Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 76
________________ पाइस संगहे। गावना प्रमावे धर्मदत्तकथानकम्। X माणाणं पि पाहुणओ ॥ ११५॥ रजाएसं पेसिय हकारइ सो वि ज्झत्ति संपचो । दाऊण नियं रजं अबराहं खामए सवं ॥ ११६ ॥ मुणिवरकहियं सयलं साहइ अघडस्स पुत्वभवचरियं । तं सुणिउं संजायं जाईसरणं तओ तस्स ॥ ११७ ॥ तो सुघडियनरनाहो गहियवओ ज्झत्ति सो दिवं पत्तो । अघडचरिएण तत्व य जाओ अघडो महीनाहो ॥ ११८ ॥ नियजणणी मालियमालिणी य सिद्धिं च अप्रमुयणं च । हक्कारइ नियपासे सिग्धं अघडो महीनाहो ॥ ११९ ॥ बहुकालं रज्जमरं पाले सो वि धम्मसंजुत्तो । सिरिरयणसुंदरीए दुग्पडपुत्तं ठविय रजे ॥ १२० ॥ गहिऊण साहुदिक्खं मग्गिय भिक्खं पचोहिङ लोयं । दुत्तरतवं तविचा अकलंकं पालियं नियम ।। १२१ ।। भावणभारियचित्तो समाहिजुत्तो इमो पुणियतत्तो। आउक्खयंमि मरिउं जाओ देवो महिड्डीओ ॥ १२२ ।।। इति तपोविषये अघटकथानकं समाप्तम् । A ACCOCA% SONGS भावनाप्रभावे धर्मदत्तकथानकम्-दाणं वा सीलं वा तवोविहाणं पि तह य अनं पि । सत्वं निष्फलमेयं जाण मणे भावणा नत्यि ॥ १ ॥ जं एगो फलमउलं पाव किरियं सया वि कुणमाणो । तं चिप लहेइ अन्नो भावेन्तो भावणं एक |॥२॥ रहियाण भावणाए सवं पि हु नूण निष्फलं हवइ । सहियाण भावणाए थोवं पि बहुप्फलं मणियं ॥३॥ किं किजह विहवेणं ? किं वा पढिएण ? किं व अत्रेण ? | जाव न हियए मावो सुनिम्मलो होइ लोयाणं ॥ ४ ॥ तं नत्थि जं न वियरइ एक चिय भावणा विदईण (१)। जह धम्मदत्तसेट्ठी सुहाई भुंजेइ सुरलोए ॥ ५॥ गयउरनामेण पुरं गयतुरयसमाउलं २ ॥३३॥

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