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कहासंगहे ।
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माणं म्रुयसु कइयावि ॥ ५६ ॥ एवं सो चिंतंतो पुन्नसहाओ भमेइ नयरंमि । रयणीए त्रिविकोऊहलेण अक्खित्तचित्तो सो ॥ ५७ ॥ तंमि समयंमि नयरे हत्थिवरो रायवल्लहो नाम । न हु ससइ नेव फंदइ मुय व चिट्ठेइ निचिट्ठो ॥ ५८ ॥ अइदुक्खपरो या समागओ तत्थ विगलिउच्छाहो । पुच्छेइ हत्थिविजे कह जीवइ एस करिराओ ।। ५९ ।। तेहि वि सम्मं नाऊण निउणबुद्धीए रोयपरमत्थं । निद्दाविरहे एयस्स देव ! उयरंमि अफरओ ॥ ६० ॥ कच्चरिखट्टियतकेण देव ! दिभेण जीवए एसो । सुणिऊण ताण वयणं नरनाहो भणइ हरिसपरो ॥ ६१ ॥ धणसेट्ठि ! नयरमंडण ! कओ वि आणेसु कचरिउ तुमं । सो लद्धनिवासो जोयावह नयरमज्झमि ॥ ६२ ॥ न उणो कत्थ वि पत्ताउ ताउ सविलक्खमाणसो सेट्टी । अह पडहसद्दपुत्रं नयरंमि भणावए ज्झति ॥ ६३ ॥ जो कच्चरीउ सिग्धं समप्पए कह व कोइ आणेउं । जं अस्थि मज्झ गेहे सो तं मणवंछियं लहइ || ६४ || एयं सुणिउं वयणं पहिओ हरिसेण तं छिवइ पडहं । घणसारसेट्ठिहत्थे समप्पर कच्चरीउ तओ ॥ ६५ ॥ हरिसपरो संजाओ सिट्ठी ताओ समप्पर निवस्स । तकेण समं दिन्ना करिणो जाओ विरेओ य ॥ ६६ ॥ गयरोगो सो हत्थी संजाओ नरवई वि मुणिऊण । पहियस्स तस्स चरियं नियधूयं देह रयणवई ॥ ६७ ॥ सो निव्वूढपइन्नो मणिच्छियं सुंदरिं विमग्गे | सेट्ठी चिंतहमा दिन्ना निवणागवणियस्स ।। ६८ ।। तो एयस्स अहं कह देमि ? तओ मुणियमाणसो राया । उवयारिणो य पहियस्स देइ सयमेव सेद्विधूयं ॥ ६९ ॥ पत्ता (ते) संज्झासमए पाणिग्गहणं हवे तिन्हं पि । तो निवणागो पत्तो कलहंतो सुंदरिकजे || ७० || मह दिना खलु कन्ना पाणिग्गहणं कुणेइ पुण अन्नो । चक्खू पसारिय च्चिय वाणं कजलं हरियं ॥ ७१ ॥ पभणइ सेट्ठी निसुणसु तुमं पि निवणाग ! मज्झ वयणमिणं । कच्चरियाउ विणा तुह थक्को एसो इह
शीलप्रभावे सुन्दरिदेवीकथानकम् ।
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