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________________ पाइअकहासंगहे। अनित्यताविषये समुद्रदत्तकथानकम्। ॥४३॥ % | विरत्तो समुद्ददत्तो पयंपेइ ।। ७६ ॥ भग्गे वहणे लद्धेण फलहखंडेण इत्थ ठाणंमि । पत्तेणं सक्खं चिय समुद्ददेवो मए दिट्ठो ॥ ७७ ।। अह सोहडेण सहिओ भमेह सो तं न पिक्खए तत्थ | अहवा वारं वारं सुरवग्गो दीसए कह वि ।। ७८ ॥ खिन्नो समुद्ददचो तत्थ य चिंतेइ आवय चेय । पाणप्पवासहेऊ जाएइ पए पए मज्झ ॥ ७९ ॥ दुक्खसमुद्दे खित्तो करुणाठाणं अहं सुरेणावि । पुवक्कियकम्माणं हरिउं को तीरइ विवायं ।। ८० ॥ वणिउत्तमित्तलच्छीविच्छोहदुहेण खिन्नदेहेण । गयणंगणसंभूओ निसुओ सद्दो अमयतुल्लो ॥ ८१ ॥ वणिउत्त ! अहं सुच्चिय सुरो तए इह पहायसमयंमि । आउल्लनंगरेहिं सज्जं वहणं कुणेयवं ।। ८२ ॥ जेणागच्छंति सया बहवे भारुंडपक्खिणो इत्थ । तप्पखवायवहुं पवणपिल्लियं जाणवत्तमिणं ।। ८३ ॥ निवडिस्सइ सुहमग्गे इत्थत्थे को वि नेव संदेहो। अह भइणिभाउणो सो कहेइ सव्वं पि वुत्ते ॥ ८४ ॥ भणइ य किं सचं चिय नो वा जाणिजए कहवि सम्मं । अहवा दहिदड्डतण फुक्केउं पियइ खलु दुद्धं ।। ८५ ॥ तहवि कुणिजइ एयं तेहिं तओ सियवडो कओ पउणो। आउल्लयवग्गकरा संजाया धीवरा ज्झत्ति ॥८६॥ जा चडिओ सयलजणो ता पत्ता नहपहेण भारुंडा। तं पक्खवायहरियं वहणं पत्तं सुमगंमि ।। ८७ ।। पुणलद्धजीविया विव संजाया हरिसनिम्भरा धणियं । पचा कमेण नयरे रायगिहे कयमणुच्छाहा ।। ८८ ॥ बहिभाए उत्तारिय सवाई कयाणगाई सिविसुओ । समुवन्जियबहुदवो संपत्तो निययगेहंमि ॥ ८९ ॥ पणमह समुद्ददत्तो चलणे जणयाण मत्तिसंजुत्तो। लद्धासीसो साहइ अच्छरियकरं नियं चरियं ॥ ९॥ सोवन्नइट्टियाओ गहिऊण गओ निवस्स पासंमि । पाहुडमप्पिय जियसत्तुनिवइणो नमह पयपउमे ॥ ९१ ।। सुपसन्नमाणसेणं सुंकद्धं तेण तस्स परिचत्तं । तत्तो सम्लं रिद्धि नियपिउणो दंसइ पहिहो ॥ ९२ ॥ चिंतइ सागरदचो साहिजेणं इमस्स % HAE%CRECEIO % % % %
SR No.034180
Book TitlePaiakaha Sangaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay, Kantivijay
PublisherVijaydansuri Jain Granthmala
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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