Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 80
________________ कहासंगहे। मावनाप्रभावेधर्मदत्त.. कथानकम्। ॥३५॥ CARKASARKARI ॥ ५४ ।। जइ वि हु न हवह गेहे सेट्ठी तह वि हु समेइ सो तत्थ । अइदुट्ठमणो हासं कुणेइ सह तिहुणदेवीए ।। ५५ ॥ अइपरिचयाउ तीए सिग्धं पि मणोवियारमावन्नं । किं बहुणा ? दुण्हं पि हु संजायं ताण अइपिम्मं ॥ ५६ ॥ एगाए महिलाए पुरिसेणेगेण नेव वत्ता वि । कायवा चवलाणं विसमा खलु इंदियाण गई ।। ५७ ।। जह न हु इच्छइ सेट्ठी तह सा वियरेइ तस्स भक्खाई । नियपिययमाउ अहिओ महिलाणं उववई अहवा ।। ५८ ।। लुद्धो तीए सिट्ठिम्मि गंगदत्तो पओसमावहइ । सो दुचरियं ताणं सच्चमणो नेव जाणेइ ।। ५९ ।। अन्नदिणे सो गच्छइ निवइसयासम्मि नमियमुवविसइ । वरमंतिपमुहलोओ अस्थि तहिं गंगदत्तो वि । ६० ।। जंपेइ महीनाहो सेट्टि ! तुमं कहसु किं पि अच्छरियं । दिढे सुयं व कत्थ वि देसेसुं जेण परिभमसि ॥ ६१ ।। सो वयइ मह सयासे एगमउवं समस्थि अच्छरियं । ओगच्छंति फलंति य वा यमित्ता जवा देवा ! ॥ ६२ ॥ वजरइ महीनाहो तं धनं अस्थि किं पि जं लोए । गिण्हइ फलं खणेणं आमं ति पयंपए सेट्ठी ॥ ६३ ।। भासेइ गंगदत्तो दुट्ठमणो धम्मदत्त ! तुह सर्व । अलियं पि इत्थ वयणं छाइजइ विउललच्छीए ॥६४।। जइ एयं सच्चं चिय कहमवि इह कुणसि सिट्टि ! घिट्ट ! तुमं । सबा वि मज्झ लच्छी गेण्हेयवा तए ताव ।। ६५ ।। अह जइ एयमलीयं होही ता तुज्झ गेहमज्झम्मि । मह हत्थदुगे जं किं पि चडइ तं चिय तुमं देसु ॥ ६६ ॥ मन्नेह धम्मदत्तो सवं पि तह त्ति सच्छसम्भावो । महिनाहो संजाओ सक्खी उभयमि पक्खंमि ॥ ६७ ।। अत्थाणाओ लोओ सबो वि तओ गओ निए ठाणे । कयविक्कयस्स कले सेट्ठी वि हु [अट्ट]मज्झम्मि ॥ ६८ ॥ गंतुं जववुत्तंतं कहइ विडो ज्झत्ति तिहुणदेवीए । सा भणइ तक्खणेणं वावियमित्ता फलंति जवा ।। ६९ ॥ हारिजइ सवं चिय इत्थ विजयम्मि सिट्ठिणा समयं । ता गिण्ह ति च्चिय जवे जित्ते पुण एरिसं कुणसु CONNOCASSAGACA ॥३५॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98