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________________ ॥ २ ॥ बुद्धिपरकमदाणोवयारद क्खिमगुणगण समेओ । तत्थ त्थि महीनाहो सुघङियनामेण नायपरो || ३ || सीलजुया पाणपिया नामेण मयणमंजरी तस्स | पंचप्पयारविसए दुन्नि विभुंअंति अणवरयं ॥ ४ ॥ विक्कमसीहो पुचो उत्पन्नो ताण गुणगणनिवासो | तणया य रयण सुंदरिनामा जियअच्छरावा || ५ || तस्सत्थि महीवहणो पुरोहिओ नाणगन्भ नामेण । परिणाओलगाओ भूयमविस्सं घ्रुणइ सवं ।। ६ ।। अन्नदिणे नरनाहो अत्थाणं पूरिऊण उचविट्ठो । सामंतदंडनायगमंतिपुरोहिअपराउत्तो ॥ ७ ॥ अह एगो कम्मयरो आगंतूर्ण गिहाउ वेगेणं । कहिऊणं किं पि पुरोहिअस्स सवणे गओ सिग्धं ॥ ८ ॥ तं सुणिय त्रिम्हियमणो दाउं नहछोडियं घुणियसीसं । तं पिच्छिऊण निवई पुच्छर अच्छरियअक्खित्तो ॥ ९ ॥ किं तुह विम्हयठाणं ? कहेसु मह नाणगन्म ! सिग्धं पि । सो भणइ देव ! एयं न कहिजड़ कहवि कस्सावि ॥ १० ॥ इय मणिए नरनाहो निब्बंघेणं पुणो वि पुच्छेइ । अमयाउ वि महुरतरा अद्धं कहिआ हवड़ बत्ता ॥ ११ ॥ जंपेह नागगन्भो हविस्सई तुज्झ दुक्ख महगरुयं । तहवि कहिजड़ अहआगहु त्ति नरनाह ! सुण इन्ही ॥ १२ ॥ मज्झ घरे कम्मरी समत्थि एगा सुयं पसूया सा | संपइ सरूवकलियं इयं सुणिउं भणइ नरनाहो ॥ १३ ॥ किमणेण कारणेणं निरत्थयं मत्थयं बिहूणेसि ? । जंप य नाणगन्भो न निष्फला देव ! मह चिट्ठा ॥ १४ ॥ तो नरनाहो पभणड् सचं चिय कहसु सहमवि एयं । बजरइ नाणगन्भो नाणेण मुणियपरमत्थो ।। १५ ।। जीवंतंमि वि देवे एसो दासीसुओ सुकयपुन्नो । इह नयरीए रजं करिस्सई नेह संदेहो || १६ ।। इय मुणिउं नरनाहो विसजए तत्थ ज्झत्ति अत्थाणं । तो पत्तो नियगेहे पुरोहिओ पिच्छए बालं || १७ || देहपहाउञ्जोइयदिसिवलयं चक्कवालकरचरणं । दासीपुत्तं नरवइवरलक्खणकलियसबंगं ।। १८ ।। अह सुघडियनर
SR No.034180
Book TitlePaiakaha Sangaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay, Kantivijay
PublisherVijaydansuri Jain Granthmala
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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