Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 82
________________ पाइअकहा संग्रहे । 11 38 11 वेगेणं तहिं पत्तो ॥ ८६ ॥ न हु नियइ चडणमग्गं गच्छइ निस्सेणिसंनिहाणम्मि । हत्थदुगेणं तं गिव्हिऊण मोएह जाव तहिं ॥ ८७ ॥ ता बंभणेण भणिओ मा मुंचसु इत्थ अहम ! निस्सेणिं । जं हत्थदुगेणं चिय गहियं तं चेत्र तुह होउ ॥ ८८ ॥ नहु किंपि पुणो अनं लहेसि निल्लज ! कह वि कइयावि । सो वि हु विलक्खहियओ अहोमुहो जाव चिट्ठेह ॥ ८९ ॥ तं परिपुच्छइ राया संक्रियहियओ किमित्थ दवाई | चईऊणं निस्सेणी गहिया तुमए पढममेव ॥ ९० ॥ सो सो विलक्खहियओ न किंपि जंपेह जाव ताव तर्हि । गाढो कओ कहेई वृत्तंतं जं जहावुत्तं ॥ ९१ ॥ नायपरेणं रन्ना कुविएण पिओ वि गंगदत्तविडो । निविसओ आणतो अन्नायपरायणो काउं ।। ९२ ।। अह मरह तिहुणदेवी भयभीया दंतगहिय नियजीहा । संमाणिय तं सिद्धिं गओ निवो ज्झत्ति धवलहरे ॥९३॥ पभणइ कूडो सेट्ठि छलिओ सि इमेहिं कहसु सच्छ ! तुमं । पनरहसयदम्मेहिं पढिओ वि न पंडिओ जाओ ॥ ९४ ॥ सो जंपर महिलाए चरियं धुत्तस्स घ्रुणइ न विही वि । जायं सुतेयमहं तहवि पुणो तुम्ह साहिजा ।। ९५ ।। तस्सुवयारं मुणिउं सम्माोउं विसजिओ कूडो । संखेवेणेव कथं मयकिचं तिहुणदेवीए ॥ ९६ ॥ तं पिच्छिऊण सर्व सो मुणइ पलीवणं व गिहवासं । पारसकूलाउ तओ गयउरनयरे लिए पत्तो ॥ ९७ ॥ जणयाणं सो चलणे मिस पिकतं । मणइ य वेरग्गजुओ महिला दुक्खाण खलु खाणी ॥ ९८ ॥ उक्तं च निजसुभाषितगाथाकोशेदीसंति वइरितुल्ला जणणी जणया उ जाण कअंमि । ता उवविहडंति जओ ही ! जम्मो तान महिलाण ।। ९९ ।। पुरिसो महिलाण कए नाणादुक्खाई सहइ अणवश्यं । ताउ पुणो न हु केण वि कुडिलसहावाउ विप्पति ॥ १०० ॥ लोहबसेणं नेहं दंसंति या विजइ वि महिलाओ । तह वि हु विमूढहियओ बहुमाणं मुणइ ताण मरो ॥ १०१ ॥ सुहकंखिरो भावना प्रभावे धर्मदत्त - कथानकम् । ॥ ३६ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98