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________________ S CACANCIENCE%AALCHUC036 सई समप्पए पुहइनाहस्स ॥ ८ ॥ नरनाहो दाऊणं उचियं किं पि हु विसज्जए तं पिन कुणिऊण रायवाडि धवलगिहे ज्झत्ति संपत्तो ॥ ९॥ विजयाइ पिअयमाए सो तं अप्पेड़ पाउयं एगं । तं नियचरणपमाणं पिच्छिय सा भणइ हिट्ठमणा ॥ १० ॥ पिययम ! जइ मह जोग्गं दुइयं आणेसि पाउयं कहवि । ता हं करेमि भोयणमह नो नियमो महं असणे ॥ ११ ॥ पमपणेइ सुत्तहारे नरनाहो नयरमंडणसमाणे । एयसरिच्छं दुइयं सिग्धं पिहु पाउयं घडह ॥ १२ ॥ तं पिच्छिऊण ते वि हु अइदुग्धडपाउयं अपडिरूवं । पमणति अम्ह पिउणो वि नत्थि पहु! एरिसा सत्ती ॥ १३ ॥ सुणिऊण ताण वयणं कमसलायं व दुक्खिओ निवई । किंकायबविमूढो तो पडहं दावए नयरे ॥ १४ ॥ एयसरिच्छं जो कहवि आणए इत्थ पाउयं दुइयं । सो लहइ दम्मलक्खं वियखणो नेव संदेहो ॥ १५ ॥ अह मगरदाढनामा तं छिविडं कुट्टिणी भणइ निवई । इह पाउयमाणेमी तस्सामिणिसंगयं अहयं ॥ १६ ॥ इय भणिय अद्धलक्खं पढमं मग्गेइ देइ निवई वि । उड्डमुहा निग्गच्छइ नयराओ कुट्टिणी तत्तो॥१७॥ भुंजइ विजयादेवी निव्वुअहियया निवेण सह तत्तो । जीविजड़ आसाए पंचा(हया)साए पुणो नेव ॥१८॥ सुहस उणसूइउच्छाहकहियहिययइट्ठसिद्धिसंतुट्ठा। गामे पुरंमि वरपट्टणं मि खेडे मडंबे य ॥ १९ ॥ परिममइ रयणिदियह दसमासं जाव कुट्टिणी मयरा । हियइच्छियस्स सिद्धिं कहवि हु कत्थवि न पावे ॥ २०॥ अह सा विलक्खहियया चिंतइ सउणा वि निष्फला मज्झ । ता कह भट्ठपहना नियनयरं जामि निल्लज्जा ॥ २१ ॥ कयउच्छाहा जा पुण वि भमइ ता नियइ नयरमेगं सा। कत्थवि जत्थ न दीसइ दुपयं व चउप्पयं वा वि ॥ २२ ॥ सुन्न हदृस्सेणं गिहपंतीओ य तह 18 नियच्छंती । जा गच्छइ धवलगिहे विचित्तचित्ताइसंजुत्ते ॥ २३ ॥ सोहग्गरूवनिजियसुरंगणं पढमजुव्वणसमेयं । ता नियइ OCREASEISEASEASON
SR No.034180
Book TitlePaiakaha Sangaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay, Kantivijay
PublisherVijaydansuri Jain Granthmala
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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