Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 77
________________ ESCANARASHTROCHAKRADHRe% स(सु)हावासं । परिवसइ तत्थ सिट्ठी जसघवलो धम्मघरधवलो ॥६॥ जिणमयभावियचित्ता जसदेवी अत्थि तस्स पाणपिया । लच्छिललियाण ताणं को वि हु कालो अइकंतो ।। ७॥ अन्नदिणे जसदेवी दुहियमणा पभणए नियं नाहं । पुत्तेण विणा लच्छीए किजए किमिह विउलाए ॥ ८ ॥ जा न हु उच्छंगठियं सुयरयणं नियइ मम्मणुल्लावं । महिलाए तीए जम्मो निरत्थओ नूण लोयंमि ॥ ९॥ पिययम ! धम्मपहावा मणिच्छियं हवइ सबलोयाण । निबिडंतरायकम्मं पि जाइ दरं खणेणावि ॥ १०॥ सविसेसं अट्ठाहियमहिमं ताई कुणंति भत्तीए । नियगिहदेवालयसंठियस्स सिरिसंतिनाहस्स ॥ ११ ॥ अट्ठमदिणंमि सेट्ठी चिट्ठइ ज्झाणंमि जाव उवविट्ठो। पञ्चक्खीहोऊणं सासणदेवी भणइ ताव ॥ १२ ॥ जमधवल ! संतिजिणवरभत्तीए अंतरायविगमेणं । तुज्झ हविस्सइ पुत्तो कहिऊण तिरोहिया देवी ॥ १३ ॥ जसधवलो तं स्यणि धम्मज्झाणेण गमह सविसेसं । जाए पहायसमए जसदेवीए कहा सई ।। १४ ।। दाणंमि वावडाए संतिजिणिदस्स पूयणपराए । रिउण्हायाए तीए गम्भो जाओ अह अन्नदिणे ॥ १५ ॥ गम्भषहावा जाओ विसेसओ तीइ डोहलो धम्मे । तित्थयराणं पूर्य कुणेह वियरेइ तह दाणं ॥ १६ ॥ नवमाससद्धसट्ठमदिणेसु अइएसु सुक्खभावेणं । जिणधम्मभावियमणा पसबइ पुत्तं दिणयरं च ।। १७ ॥ सुहमइनामा दासी वद्धावइ पुत्तजम्मणा सेट्ठी । सो वियरइ बहुदवं हरिसपरो तीए सहस त्ति ॥ १८ ॥ रिद्धिभरेणं सेट्ठी सम्माणेऊण सयलसयणजणं । जम्ममहं कुणइ पुरे नामं पि हु बारसे दियहे ॥ १९ ॥ जणणीए डोहलओ जाओ धम्ममि गम्भपढमदिणे । तेणेस हवउ कुमरो नामेणं धम्मदचो ति ।। २० ।। अह सो परिवडतो संजाओ अट्ठवरिसदेसीओ । सुगहियकलाकलावो कमेण नवजोवणं पत्तो ।। २१ ।। तंमि पुरे सिट्ठिवरो जसहडनामो वसेइ बहुविहवो। तस्सऽस्थि तिहुणदेवी

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