Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 94
________________ पाइअ. IN सोवाणपतीए ॥ ४३ ॥ तत्थ गएवं दिटुं धवलहरं कणयभित्तिनिम्मवियं । गयणग्गलग्गमाणिकपुत्तलीथंमतोरणयं ॥४४॥ अनित्यताकहा- I दारंमि मन्निविट्ठ दुवारवालं मणेइ सिट्ठिसुओ । कस्सेसो आवासो रम्मो पडिपुनपुनस्स ॥ ४५ ॥ सो भणइ इमं ठाणं विषये संगहे। जलनिहिपहणो समुद्ददेवस्स । निम्माणुसप्पयारे कह णु तुमं आगओ इत्थ ? ॥ ४६॥ वजरइ सिट्ठिपुत्तो तं मह दंसेसु | समुद्रदत्त देवयं भाय ! । तेणं भणियं चिट्ठसु इत्थेव तुम खणं एग ॥४७॥ विनविउ नियसामि जावागच्छामि लद्धआएसो। गंतूण ॥४२॥ तकथानकम्। हा तम्म पासे कुणिउं पंचंगपणिवायं ॥४८॥ विन्नवह नरो कत्तो वि आगओ को वि चिदुइ दुवारे । कोऊहलपडिपुनो सो जंपद तं पवेसेसु ॥ ४९ ॥ लद्धाएसेणेसो पवेसिओ तेण ज्झत्ति सेद्विसुओ। अह पंचवन्नमणिमउडकिरणविच्छुरियसिरकमलंद ॥ ५० ॥ आम्बलयथूलमोत्तियहारविरायंतपिडुलवच्छयलं । रयणविणम्मियकेऊरकिरणसोहंतभुयदंडं ॥ ५१ ॥ झणज्झणिररयणकंकणकलायअंकणयकडयपयजुयलं । निरुवमरूवं पिच्छिय समुहदेवं विचिंतेइ ॥५२॥ गच्छंति दिट्ठमग्गे नूणं एपारिसा सुपुन्नाणं । मह आवई वि जाया इह समए संपइसमाणा ॥५३ ।। सुपसनो लोयाणं कहमवि एसो हवेह जाण जए । मणवंछियअहियाओ लहंति ते नूण रिद्धीओ ॥५४॥ सिद्विसुएण पणामो तस्स कओ भत्तिनिम्मरमणेण । हरिसुल्लसिरसरीरो दिनासणयंमि उबविट्ठो ॥५५|| पुट्ठो सुरेण कत्तो संजाओ इत्थ आगमो तुज्झ । वणिउत्तेणं सबो कहिओ मूलाउ वुत्तो ।। ५६ ॥ सम्म मुणिऊण सुरो पयंपए वच्छ ! नत्थि तुह लाहो । कइयावि हु जलमग्गे होही खलु आवय चेय ॥५७॥ तह वि हु विहलं मा हवइ दंसणं देवयाण तेण तुमं । वच्चसु सुवन्नदी होही लाहो तुह अउदो ॥ ५८ ॥ सो जंपइ जलमज्झे अमुणिय ठाणंमि जामि कहमिहि । तस्साएसेण तओ उप्पाडिय किंकरेण लहुं ॥ ५९॥ मुक्को सुवनदीवे सो न हु स्यणाई. नियह नो IB॥४२॥ ISHA

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