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________________ पाइअ. कहासंगहे। अनित्यता विषये समुद्रदत्त. कथानकम्। M // 44 // नयणाण ताण सुयरयणविरहियाण। सोयंधयारतरणिं कुणंति ते देसणं पवरं // 109 // एम कयंतो सबाण नूण साहारणो सयाकालं / मविवेयाण न जुत्तो ता सोओ इट्ठमरणे वि // 110 // जई पंचत्तं पत्तो जीवइ ता नूण किजए सोओ। अग्रह नियदेहस्म य धम्मस्म य होइ परिहाणी // 111 // तारुण्यं करिकर्णतालचपलं लक्ष्मीस्तडित्सन्निभा। सम्बन्धः शरद भ्रविस(भ्रामहरः प्रेमेन्द्रचापोपमम् / / आयुर्वायुविधूततूलतरलं संसारिणां सर्वदा / मुच्या धर्ममनुत्तमं किमपि नो नित्यं भवे दृश्यते / / 112 // दारिद्दगिरिविहंडणकुलिमममो भवसमुद्दबोहित्थो। एक चिय जिणधम्मो लोयाण मणिच्छियं जणइ // 113 // सागरदत्तो कमला कणयबई धम्मदेसणं सुणिउं / जिणधम्ममाणसाई तिन्नि वि जायाई सविसेमं // 114 // गुरुणो विनिए ठाणे संपत्ता तेहिं नमियपयपउमा / कालं गति ताई जिणगुरुश्यसेवणपराई // 115 / / पंचपरमेट्ठिमंत सुमरंताई विसुद्धभावाइं / नियाउसमत्तीए कमेण पत्ताई देवत्तं // 116 / / // इति अनित्यताविषये समुद्रदत्तकथानकम् समाप्तम् // A %AE%A5 % // 44 //
SR No.034180
Book TitlePaiakaha Sangaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay, Kantivijay
PublisherVijaydansuri Jain Granthmala
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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