Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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पाइअकहासंगहे।
ने भावनाका प्रभावे
बहुबुद्धि
दि.
॥३८॥
४० ॥ पक्खितो जो३९ ॥ जंपेह
मह हारो । सो जपइ को तुमय ? को हारो? गंगडो को य? ॥ ३५ ।। मह तुझं दसणमवि आजम्माओ वि नेव संजायं। तह वि जइ हारवंछा ता गिण्हसु निवइपच्चक्खं ।। ३६ ॥ गंतूण दो वि तत्तो नमिऊणं नायसंजुयं विजयं । पभणेह मंतिपुत्तो मज्झ गिहे एस कम्मयरो ॥ ३७ ॥ मह चोरिऊण हारं चंपानयरीओ आगओ इत्थ । सो पमणेई सामिय ! पं पि हु नेव जाणेमि ॥ ३८ ॥ चिट्ठउ दूरे एसो हारो गेहं च सबमलियमिणं । एवं ताण विवाए न निभयं देइ नरनाहो ॥ ३९ ॥ जंपेइ निवो तुम्हं दिवेण विणा हवेइ न हु सुद्धी । तं पुण इह नयरीए दिवपहावम्मि कूवम्मि ॥४०॥ पक्खित्वो जो सुद्धो कुवाओ उम्भयाइ य जलाओ । पउमासणोवविट्ठो निस्सरई बुट्टए इयरो॥४१॥ सुद्धमणो हरिसपरो तं दिवं मन्नए अमच्चसुओ। अवरो चिंतह मझं जह जह वि समागयं मरणं ॥ ४२ ॥ तम्हा जणपञ्चक्खं विगुप्पमाणाउ कुवपडणंमि । जं मरणं तं जुत्तं इय मन्नइ सो वि तं दिवं ॥ ४३ ॥ तं दहणं हार अइरमणिजं विचिंतए निवई । जइ दो वि बुद्धिऊणं मरंति ता होइ मह हारो॥ ४४ ॥ गच्छंति निवसमेया दो वि हु कुवंमि कुणिय वरपूयं । सासंको कम्मयरो पढम चिय पडइ बुड्डह य ॥ ४५ ॥ पमणइ लोओ सामिय! हारो सुद्धस्स हबउ कुमरस । लोहेण पराभ्यो जंपइ विजओ महीनाहो ॥ ४६ ॥ पडिऊणं जइ कृवे निम्गच्छद ता इमस्स सुद्धस्स । एसो होही हारो न अन्नहा सो तओ पडिओ ॥ ४७ ॥ सच्चपहावा कंठप्पमाणवडियजलस्स कुवस्स । सो बाहिं नीहरिओ कुमरो कमलासणासीणो ।। ४८॥ सुद्धो सुद्धो चि तओ पयंपमाणं जणं भणइ निरई । मंतपहावणेसो नीहरिओ नेव सच्चेण ॥ ४९ ॥ मुणियमणो नयरजणो पमणह तुम्हं न एरिसं जुवं । अमायपरे निवइम्मि होउ लोओ कई देव! ॥ ५० ॥ सच सचं नीई जणाववायं कुलस्स य कलंकं । अगणिय सर्व एवं दो अधगमए कमरं
हारो गोवि तं दिवं ॥ ४३ मयं मरणं ॥ ४२ ॥१॥४१॥ सुदमणो
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॥३८॥

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