Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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कणयं । न य दम्मे अन्नं वा न कि पि जं हरइ दारिदं ॥ ६० ॥ तत्तो विलक्खचित्तों समुद्ददत्तो विचिंतए दुहिओ। दिवमि पराहत्ते किं पुरिसो कुणइ धीरो वि? ॥ ६१ ॥ लोयाणं दारिदं हरेह जंतुट्ठमाणसो सो वि । धिद्धी निकरुणमणो भयठाणे इत्थ मं खिवइ ।। ६२ ॥ रुद्वेण तेण मुक्को लोहं दमित्तु इत्थ ठाणमि । कह अन्नह तत्थ चिय न कि पि दिनं मह सुरेण ॥ ६३॥ उत्तमजणा वि एवं कुणंति जं विप्पयारणं कहवि । ता कह पावउ सोक्खं खणं पि अम्हारिसो लोओ ।। ६४ ॥ अहवा नो दायबो दोसो कस्सावि केण कइयावि । पुत्वजियकम्माओ हवंति जं सुक्खदुक्खाई॥६५॥ तं किं पि दहं जायं समुद्ददत्तस्स तमि समयंमि । जं न कहिउं न सहिउं तीरिजइ अन्नपुरिसेण ॥ ६६ ॥ अह कुणिय पाणवित्तिं फलेहिं सो तत्थ सीयभयभीओ । कडेहिं पाडिऊणं जलणं जालेइ रयणीए ॥ ६७ ॥ भूमी सुवन्नरूवा संजाया तावभावओ तत्थ । सो हरिसपरो जाओ तं पिच्छियऽणभविढि व ।। ६८ ।। मुणिउं सुवनभूमि खणिऊणं कुणइ इट्टियाओ तओ। दिन्ने जलणे ताओ सुवन्नरूबाओ पिच्छेद ॥ ६९ ॥ तम्मि समयस्मि पत्तो माउलओ सोहडो कहवि तत्थ । अबतिस्थियवहणाओ ओलक्खिय तं पयंपेइ ॥ ७० ॥ वच्छ! कहं इह पत्तो एगो च्चिय कह व कह व दीणमणो । तं पणमइ मुणिऊणं सिद्विसुओ विहसिया सरीरो ॥ ७१ ॥ लञ्जोण्णामियवयणो नियवुत्तं कहित्तु सर्व पि । सबाउ इट्टियाओ तस्स च्चिय खिवद वर्णमि ॥ ७२ ॥ आरुहिऊणं तेहिं वहणं तो पिल्लियं गिरावत्ते । संपत्तं निजामयलोओ दीणो पयंपेइ । ७३ ॥ उम्मग्गेणं एवं संपचं जाणबत्तमइदग्गे । न चला इह ठाणाओ कहमवि किं किजइयाणि ।। ७४ ॥ एसो दीसह जेणं अइदुग्गो पहओ गिरावचो । इह पत्तो नियठाणे जाइ जणो गरुयपुत्रेण ॥ ७५ ॥ आउलबाउलहियया जाया सवे विमुकजीयासा। जलनिहिगमण
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