Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 65
________________ SAIRACLERKASHANKAR के पि निवकुमरिं ॥७७ ॥ अह पमुहमंतिलोओ पमणइ नरनाह! मचेरवयं । जुत्वं साक्ष्ण सया पुहइवईण पुणो नेव ।। ७८ ॥ मोणेणं चिय चिट्ठह सो ताण न किं पि उत्तरं देइ । परिपालइ रजभरं सत्तहि वसणेहि परिचत्तो ।। ७९ ॥ पञ्चक्खीहोऊणं संज्झाए कहइ अन्नदियहमि । पुरिसोत्तमस्स रणो पूयानिरयस्स कुलदेवी ।। ८० ॥ पउमावइनयरीए पवाहि(इ)याहिडिओ समत्थि मढो । पुत्वभवपिया तुझं तर्हि चिट्ठइ कुसुमसिरिनामा ॥८१॥ गच्छसु तत्थेव तुमं इयाणिमवि कुणिय महिलियारूवं । सा(तं)परिणिय वलिऊणं रयणीइ वि आगमिजासु ।। ८२ ।। सुणिऊण तीए वयणं संतुट्ठो चिंतए पुहइनाहो । सा लद्धा नूण मए मयंकरेहा हिययइट्ठा ।। ८३ ।। अह निवई लिहइ पडे सवित्थरं अप्पणो वि तीए वि । पुत्वभवं ससिलोयं नामजुयं मोरनहगमणं ।।। ८४ ॥ तस्सस्थि पुणो सिद्धो आबालाओ वि एगवेयालो । चिंतियमित्तं पत्तं महिनाहो तं पयंपेइ ।। ८५ ।। गंतवं अम्हेहिं इयाणि पउमावईए वेयाल !। उबवेसइ नियखंधे ते तत्थ गया दुवे तत्तो॥ ८६ । एकम्मि उजाणे विस्समिओ चिंतए महीनाहो। इत्थीरूवं अयं कुणेमि अह तत्थ गमणत्थं ।। ८७ ॥ खणमित्तं संजाया निद्दा चिंतापरस्स नरवइणो । अह विजाहरजुयलं कीलाहेउं तहिं पत्तं ।। ८८ ॥ भममाणो सच्छंदै उजाणे खेयरो तहिं ठाणे । संपत्तो जहिं चिट्ठइ पुरिसोत्तमनरवई सुनो | ।। ८९ ॥ निरुवमरूवं तं पिच्छिऊण विजाहरो वि चितेइ । जइ नियइ इमं कहमवि परिममंती पिया मज्झ ।। ९० ॥ एयंमि रत्तचिचा विगलियनेहा ममोवरि होही । तस्स चरणंमि ततो सो बंधइ ओसहिं एगं ।। ९१ ।। सो गच्छइ अन्नत्तो जग्गइ पुरिसुत्तमो तओ निवई । अप्पाणं पुण पिच्छइ इत्थीरूवं तओ हिट्ठो ॥ ९२ ॥ हरिसभरनिन्भरंगो जायं कह मज्झ महिलियारूवं । इय जा चिंतइ चरणे बद्धं ता ओसहिं नियइ ।।९३ ॥ एयाइ पहावाओ मह जायं नूण रमणियारूवं । गच्छामि अहमि ACCORREARRIGINE

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