Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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पाइअ
संगहे।
॥ २४॥
नो कहसु ता मममा८९ ॥ नाह ! काययाइ दुन्नि वि मोणेणं ठति जाववासमि
सुहागदेवी सुणित्तु तं सयलं । हरिसियचित्ता जाया सविसेसं कुमरलाहेण ॥ ८५ ॥ जह नो पिच्छइ को वि हु तीए नवकारसरिच्छं कुणेत्तु तहरूवं । कुडिलाए समं कुमरो गओ गिहे मुणियचरियाए ॥ ८६ ॥ तं चिय सुहागदेवि मुणेइ फले सयलो वि तत्थ तं कुमरो। अह तीए संजायं वरणं तह पाणिगहणं पि ।। ८७ ॥ तं गहिय संपइनिवो नियआवासंमि सौभाग्यज्झत्ति संपत्तो । रयणीए वासभुवणे चिटुंति विसजिउं लोयं ।। ८८॥ हसियहिययाइ दुन्नि वि मोणेणं ठंति जाव खणमेगं ।
सुन्दरदक्खत्तणेण मुणिउं तच्चरियं भणइ नववहुया ॥ ८९ ॥ नाह ! कहं इह समए तुमयं चिंताउरु व दीसेसि ? । जइ
कथानकम्। नस्थि अकहणिजं सुपसन्नो कहसु ता मज्झ ॥९० ॥ सो भणइ विसन्त्रमणो कि इत्थ कहिजए पिए ! तुज्झ ? । अम्हं तुम्ह वि जम्मो निरस्थओ नूण संजाओ ।। ९१ ॥ सा वि हु भणेइ हसिउँ मा पिययम ! भणसु एरिसं वयणं । जह दुण्डं पि हु जम्मो होही सहलो तह जइस्सं ॥ ९२ ॥ नरनाहो भणइ तओ कोऊहलकारयं सुणसु किं पि । चंपाए नयरीए आसि निवो धम्मनामो त्ति ॥ ९३ ॥ धम्मवई तस्स पिया अह जाओ गन्भसंभवो ताण । तत्तो निवो अपुत्तो पंचत्तं देवि ! संपत्तो ॥ ९४ ।। कुसलेण अमच्चेणं पसवदिणं जाव रक्खियं रजं । धम्मवईए जाया तणया तत्तो सबुद्धीए ।। ९५ ॥ लोयाण पुत्तजम्म कहिऊण महूसवो पुरीमज्झे । रिद्धीए कारवियं संपह नाम पि से दिन्नं ॥ ९६ ॥ अंतेउरस्स मज्झे बुडि पत्तो कमेण समयंमि । नरवेसेणं तीए कलाउ सवाउ गहियाओ ॥ ९७ ॥ तत्तो अज निसाए वीवाहो से तए समं जाओ । तेणम्ह | अम्ह दुण्ह वि महिलाणं केरिसा भोया ॥ ९८ ॥ तो हसिउं नववहुया तं पभणइ तह वि कुणसु मा दुक्खं । जह दुण्हं पि हु। जम्मो हवेइ सहलो तह जइस्सं ॥ ९९ ॥ जह दिवेण महेला कया तुमं तह अहं पुरिसदेवो । ता देवि! मा विसायं घरेसु का॥२४॥
KOLKAR

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