Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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संजाओ अदुवरिसपरिआओ। सबकलापारगओ थोवदिणेहिं 'पिअभिओगो ॥ ६८ ॥ सा का विहु नत्थि कला तं नाणं नेव नेव विमाणं । जं सो न मुणइ अघडो चालो वि अबालबुद्धीए ॥ ६९ ॥ अह अन्नया कयाई देवधरो अघडपुत्तसंजुत्तो। ववहारेणं पत्तो नयरीए सिरिविसालाए ॥ ७० ॥ आवासिऊण बाहिं थालं गहिऊण रयणपडिपुग्नं । संपत्तो धवलगिहे पुत्जुओ नमइ | नरनाहं ।। ७१ ॥ वरस्यणाई पिच्छिय हरिसियचित्तो पयंपए निवई । सिट्ठिसुय ! तुज्झ दाणं सर्व मुकं पसाएण ॥ ७२ ॥
तो वीडिअं पयाउं निययावासंमि पेसिओ सेट्ठी। अह एगते जाए पयंपियं नाणगन्भेणं ।। ७३ ।। सामिय! एयस्स सुओ | करिस्सई रजमित्थ नयरीए । जीवंतमि वि देवे तं सुणिउं चिंतए निवई ॥ ७४ ।। दुट्ठमणेणं तेण वि किं मह वेरी न मारिओ होज । मारेयवो बालो संपइ वि कयावि जुत्तीए । ७५ ।। अह अत्थाणे पत्तो देवधरो अघडपुत्चपरियरिओ। नरनाहेणं पुट्ठो ससिणेहं कूडहियएण ।। ७६ ॥ देवधर ! तुज्झ पुत्तो दीसइ एसो सुलक्षणो सूरो। ता रम्ममेगदेसं देमि पसाएण एयस्स ॥ ७७ ।। नमिऊण भणिय( भणइ ) सेट्ठी सामिय! अम्हाण नेव वंसंमि । जाओ कस्स वि देसो अइभयभीया वणियजाई ॥ ७८ ॥ तो अघडो वि हु पमणइ किं ताय ! भणेसि एरिसं वयण ? । किं चक्कवट्टिपिउणा पत्तं कइयावि चकितं? ॥ ७९ ॥ सोऊणं तबयणं निउणं सपरकम सउच्छाई । रनो दिन्ना नयरी महुरा महुरं चवंतेणं ।। ८ ।। पत्तलयं गहिऊणं अघडेण गएण तीए नयरीए । देउलवाडयगामे नियजणओ पेसिओ ज्झत्ति ॥ ८१॥ देवधरो वि कमेणं गच्छंतो नियपुरंमि संपत्तो। हरिसियचित्तो लोयाण कहइ पुत्तस्स वृत्तं ॥ ८२ ।। सयलजणो वुत्तंतं सुणिऊणं गओ पुरीए महुराए । अघडपहुणा वि
पिअभिहोगो AI
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