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________________ +AEXICOLAGHASHASHA हिययंमि क पि तुमं ॥१०॥ इय मणिऊणं विजापहावओ कुणइ सो वि नररूवं । निवई महिलारूवं पयडइ हरिसेण संजुत्तो ॥ १०१ ॥ संपइदेवीए तओ कहिओ जणणीह सयलवुत्तंतो। तीए पुट्ठो कुमरो वि साहए अप्पणो चरियं ॥ १०२॥ इत्तो सुहागदेबि गहिउं जोगी गओ य वेयड्डे । अह कुमरो वुत्तंतं कहिऊणं संपइपियाए ॥ १०३ ॥ संपत्तो वेयड्डे नहेण जोगिंदरक्खिउं(अं) कुमरिं । परिणिय गंधवेणं ताई पत्ताई रायगिहं ॥ १०४ ॥ तो तत्थ तक्खण च्चिय महल्ललोओवलद्धवुत्तंतो । नव. जामाउयलाहं कहेइ सिरिजयतचंदस्स ॥ १०५ ॥ अह सो पहट्ठचित्तो सम्म मुणिऊण ताण वुत्ततं । संपइ लोयाणुमओ जंमि निवेसए कुमरं ॥१०६॥ सोहग्गसुंदरनिवो ताई विनवइ गंतुमहमिहि। साहिय वुत्तं गोसे जणयाण समागमिस्सामि ॥१०७॥ संपइ सुहागदेवीजोगिंदजुओ नहेण रयणीए । नियधवलगिहे पत्तो सो तेहिं विसजिओ संतो ।। १०८॥ सबाई ताई रयणि गर्मिति अन्नुनापिच्छिरमुहाइं । नवसंगमसुहनिव्वुयअहरीकयसग्गसुक्खाई ॥१०९ ॥ जाए पहायसमए कुमरो पणमेह नववहूसहिओ । अम्मापियरपयाई जोगिंदो कहइ वुत्तंतं ॥ ११० ॥ पभणइ कुमरो रजे अहिसित्तो तेहिं गमिह(हि)ई । चंपाए नयरीए तुम्हाणं अणुमई लहिउं ॥ १११ ॥ ताई वि तुट्ठमणाई नववहुयादसणेण जायाई । रायगिहे संपत्तो जणएहिं विसजिओ कुमरो ॥ ११२ ॥ सम्माणिउं विसन्जिय तत्तो तं जयतचंदनरनाहो (१) । मजादुगेण सहिओ सपरियणो एस चंपाए ॥ ११३ ।। संपत्तो नरनाहो कमेण सोहग्गसुंदरभिहाणो। मुणिऊणं वुत्तंतं कुणइ जणो ऊसवं तत्थ ॥ ११४ ॥ पविसेइ ४ है। पुरोमज्झे निवइ(ई) करियणखंघमारूढो। धवलगिहे संपत्तो नमिओ लोएहिं मत्तीए ॥ ११५ ॥ सम्माणिऊण लोयं पसायवयणेहिं सो विसजेइ । धम्मुजमकयचित्तो पालइ रजं सुनीईए॥११६॥ जोगिंदेण समेओ नहेण गंतूण निययनयरंमि।.
SR No.034180
Book TitlePaiakaha Sangaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay, Kantivijay
PublisherVijaydansuri Jain Granthmala
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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