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________________ कहासंगहे। C &ाजा पिच्छह अंदाई दुनिश्चिय ताव तत्थ चिट्ठति । अप्पइ लहुमजाए सिग्धं सा मक्खए हिट्ठा ॥ २६ ॥ तमि वि दानविषये PIदिणमि पवरे जाओ गम्मस्स संभवो तीए । सा पडिपुग्ने काले पसवइ पुत्वं तओ एग ॥ २७॥ तणुकंतिसमुजोइयदि- चंड सिवलयं सहलक्खणसमेयं । तं पिच्छिऊण चिंतह हिट्ठमणा जसवई हिचए ।॥ २८ ॥ एसो रम्मो पुत्तो पढमो मज्झेव गुण-18| गोवालनिही हवउ । जो पुण होही दुइओ धम्मवईए तमप्पिस्सं ॥ २९ ॥ इय चिंतियम्मि दुइओ न हु जायइ देवयापहावेण । कथानकम्। जसवहउयरंमि तओ अगाढा वेयणा जाया ॥३०॥ तो अप्पइ पढमं वि हु सिग्धं धम्मवईए नियं पढमपुत्तं । अह दुइयं ४ पसवेई देवपहावा जसवई वि ॥ ३१ ॥ धम्मवई हिट्ठमणा नियनाहं पइ पयंपए सिग्छ । महया विच्छड्डेणं वरजम्ममहू सवं कुणसु ॥ ३२ ॥ सेट्ठी वि तो पभणइ दइए। दुक्खेण अजिओ अत्थो । सहिऊण छुहं सीयं तावं अन्नं पि बहु दुक्खं ॥ ३३ ॥ ता अम्ह इमे पुत्ता न उणो परसंतिया हविस्संति । नियअत्थो मुहियाए चयइजइ कह णु जम्ममहे ॥ ३४ ॥ एउं (एअं) सुणिउं पढमो पुत्तो पभणेइ उच्चवयणेण । सुण ताय ! मज्झ वयणं कालीदेवीए भुवर्णमि ॥३५ ।। चूयतरुअहोभाए कलसो चिट्ठह रयणवरमरिओ। तं आणेउं मह उच्छवेसु वियरेसु सक्वेसु ॥ ३६ ॥ इय सुणिउं भयभीओ सेट्ठी चिंतेइ कह णु पालो वि । जंपइ उच्चसरेणं न हु पुत्तो एस किं भूयं ॥ ३७ ।। तो पुण वि भणइ बालो मा बीहसु ताय ! गच्छ तहिं सिग्धं । कम्मयरं गहिऊणं आयड्डइ खणिय जो सिग्धं ॥ ३८ ॥ कोऊहलेण सेट्ठी लोमबसेण य गओ सकम्मयरो । आयड्डिऊण कलसं सो अप्पई सेट्ठिहत्थम्मि ॥ ३९ ॥ सो हरिसपरवसंगो तं गहिऊणं खिवेद फक्खाए । मा कहसु कस्स वि इमं सर्वहं वियरइ पुणो तस्स ॥ ४० ॥ आगंतूणं गेहे सेट्ठी रिद्धीए कृणइ जम्ममहं । अंब- 13॥ ९॥ HOR AE%
SR No.034180
Book TitlePaiakaha Sangaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay, Kantivijay
PublisherVijaydansuri Jain Granthmala
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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