंतइ सागरदचो साहिजेणं इमस्स
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पुत्तस्स । अम्हाण पच्छिमवयं गच्छिस्सइ सुक्खभावेण ।। ९३ ॥ उच्छाहबुद्धिधीरिमथरोवयारिचपुनसंपत्तो । जेणऽम्ह एस तणओ पडिपुनासो गुणावासो ॥ ९४ ॥ तस्सागममि सिट्ठी वद्धावणयं कुणेइ रिद्धीए । अह रत्तिजागराओ विसूइया तस्स संजाया ॥ ९५ ॥ नयरपहाणेहिं तओ कयोवयारे वि णेगविजेहिं । पंचतं संपत्तो समुद्ददत्तो खणेणावि ।। ९६ ।। जणणी जणओ तत्तो पुत्तगुणे सुमरिऊण जूरेइ । अंधाण व दंडसमो बन्छ ! तुम कन्थ दीसिहिसि ? ॥ ९७ ॥ अम्हाण बुड्वभावे को पुत्त ! कुणिम्सई परित्ताणं । परदुक्खमजाणंतो कत्थ गओ चइय सयणजणं ॥ ९८ ॥ जइ थोपदिणेहि चिय अम्हाणं गिहाउ चिंतियं गमणं । ता कीस पुत्त ! तुमयं उप्पन्नो इत्थ पढमं पि ।। ९९ ।। किं वच्छ ! तुम जाओ अइनिहर
माणसो खणेणावि । विलवंताण वि अम्हाण जेण न हु उत्तरं देसि ।। १०० ॥ विलवह बहुप्पयारं कणयवई असहणिजका दुक्खभरा । एयागिणिं चइत्ता में नाह ! गओ तुमं कत्थ ? ॥१०१ ॥ पाणेमविरहियाणं जम्मो इत्थीण निष्फलु चेय ।
भोगुवभोगसुहाई जेणं दूरेण जायाई ।। १०२ ।। दुक्खाण परित्ताणं कुणिस्सई को तए विणा नाह ! । को वा सुललियवयणं वियरिस्सइ मज्झ दुहियाए ॥ १०३ ।। पाणप्पिये ! किं तुमयं रुट्ठो सि ? न देसि जेण पडिबयणं । सुमरेमि किं पि नो नियमवराहं तह वि खमसु तुमं ।। १०४ ॥ उत्तमजणाण कोवो पणिवायंतो हवेइ खलु जम्हा । पाणेस ! एगवारं देसु तुम मज्झ पडिवयणं ।। १०५ ।। रे ! दिव! तए पढमं नो गहिया कह अहं अकरुणेणं । जेण न हविज कइयावि भायणं एरिसदुहाणं ॥१०६॥ जणएहि य मयकिच्चं सयलं पि कयं समुद्ददत्तस्म । तह वि न गच्छइ ताणं दुक्खभरो कहवि हिययाओ॥१०७।। अह धम्मघोमपहुणो पत्ता गेहमि मुणियपरमत्था । पणमद सागरदत्तो उबवेसिय आसणे पवरे ॥ १०८ ।। सोयभरुल्लिय.
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________________ पाइअ. कहासंगहे। अनित्यता विषये समुद्रदत्त. कथानकम्। M // 44 // नयणाण ताण सुयरयणविरहियाण। सोयंधयारतरणिं कुणंति ते देसणं पवरं // 109 // एम कयंतो सबाण नूण साहारणो सयाकालं / मविवेयाण न जुत्तो ता सोओ इट्ठमरणे वि // 110 // जई पंचत्तं पत्तो जीवइ ता नूण किजए सोओ। अग्रह नियदेहस्म य धम्मस्म य होइ परिहाणी // 111 // तारुण्यं करिकर्णतालचपलं लक्ष्मीस्तडित्सन्निभा। सम्बन्धः शरद भ्रविस(भ्रामहरः प्रेमेन्द्रचापोपमम् / / आयुर्वायुविधूततूलतरलं संसारिणां सर्वदा / मुच्या धर्ममनुत्तमं किमपि नो नित्यं भवे दृश्यते / / 112 // दारिद्दगिरिविहंडणकुलिमममो भवसमुद्दबोहित्थो। एक चिय जिणधम्मो लोयाण मणिच्छियं जणइ // 113 // सागरदत्तो कमला कणयबई धम्मदेसणं सुणिउं / जिणधम्ममाणसाई तिन्नि वि जायाई सविसेमं // 114 // गुरुणो विनिए ठाणे संपत्ता तेहिं नमियपयपउमा / कालं गति ताई जिणगुरुश्यसेवणपराई // 115 / / पंचपरमेट्ठिमंत सुमरंताई विसुद्धभावाइं / नियाउसमत्तीए कमेण पत्ताई देवत्तं // 116 / / // इति अनित्यताविषये समुद्रदत्तकथानकम् समाप्तम् // A %AE%A5 % // 44 //