Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 79
________________ मोल्लं गिण्दt विप्पो कहं परिकहे । नीयजणेणं मित्ती कायदा नेव पुरिसेण || ३९ ॥ इय सिट्टि ! तुज्झ कहियं कहाणj सो मणेड़ हसिऊणं । किं कहियं विष्य ! तए मुहियाए गिव्हिओ अत्थो ॥ ४० ॥ कूडो भणे निसुणसु अपि कहाrयं असुरम्मं । जइ अत्थि तुज्झ पासे दम्माणं दससयं पुण वि ॥ ४१ ॥ चिंते धम्मदत्तो दक्षं दाउं इमं पिनायां । सचं हवे जेणं जत्थ सयं तत्थ पंचासा ॥। ४२ ।। सो अप्पेर सहस्सं कहेइ अक्खाणयं पुण वि विप्पो । महिलाए विस्सासो कायवो नेव कइया वि ।। ४३ ।। मज्झ कहाणयजुयलं सया वि जइ घरिसि हिययमज्झमि । ता कत्थ वि नेव तुमं पराहन कह विपाविहिसि ॥ ४४ ॥ हरिसविसायसमेओ पारसकूले कमेण सिद्धिसुओ संपतो तं पुच्छर कत्थ तुमं दियवर ! वसेसि १ ॥ ४५ ॥ सो भणइ इत्थ अइयं सया वि निवसेमि मज्झ गिरमेयं । जं किं पि तुज्झ होही पओ तं कवं ॥ ४६ ॥ मंतेणं अभिमंतिय जत्रमुट्ठि तस्स बंभणो देइ । कहइ य वावियमित्ता खणेण मिण्हंति फलमेए ॥ ४७ ॥ ते गिण्डिय सिट्ठिसुओ पुरीए आवासिओ परिसरंमि । अह संपत्तो सिग्धं सिरिसेण निवस्स पासं ॥ ४८ ॥ वररयणभरियथालं पाहुडमप्पिय तओ निवेणावि । रंजियचित्तेणद्धं मुकं सुकं वणिसुयस्स ॥ ४९ ॥ संपत्तो नियगेहे सेट्ठी कयविषयं तओ कुणइ । अतो बहुदवं गमइ समओ तहिं कालं ॥ ५० ॥ जं किं पि तिहुणदेवी पभणइ तं चिय कुणेइ सो सेट्ठी । रागंघाणं अहवा एस च्चिय होड़ नूण गई ॥ ५१ ॥ एगो परिवसइ विडो सयज्झए तस्स धम्मदत्तस्स । नामेण गंगदत्तो मित्तत्तं ताण संजायं ॥ ५२ ॥ अइसच्छमणो सेट्ठी भोयणतंबोलखअपिजाई । मित्तत्तणेण निश्चं सो वियरह गंगदत्तस्स ।। ५३ ।। सो तं विडं सया विहु पिच्छइ नियबंधवं व नेहेण । अक्खलिओ सिडिगिहे गमनागमणं कुणइ एसो

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